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| − | कठोपनिषद् सर्वाधिक स्पष्ट और प्रसिद्ध उपनिषद् है। इसका संबंध कृष्णयजुर्वेद की कठ-शाखा से है। इसके नाम 'कठोपनिषद्' का यही आधार है। इस उपनिषद् को 'काठक' नाम से भी जाना जाता है। अतः इसके प्रणेता कठ ऋषि माने जाते हैं। इसमें काव्यात्मक मनोरम शैली में गूढ दार्शनिक तत्त्वों का विवेचन है। अपनी रोचकता के कारण यह सुविख्यात है। इसमें सुप्रसिद्ध यम और नचिकेता (नचिकेतस्) के संवादरूप से ब्रह्मविद्याका विस्तृत वर्णन है। | + | {{ToBeEdited}} |
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| | + | कठ उपनिषद् (संस्कृतः कठोपनिषद्) सर्वाधिक स्पष्ट और प्रसिद्ध उपनिषद् है। इसका संबंध कृष्णयजुर्वेद की कठ-शाखा से है। इसके नाम 'कठोपनिषद्' का यही आधार है। इस उपनिषद् को 'काठक' नाम से भी जाना जाता है। अतः इसके प्रणेता कठ ऋषि माने जाते हैं। इसमें काव्यात्मक मनोरम शैली में गूढ दार्शनिक तत्त्वों का विवेचन है। अपनी रोचकता के कारण यह सुविख्यात है। इसमें सुप्रसिद्ध यम और नचिकेता (नचिकेतस्) के संवादरूप से ब्रह्मविद्याका विस्तृत वर्णन है। |
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| | ==परिचय== | | ==परिचय== |
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| | कठोपनिषद् में अध्यात्म पक्ष के समान व्यवहार पक्ष भी महत्वपूर्ण है। विना विशिष्ट गुणों के आत्मानुभूति सम्भव नहीं है। मनुष्य को अपने मन , वाणी और कर्म पर नियन्त्रण रखना चाहिए। कठोपनिषद् में आध्यात्मिक उत्कर्ष की प्रेरणा के साथ-साथ लौकिक और व्यावहारिक उपदेश भी है। | | कठोपनिषद् में अध्यात्म पक्ष के समान व्यवहार पक्ष भी महत्वपूर्ण है। विना विशिष्ट गुणों के आत्मानुभूति सम्भव नहीं है। मनुष्य को अपने मन , वाणी और कर्म पर नियन्त्रण रखना चाहिए। कठोपनिषद् में आध्यात्मिक उत्कर्ष की प्रेरणा के साथ-साथ लौकिक और व्यावहारिक उपदेश भी है। |
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| − | * मानव कल्याण के हेतुभूत यज्ञ- भूतयज्ञ , पितृयज्ञ , अतिथि यज्ञ और देवयज्ञ का संकेत भी इसमें है। | + | *मानव कल्याण के हेतुभूत यज्ञ- भूतयज्ञ , पितृयज्ञ , अतिथि यज्ञ और देवयज्ञ का संकेत भी इसमें है। |
| | * इसका उद्देश्य परम सत्ता से साक्षात्कार करने के साथ-साथ व्यावहारिक दृष्टि से आदर्श समाज का निर्माण करना भी है। | | * इसका उद्देश्य परम सत्ता से साक्षात्कार करने के साथ-साथ व्यावहारिक दृष्टि से आदर्श समाज का निर्माण करना भी है। |
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| − | == परिभाषा== | + | ==परिभाषा== |
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| | ==कठ उपनिषद् - वर्ण्य विषय== | | ==कठ उपनिषद् - वर्ण्य विषय== |
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| | इस प्रश्न को, जो प्रतिदिन मनुष्यों के हृदयों में उत्पन्न होता रहता है, यहाँ बहुत ही रोचक रूप में बताया गया है। उपनिषद् का प्रारंभ एक आख्यायिका से होता है। एवं इसमें अन्य विषयों का भी वर्णन प्राप्त होता है - | | इस प्रश्न को, जो प्रतिदिन मनुष्यों के हृदयों में उत्पन्न होता रहता है, यहाँ बहुत ही रोचक रूप में बताया गया है। उपनिषद् का प्रारंभ एक आख्यायिका से होता है। एवं इसमें अन्य विषयों का भी वर्णन प्राप्त होता है - |
| − | * अतिथि-सत्कार | + | *अतिथि-सत्कार |
| − | * मंगल - भावना | + | *मंगल - भावना |
| − | * नचिकेता की पितृभक्ति | + | *नचिकेता की पितृभक्ति |
| − | * गुरु - शिष्य - संबंध | + | *गुरु - शिष्य - संबंध |
| − | * विवेक एवं संयम | + | *विवेक एवं संयम |
| − | * श्रेय और प्रेय मार्ग | + | *श्रेय और प्रेय मार्ग |
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| | नचिकेता की कथा | | नचिकेता की कथा |
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| | #प्रथम वर - पितृपरितोष (स्वर्गस्वरूपप्रदर्शन) | | #प्रथम वर - पितृपरितोष (स्वर्गस्वरूपप्रदर्शन) |
| | #द्वितीय वर - स्वर्गसाधनभूत अग्निविद्या (नाचिकेत अग्निचयनका फल) | | #द्वितीय वर - स्वर्गसाधनभूत अग्निविद्या (नाचिकेत अग्निचयनका फल) |
| − | # तृतीय वर - आत्मरहस्य (नाचिकेत की स्थिरता) | + | #तृतीय वर - आत्मरहस्य (नाचिकेत की स्थिरता) |
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| | ==दार्शनिक महत्त्व के सन्दर्भ== | | ==दार्शनिक महत्त्व के सन्दर्भ== |