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निद्रावस्था में हमारी मानसिक वृत्तियाँ सर्वथा निस्तेज नहीं हो जातीं। हाँ, जागृत अवस्था में जो शृंघला मानसिक वृत्तियों में देखी जाती है, वह अवश्य नष्ट हो जाती है। नाना प्रकार की अद्भुत चिन्ताएँ और दृश्य मन में उत्पन्न होते हैं, यही स्वप्न है। शास्त्रकार जिसे सुषुप्ति कहते हैं, निद्रा की उस प्रगाढ अवस्था में स्वप्न दिखलाई नहीं देते।<ref>डॉ० गिरीन्द्र शेखर, [https://ia801203.us.archive.org/33/items/in.ernet.dli.2015.539358/2015.539358.Swapna-Vigyan.pdf स्वप्न विज्ञान], सन 1942, किताब-महल, प्रयागराज (पृ० 14)।</ref> मुख्यतः स्वप्न सात प्रकार के होते हैं -  
 
निद्रावस्था में हमारी मानसिक वृत्तियाँ सर्वथा निस्तेज नहीं हो जातीं। हाँ, जागृत अवस्था में जो शृंघला मानसिक वृत्तियों में देखी जाती है, वह अवश्य नष्ट हो जाती है। नाना प्रकार की अद्भुत चिन्ताएँ और दृश्य मन में उत्पन्न होते हैं, यही स्वप्न है। शास्त्रकार जिसे सुषुप्ति कहते हैं, निद्रा की उस प्रगाढ अवस्था में स्वप्न दिखलाई नहीं देते।<ref>डॉ० गिरीन्द्र शेखर, [https://ia801203.us.archive.org/33/items/in.ernet.dli.2015.539358/2015.539358.Swapna-Vigyan.pdf स्वप्न विज्ञान], सन 1942, किताब-महल, प्रयागराज (पृ० 14)।</ref> मुख्यतः स्वप्न सात प्रकार के होते हैं -  
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* दृष्ट
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* '''दृष्ट -''' जो जागृत अवस्था में देखा हो उसी को स्वप्नावस्था में देखा जाए।
* श्रुत
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* '''श्रुत -''' सोने से पहले कभी किसी से सुना हो उसी को स्वप्ना में देखें।
* अनुभूत
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* '''अनुभूत -''' जो जागृत अवस्था में किसी भाँति अनुभव किया हो उसी को स्वप्न में देखना।
* प्रार्थित
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* '''प्रार्थित -''' जिसकी जागृत अवस्था में प्रार्थना इच्छा की हो उसी को स्वप्न में देखना।
* कल्पित
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* '''कल्पित -''' जागृत अवस्था में जिसकी कभी भी कल्पना न की गई हो उसी को स्वप्न में देखना।
* भाविक
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* '''भाविक -''' जो कभी न तो देखा गया हो और न सुना गया हो, पर जो भविष्य में घटित होने वाला हो उसे स्वप्न में देखा जाना भाविक स्वप्न कहलाते हैं।
* दोषज
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* '''दोषज -''' वात, पित्त और कफ के विकृत हो जाने पर देखे जाने वाले दोषज स्वप्न कहलाते हैं।
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इन सात प्रकार के स्वप्नों में से पहले पाँच प्रकार के स्वप्न प्रायः निष्फल होते हैं, वस्तुतः भाविक स्वप्न का फल ही सत्य होता है।
    
==स्वप्न की अवधारणा<ref>राजाराम शास्त्री, [https://indianculture.gov.in/ebooks/savapana-darasana-savapanaavasathaakaa-manaovaijanaana स्वप्न-दर्शन], सन 2004, काशी विद्यापीठ, बनारस (पृ० 15)।</ref>==
 
==स्वप्न की अवधारणा<ref>राजाराम शास्त्री, [https://indianculture.gov.in/ebooks/savapana-darasana-savapanaavasathaakaa-manaovaijanaana स्वप्न-दर्शन], सन 2004, काशी विद्यापीठ, बनारस (पृ० 15)।</ref>==
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