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| | ===यज्ञवेदियों के समीप जल स्रोतों की व्यवस्था=== | | ===यज्ञवेदियों के समीप जल स्रोतों की व्यवस्था=== |
| | + | जलस्रोत एवं जलसंरचना के संबंध में तड़ागामृतलता और जलाशयादिवास्तु पद्धति आदि प्राचीन ग्रन्थ प्राप्त होते हैं। |
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| | ==वास्तुशास्त्र में जलस्थान का निर्धारण== | | ==वास्तुशास्त्र में जलस्थान का निर्धारण== |
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| | ===जलसंरचना के प्रकार=== | | ===जलसंरचना के प्रकार=== |
| − | संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार बाणभट्ट अपनी रचना कादंबरी में पोखर-सरोवर उत्खनन को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं। लोक कल्याण हेतु इस प्रकार उत्खनित करवाये गये जलकोष को निम्न वर्गों में विभाजित किया गया है -<ref>शोध कर्ता - अभिषेक कुमार, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/344787 प्राचीन भारत में जल प्रबन्धन], सन २०१७, शोध केन्द्र - काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (पृ० २७)।</ref> | + | संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार बाणभट्ट अपनी रचना कादंबरी में पोखर-सरोवर उत्खनन को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं। लोक कल्याण हेतु इस प्रकार उत्खनित करवाये गये जलकोष को प्रमुख चार वर्गों में विभाजित किया गया है -<ref>शोध कर्ता - अभिषेक कुमार, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/344787 प्राचीन भारत में जल प्रबन्धन], सन २०१७, शोध केन्द्र - काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (पृ० २७)।</ref> |
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| | ====कूप॥ Well==== | | ====कूप॥ Well==== |
| − | कूप का व्यास ७ फीट से ७५ फीट तक होता था और इसमें जल निकासी डोल-डोरी से किया जाता है। | + | कूप गोलाकार होते हैं एवं इनका व्यास ७ फीट से ७५ फीट तक हो सकता है और इसमें जल निकासी के लिए किसी यंत्र डोल-डोरी (बाल्टी) आदि का प्रयोग किया जाता है। |
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| − | ==== वापी॥ Stepwell==== | + | ====वापी॥ Stepwell==== |
| − | वापी छोटा और चौकोर आकार का पोखर था इसकी लंबाई ७५ फीट से १५० फीट हो सकती थी जिसमें जलस्तर तक पैरों की सहायता से पहुँचा जा सकता था। | + | वापी छोटा और चौकोर आकार का पोखर होता था इसकी लंबाई ७५ फीट से १५० फीट हो सकती थी जिसमें जलस्तर तक पैरों की सहायता से पहुँचा जा सकता था। |
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| | वापी का अर्थ है "छोटे तालाब" (पानी के जलाशय)। इन्हें राजा द्वारा दो गांवों के बीच सीमा-जोड़ पर बनाया जाना चाहिए। मनुस्मृति में -<blockquote>तडागान्युदपानानि वाप्यः प्रस्रवणानि च। सीमासंधिषु कार्याणि देवतायतनानि च॥ (मनु स्मृति ८.२४८)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%83/%E0%A4%85%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83 मनु स्मृति], अध्याय-८, श्लोक-२४८।</ref></blockquote> | | वापी का अर्थ है "छोटे तालाब" (पानी के जलाशय)। इन्हें राजा द्वारा दो गांवों के बीच सीमा-जोड़ पर बनाया जाना चाहिए। मनुस्मृति में -<blockquote>तडागान्युदपानानि वाप्यः प्रस्रवणानि च। सीमासंधिषु कार्याणि देवतायतनानि च॥ (मनु स्मृति ८.२४८)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%83/%E0%A4%85%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83 मनु स्मृति], अध्याय-८, श्लोक-२४८।</ref></blockquote> |
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| | पुष्करिणी छोटा गोलाकार पोखर था जिसका व्यास १५० से ३०० फीट तक हो सकता था। | | पुष्करिणी छोटा गोलाकार पोखर था जिसका व्यास १५० से ३०० फीट तक हो सकता था। |
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| − | '''तडाग''' | + | '''तड़ाग''' |
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| | तडाग चौकोर आकार का पोखर था जिसकी लम्बाई ३०० से ४५० फीट तक होती थी। | | तडाग चौकोर आकार का पोखर था जिसकी लम्बाई ३०० से ४५० फीट तक होती थी। |
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| − | ====सरोवर॥ Tank====
| + | '''ह्रद''' |
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| − | ====तालाब॥ Pond====
| + | मत्स्यपुराण में इस प्रसंग में पांचवें वर्ग की चर्चा की गयी है, इसे ह्रद नाम दिया गया है। जिसमें साधारणतः पानी कभी नहीं सूखता हो। |
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| − | ====धनुषाकार कुआं॥ Arched-Well==== | + | ====नगर नियोजन एवं जलसंरचना==== |
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| − | ====घट एवं जलमंडप ॥ Ghat and Jalmandapa====
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| − | ==नगर नियोजन एवं जलसंरचना==
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| | वैदिक ऋषियों को समुद्र, नदी व पुष्करणियों से अत्यन्त ही लगाव था। इसी कारण ऋषियों के आश्रम और बस्तियाँ नदियों के किनारे ही विकसित हुए। ऋग्वेद में सर्वत्र जल को चार सूक्तों में आपो देवता कहकर संबोधित किया गया है। ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के तेईसवें सूक्त, जिसके द्रष्टा मेधातिथि काण्व हैं, इसके १६-२३ वें मन्त्रों में जल की स्तुति की गयी है। इसी के सप्तम मण्डल के ४७ वें तथा ४९वे सूक्त में मन्त्रद्रष्टा ऋषि वसिष्ठ मैत्रावरुणि ने आपो देवरूप जल की स्तुति की है। ४९ वें सूक्त में समुद्र को जलाशयों में ज्येष्ठ माना गया है -<ref>डॉ० धीरेन्द्र झा, [https://mahavirmandirpatna.org/dharmayan/wp-content/uploads/2021/05/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%9C%E0%A4%B2-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6-%E0%A4%A1%E0%A4%BE.-%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%9D%E0%A4%BE.pdf धर्मायण पत्रिका-वैदिक साहित्य में जल-विमर्श], सन २०२१, महावीर मन्दिर पटना (पृ० ११)।</ref> <blockquote>समुद्र ज्येष्ठाः सलिलस्य मध्यात्पुनाना यन्त्यनिविशमानाः। इन्द्रो या वज्री वृषभो रराद ता आपो देवीरिह मामवन्तु॥ (ऋग्वेद)</blockquote>समुद्र जिनमें ज्येष्ठ है, वे जल प्रवाह, सदा अन्तरिक्ष से आने वाले है। इन्द्रदेव ने जिनका मार्ग प्रशस्त किया है, वे जलदेव हमारी रक्षा करें। | | वैदिक ऋषियों को समुद्र, नदी व पुष्करणियों से अत्यन्त ही लगाव था। इसी कारण ऋषियों के आश्रम और बस्तियाँ नदियों के किनारे ही विकसित हुए। ऋग्वेद में सर्वत्र जल को चार सूक्तों में आपो देवता कहकर संबोधित किया गया है। ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के तेईसवें सूक्त, जिसके द्रष्टा मेधातिथि काण्व हैं, इसके १६-२३ वें मन्त्रों में जल की स्तुति की गयी है। इसी के सप्तम मण्डल के ४७ वें तथा ४९वे सूक्त में मन्त्रद्रष्टा ऋषि वसिष्ठ मैत्रावरुणि ने आपो देवरूप जल की स्तुति की है। ४९ वें सूक्त में समुद्र को जलाशयों में ज्येष्ठ माना गया है -<ref>डॉ० धीरेन्द्र झा, [https://mahavirmandirpatna.org/dharmayan/wp-content/uploads/2021/05/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%9C%E0%A4%B2-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6-%E0%A4%A1%E0%A4%BE.-%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%9D%E0%A4%BE.pdf धर्मायण पत्रिका-वैदिक साहित्य में जल-विमर्श], सन २०२१, महावीर मन्दिर पटना (पृ० ११)।</ref> <blockquote>समुद्र ज्येष्ठाः सलिलस्य मध्यात्पुनाना यन्त्यनिविशमानाः। इन्द्रो या वज्री वृषभो रराद ता आपो देवीरिह मामवन्तु॥ (ऋग्वेद)</blockquote>समुद्र जिनमें ज्येष्ठ है, वे जल प्रवाह, सदा अन्तरिक्ष से आने वाले है। इन्द्रदेव ने जिनका मार्ग प्रशस्त किया है, वे जलदेव हमारी रक्षा करें। |
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| | ==निष्कर्ष॥ conclusion== | | ==निष्कर्ष॥ conclusion== |
| | + | हडप्पा नगर में खुदाई के दौरान जल संचयन प्रबन्धन व्यवस्था होने की जानकारी प्राप्त होती है। प्राचीन अभिलेखों में जल स्रोतों को पोषित करने के साक्ष्य मिलते हैं। पौराणिक ग्रन्थों में तथा जैन, बौद्ध साहित्य में नहरों, तालाबों, बांधों, कुओं और झीलों का विवरण मिलता है। प्राचीन काल में जल को विविध रूप में संग्रहित कर सदुपयोग किया जाता था, मनुस्मृति के अनुसार तालाबों, पोखरों, नहरों एवं अन्य जलाशयों से गाँव का सीमांकन किया जाता था। धर्मशास्त्रों में जलाशयों को क्षति पहुँचाने वालों के लिए कठोर दंड का विधान है। <ref>डॉ० आशा, [https://www.shodh.net/phocadownload/Vol-9-Issue-2/Shodh_Sanchayan_Vol_9_Issue_2_Article_2_Prachin_Kal_Me_Jal%20-%20Dr._Asha.pdf प्राचीन काल में जल स्रोतों को पल्लवित एवं पोषित करने के लिए मानवीय प्रयास], सन २०१८, शोध संचयन (पृ० १४)।</ref> |
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| | ==उद्धरण॥ References== | | ==उद्धरण॥ References== |
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| | <references /> | | <references /> |