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प्रतिमा का शाब्दिक अर्थ प्रतिरूप होता है अर्थात समान आकृति। पाणिनि ने भी अपने सूत्र 'इवप्रतिकृतौ' में समरूप आकृति के लिए प्रतिकृति शब्द का प्रयोग किया है। प्रतिमा विज्ञान के लिए अंग्रेजी में Iconography शब्द प्रयुक्त होता है। Icon शब्द का तात्पर्य उस देवता अथवा ऋषि के रूप है जो कला में चित्रित किया जाता है। ग्रीक भाषा में इसके लिए 'इकन' (Eiken) शब्द प्रयोग हुआ है। इसी अर्थ से समानता रखते हुए भारतीय अर्चा, विग्रह, तनु तथा रूप शब्द हैं। पांचरात्र संहिता में तो <nowiki>''क्रिया''</nowiki> मोक्ष का मार्ग माना गया है इसीलिए शासक मोक्ष निमित्त मन्दिरों का निर्माण किया करते थे।<ref>डॉ० वासुदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.445223/page/n2/mode/1up प्राचीन भारतीय मूर्ति-विज्ञान], सन १९७०, चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी (पृ० २१)।</ref>
 
प्रतिमा का शाब्दिक अर्थ प्रतिरूप होता है अर्थात समान आकृति। पाणिनि ने भी अपने सूत्र 'इवप्रतिकृतौ' में समरूप आकृति के लिए प्रतिकृति शब्द का प्रयोग किया है। प्रतिमा विज्ञान के लिए अंग्रेजी में Iconography शब्द प्रयुक्त होता है। Icon शब्द का तात्पर्य उस देवता अथवा ऋषि के रूप है जो कला में चित्रित किया जाता है। ग्रीक भाषा में इसके लिए 'इकन' (Eiken) शब्द प्रयोग हुआ है। इसी अर्थ से समानता रखते हुए भारतीय अर्चा, विग्रह, तनु तथा रूप शब्द हैं। पांचरात्र संहिता में तो <nowiki>''क्रिया''</nowiki> मोक्ष का मार्ग माना गया है इसीलिए शासक मोक्ष निमित्त मन्दिरों का निर्माण किया करते थे।<ref>डॉ० वासुदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.445223/page/n2/mode/1up प्राचीन भारतीय मूर्ति-विज्ञान], सन १९७०, चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी (पृ० २१)।</ref>
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सामान्यरूप से मूर्ति को उसके वाहन, आयुध, मुद्रा, अलंकरण और भुजाओं की संख्या से पहचाना जाता है -  
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=== देवप्रतिमा लक्षण ===
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मानव शरीर में जिस प्रकार हृदय में आत्मा का निवास माना जाता है उसी प्रकार देवालय के गर्भगृह में परमात्मा की प्रतिमा के रूप में अवस्थिति कही गई है। जैसा कहा भी गया है -<ref>पत्रिका - वास्तुशास्त्रविमर्श-अष्टम पुष्प, श्री विजय कुमार, देव प्रतिमा लक्षण, सन २०१५, श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली (पृ० १७२)।</ref> <blockquote>ब्रह्मस्थानं यदैतच्च तन्नाभिः परिकीर्तिता। हृदयं पीठिका ज्ञेया प्रतिमा पुरुषः स्मृतः॥ (क्षीरार्णव)</blockquote>भावार्थ - ईश्वर के साकार रूप के ध्यान करने व यथेष्ट देव के प्रति एकाग्रचित्त होकर आस्था व श्रद्धा प्रकट करने का माध्यम मूर्ति (प्रतिमा) को माना जा सकता है। पुराणों में भी प्रत्येक देवता का स्वरूप बताया गया है अतः पुराणोक्त एवं शास्त्रोल्लिखित प्रतिमा स्वरूप के अनुसार ही शिल्पियों द्वारा मूर्तियों (प्रतिमाओं) का निर्माण किया जाता है। सामान्यरूप से मूर्ति को उसके वाहन, आयुध, मुद्रा, अलंकरण और भुजाओं की संख्या से पहचाना जाता है -
    
'''वाहन या आसन वस्तु'''
 
'''वाहन या आसन वस्तु'''
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