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| | कूप, कुण्ड, तालाब, सरोवर आदि। | | कूप, कुण्ड, तालाब, सरोवर आदि। |
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| − | ===पुष्करिणी=== | + | ====पुष्करिणी==== |
| | पुष्करिणी छोटा गोलाकार पोखर था जिसका व्यास १५० से ३०० फीट तक हो सकता था। | | पुष्करिणी छोटा गोलाकार पोखर था जिसका व्यास १५० से ३०० फीट तक हो सकता था। |
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| − | ===तड़ाग === | + | ====तड़ाग ==== |
| | तडाग चौकोर आकार का पोखर था जिसकी लम्बाई ३०० से ४५० फीट तक होती थी। | | तडाग चौकोर आकार का पोखर था जिसकी लम्बाई ३०० से ४५० फीट तक होती थी। |
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| − | ===ह्रद=== | + | ====ह्रद==== |
| | मत्स्यपुराण में इस प्रसंग में पांचवें वर्ग की चर्चा की गयी है, इसे ह्रद नाम दिया गया है। जिसमें साधारणतः पानी कभी नहीं सूखता हो। | | मत्स्यपुराण में इस प्रसंग में पांचवें वर्ग की चर्चा की गयी है, इसे ह्रद नाम दिया गया है। जिसमें साधारणतः पानी कभी नहीं सूखता हो। |
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| − | ====नगर नियोजन एवं जलसंरचना====
| + | ===नगर नियोजन एवं जलसंरचना=== |
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| | वैदिक ऋषियों को समुद्र, नदी व पुष्करणियों से अत्यन्त ही लगाव था। इसी कारण ऋषियों के आश्रम और बस्तियाँ नदियों के किनारे ही विकसित हुए। ऋग्वेद में सर्वत्र जल को चार सूक्तों में आपो देवता कहकर संबोधित किया गया है। ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के तेईसवें सूक्त, जिसके द्रष्टा मेधातिथि काण्व हैं, इसके १६-२३ वें मन्त्रों में जल की स्तुति की गयी है। इसी के सप्तम मण्डल के ४७ वें तथा ४९वे सूक्त में मन्त्रद्रष्टा ऋषि वसिष्ठ मैत्रावरुणि ने आपो देवरूप जल की स्तुति की है। ४९ वें सूक्त में समुद्र को जलाशयों में ज्येष्ठ माना गया है -<ref>डॉ० धीरेन्द्र झा, [https://mahavirmandirpatna.org/dharmayan/wp-content/uploads/2021/05/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%9C%E0%A4%B2-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6-%E0%A4%A1%E0%A4%BE.-%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%9D%E0%A4%BE.pdf धर्मायण पत्रिका-वैदिक साहित्य में जल-विमर्श], सन २०२१, महावीर मन्दिर पटना (पृ० ११)।</ref> <blockquote>समुद्र ज्येष्ठाः सलिलस्य मध्यात्पुनाना यन्त्यनिविशमानाः। इन्द्रो या वज्री वृषभो रराद ता आपो देवीरिह मामवन्तु॥ (ऋग्वेद)</blockquote>समुद्र जिनमें ज्येष्ठ है, वे जल प्रवाह, सदा अन्तरिक्ष से आने वाले है। इन्द्रदेव ने जिनका मार्ग प्रशस्त किया है, वे जलदेव हमारी रक्षा करें। | | वैदिक ऋषियों को समुद्र, नदी व पुष्करणियों से अत्यन्त ही लगाव था। इसी कारण ऋषियों के आश्रम और बस्तियाँ नदियों के किनारे ही विकसित हुए। ऋग्वेद में सर्वत्र जल को चार सूक्तों में आपो देवता कहकर संबोधित किया गया है। ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के तेईसवें सूक्त, जिसके द्रष्टा मेधातिथि काण्व हैं, इसके १६-२३ वें मन्त्रों में जल की स्तुति की गयी है। इसी के सप्तम मण्डल के ४७ वें तथा ४९वे सूक्त में मन्त्रद्रष्टा ऋषि वसिष्ठ मैत्रावरुणि ने आपो देवरूप जल की स्तुति की है। ४९ वें सूक्त में समुद्र को जलाशयों में ज्येष्ठ माना गया है -<ref>डॉ० धीरेन्द्र झा, [https://mahavirmandirpatna.org/dharmayan/wp-content/uploads/2021/05/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%9C%E0%A4%B2-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6-%E0%A4%A1%E0%A4%BE.-%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%9D%E0%A4%BE.pdf धर्मायण पत्रिका-वैदिक साहित्य में जल-विमर्श], सन २०२१, महावीर मन्दिर पटना (पृ० ११)।</ref> <blockquote>समुद्र ज्येष्ठाः सलिलस्य मध्यात्पुनाना यन्त्यनिविशमानाः। इन्द्रो या वज्री वृषभो रराद ता आपो देवीरिह मामवन्तु॥ (ऋग्वेद)</blockquote>समुद्र जिनमें ज्येष्ठ है, वे जल प्रवाह, सदा अन्तरिक्ष से आने वाले है। इन्द्रदेव ने जिनका मार्ग प्रशस्त किया है, वे जलदेव हमारी रक्षा करें। |
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| | हमारे महाकाव्यों में भी जल संरचनाओं का वर्णन प्राप्त होता है। रामायण में 'पंपासर' एवं 'पंचाप्सरोतटाक' नामक दो तालाबों का वर्णन मिलता है। राजा भरत के आदेश से अयोध्या एवं शृंगवेरपुर के बीच में कम जल वाले झरनों का जल रोककर, बाँध निर्मित करने को कहा गया है जिससे वे विविध आकारों वाले जलाशयों में परिणत हो गये थे - <blockquote>अथ भूमि प्रदेशज्ञाः सूत्र कर्म विशारदाः। स्व कर्म अभिरताः शूराः खनका यन्त्रकाः तथा॥ | | हमारे महाकाव्यों में भी जल संरचनाओं का वर्णन प्राप्त होता है। रामायण में 'पंपासर' एवं 'पंचाप्सरोतटाक' नामक दो तालाबों का वर्णन मिलता है। राजा भरत के आदेश से अयोध्या एवं शृंगवेरपुर के बीच में कम जल वाले झरनों का जल रोककर, बाँध निर्मित करने को कहा गया है जिससे वे विविध आकारों वाले जलाशयों में परिणत हो गये थे - <blockquote>अथ भूमि प्रदेशज्ञाः सूत्र कर्म विशारदाः। स्व कर्म अभिरताः शूराः खनका यन्त्रकाः तथा॥ |
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| − | कूप काराः सुधा कारा वम्श कर्म कृतः तथा। समर्था ये च द्रष्टारः पुरतः ते प्रतस्थिरे॥ (बाल्मीकि रामायण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%85%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%83_%E0%A5%AE%E0%A5%A6 बाल्मीकि रामायण], अयोध्याकाण्ड, सर्ग ८०, श्लोक - १-२।</ref></blockquote>राजा का प्रमुख कर्त्तव्य तालाब और नहरों का निर्माण करवाना भी था। जलाशय, कूप, बाँध, नहरें, झील आदि कृत्रिम रूप से जल प्राप्ति के साधन थे। इन जल संरचनाओं के निर्माणकर्ता अभियांत्रिकों को रामायण में यंत्रकार कहा गया है। | + | कूप काराः सुधा कारा वम्श कर्म कृतः तथा। समर्था ये च द्रष्टारः पुरतः ते प्रतस्थिरे॥ (बाल्मीकि रामायण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%85%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%83_%E0%A5%AE%E0%A5%A6 बाल्मीकि रामायण], अयोध्याकाण्ड, सर्ग ८०, श्लोक - १-२।</ref></blockquote>राजा का प्रमुख कर्त्तव्य तालाब और नहरों का निर्माण करवाना भी था। जलाशय, कूप, बाँध, नहरें, झील आदि कृत्रिम रूप से जल प्राप्ति के साधन थे। इन जल संरचनाओं के निर्माणकर्ता अभियांत्रिकों को रामायण में यंत्रकार कहा गया है। इसी प्रकार का विवरण महाभारत से भी प्राप्त होता है - |
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