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| ==परिभाषा॥ Definition== | | ==परिभाषा॥ Definition== |
− | आयुर्वेद का अर्थ है- आयु को देने वाला वेद या शास्त्र। वृक्षायुर्वेद वृक्षों को दीर्घायुष्य एवं स्वास्थ्य प्रदान करने वाला शास्त्र है - <blockquote>वृक्षस्य आयुर्वेदः - वृक्षायुर्वेदः, अर्थात् तरुचिकित्सादिशास्त्रम्। (शब्दकल्पद्रुम)</blockquote> | + | आयुर्वेद का अर्थ है- आयु को देने वाला वेद या शास्त्र। वृक्षायुर्वेद वृक्षों को दीर्घायुष्य एवं स्वास्थ्य प्रदान करने वाला शास्त्र है - <blockquote>वृक्षस्य आयुर्वेदः - वृक्षायुर्वेदः, अर्थात् तरुचिकित्सादिशास्त्रम्। (शब्दकल्पद्रुम)</blockquote>वृक्षायुर्वेद का सामान्य अर्थ उस विद्या से है जो वृक्षों और पौधों की सम्यक वृद्धि तथा पर्यावरण की सुरक्षा से सम्बन्धित चिन्तन है। वृक्षायुर्वेद यह ग्रन्थ के रूप में सुरपाल की रचना एवं वराहमिहिर द्वारा रचित बृहत्संहिता में वृक्षायुर्वेद पर भी एक अध्याय और पण्डित चक्रपाणि मिश्र द्वारा रचित विश्ववल्लभ वृक्षायुर्वेद प्राप्त होता है। |
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| ==पेड़-पौधों में भेद॥ Difference between trees and plants== | | ==पेड़-पौधों में भेद॥ Difference between trees and plants== |
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| 5. बीजकंद भव – जो वनस्पति बीज और कंद दोनों से उत्पन्न होते हैं वह इस श्रेणी में आते हैं – इलायची, कमल प्याज आदि | | 5. बीजकंद भव – जो वनस्पति बीज और कंद दोनों से उत्पन्न होते हैं वह इस श्रेणी में आते हैं – इलायची, कमल प्याज आदि |
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− | ==वृक्ष रोग॥ Tree Disease == | + | ==वृक्ष रोग॥ Tree Disease== |
| ज्योतिषशास्त्र एवं भारतीय कृषि शास्त्र में वृक्षों में लगने वाले रोगों तथा उन रोगों से निदान पाने का वर्णन बहुत ही सरल तरीके से किया गया है। बृहत्-संहिता में वृक्षों में लगने वाले रोगों के ज्ञान के बारे में वर्णन मिलता है कि - <blockquote>शीतावातातपै रोगो जायते पाण्डुपत्रता। अवृद्धिश्च प्रवालानां शाखाशोषो रसस्रुतिः॥ (बृहत्संहिता)</blockquote> | | ज्योतिषशास्त्र एवं भारतीय कृषि शास्त्र में वृक्षों में लगने वाले रोगों तथा उन रोगों से निदान पाने का वर्णन बहुत ही सरल तरीके से किया गया है। बृहत्-संहिता में वृक्षों में लगने वाले रोगों के ज्ञान के बारे में वर्णन मिलता है कि - <blockquote>शीतावातातपै रोगो जायते पाण्डुपत्रता। अवृद्धिश्च प्रवालानां शाखाशोषो रसस्रुतिः॥ (बृहत्संहिता)</blockquote> |
| वृक्षों में अधिक शीत, वायु और धूप लगने से रोगों की उत्पत्ति होती है। रोगी वृक्षों के पत्ते पीले पड जाते हैं अर्तात सूखने लगते हैं। उनके अंकुर नहीं बढते हैं डालियाँ सूख जाती हैं और उनसे रस टपकने लगता है। सभी वृक्षों में दो प्रकार के व्याधियाँ (रोग) पाए जाते हैं - | | वृक्षों में अधिक शीत, वायु और धूप लगने से रोगों की उत्पत्ति होती है। रोगी वृक्षों के पत्ते पीले पड जाते हैं अर्तात सूखने लगते हैं। उनके अंकुर नहीं बढते हैं डालियाँ सूख जाती हैं और उनसे रस टपकने लगता है। सभी वृक्षों में दो प्रकार के व्याधियाँ (रोग) पाए जाते हैं - |
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− | #आन्तरिक रोग - वृक्षों की रचना के आधार पर वात, पित्त एवं कफ जन्य व्याधियाँ मुख्य हैं। | + | # आन्तरिक रोग - वृक्षों की रचना के आधार पर वात, पित्त एवं कफ जन्य व्याधियाँ मुख्य हैं। |
− | #बाह्य रोग - कीट, पतंगों के साथ ही शीत, ग्रीष्म एवं वर्षा आदि ऋतु के प्रभाव से वृक्षों में बाह्य व्याधियां होती हैं। | + | # बाह्य रोग - कीट, पतंगों के साथ ही शीत, ग्रीष्म एवं वर्षा आदि ऋतु के प्रभाव से वृक्षों में बाह्य व्याधियां होती हैं। |
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| वृक्षों को विभिन्न रोगों से बचाने के लिए उचित उपचार और पौधों की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है - <blockquote>पल्लवप्रसवोत्साहानां व्याधीनामाश्रमस्य च। रक्षार्थं सिद्धिकामानां प्रतिषेधो विधीयते॥ (वृक्षायुर्वेद)</blockquote>इन श्लोकों में वृक्षों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए पर्यावरणीय और जैविक उपायों पर जोर दिया गया है। <blockquote>श्रीफलं वातलं वातात् शीतलं च बृहस्पतेः। चन्दनं च जलं चैव ह्लादयेदभिषेचने॥ (वृक्षायुर्वेद)<ref>प्रो० एस०के० रामचन्द्र राव, [https://archive.org/details/vrkshayurvedas/page/n8/mode/1up वृक्षायुर्वेद], सन् 1993, कल्पतरु रिसर्च अकादमी, बैंगलूरू (पृ० 13)।</ref></blockquote>वृक्षों की सिंचाई के समय ठंडे जल, चन्दन, और औषधियों के उपयोग से उन्हें शीतलता और जीवन मिलता है। मिट्टी हटाकर नई मिट्टी भर दें और वृक्ष को दूध मिश्रित जल से सिञ्चित करें इससे वह वृक्ष पुनः हरा-भरा हो जाएगा। | | वृक्षों को विभिन्न रोगों से बचाने के लिए उचित उपचार और पौधों की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है - <blockquote>पल्लवप्रसवोत्साहानां व्याधीनामाश्रमस्य च। रक्षार्थं सिद्धिकामानां प्रतिषेधो विधीयते॥ (वृक्षायुर्वेद)</blockquote>इन श्लोकों में वृक्षों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए पर्यावरणीय और जैविक उपायों पर जोर दिया गया है। <blockquote>श्रीफलं वातलं वातात् शीतलं च बृहस्पतेः। चन्दनं च जलं चैव ह्लादयेदभिषेचने॥ (वृक्षायुर्वेद)<ref>प्रो० एस०के० रामचन्द्र राव, [https://archive.org/details/vrkshayurvedas/page/n8/mode/1up वृक्षायुर्वेद], सन् 1993, कल्पतरु रिसर्च अकादमी, बैंगलूरू (पृ० 13)।</ref></blockquote>वृक्षों की सिंचाई के समय ठंडे जल, चन्दन, और औषधियों के उपयोग से उन्हें शीतलता और जीवन मिलता है। मिट्टी हटाकर नई मिट्टी भर दें और वृक्ष को दूध मिश्रित जल से सिञ्चित करें इससे वह वृक्ष पुनः हरा-भरा हो जाएगा। |
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| शुक्रनीति में चौंसठ कलाओं के अंतर्गत वृक्षायुर्वेद के लिए वृक्षादिप्रसवारोपपालनादिकृतिः शब्द के द्वारा पेड़-पौधों की देखभाल, रोपाई, सिंचाई का ज्ञान आदि के रूप में व्यवहार किया गया है। | | शुक्रनीति में चौंसठ कलाओं के अंतर्गत वृक्षायुर्वेद के लिए वृक्षादिप्रसवारोपपालनादिकृतिः शब्द के द्वारा पेड़-पौधों की देखभाल, रोपाई, सिंचाई का ज्ञान आदि के रूप में व्यवहार किया गया है। |
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− | ==पर्यावरण का संकट और वृक्षायुर्वेद॥ Environmental crisis and Vriksha Ayurveda== | + | ==पर्यावरण का संकट और वृक्षायुर्वेद॥ Environmental crisis and Vriksha Ayurveda == |
| पर्यावरणीय संकट वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर एक गंभीर समस्या बन चुका है। वनस्पति और वृक्षों की घटती संख्या ने पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाला है, जिससे जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। वृक्षायुर्वेद पर्यार्णीय संकट के लिए अनेक प्रकार से लाभप्रद है - | | पर्यावरणीय संकट वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर एक गंभीर समस्या बन चुका है। वनस्पति और वृक्षों की घटती संख्या ने पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाला है, जिससे जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। वृक्षायुर्वेद पर्यार्णीय संकट के लिए अनेक प्रकार से लाभप्रद है - |
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| *प्राकृतिक उपचार विधियाँ | | *प्राकृतिक उपचार विधियाँ |
| *वनों का संरक्षण एवं पुनर्वनीकरण | | *वनों का संरक्षण एवं पुनर्वनीकरण |
− | *वृक्षों के लिए जल प्रबंधन एवं जल संचयन | + | * वृक्षों के लिए जल प्रबंधन एवं जल संचयन |
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| वर्तमान समय में पर्यावरणीय संकट का समाधान अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इसके लिए प्राचीन भारतीय ज्ञान, विशेषकर वृक्षायुर्वेद, अत्यधिक उपयोगी साबित हो सकता है। वृक्षों की घटती संख्या ने जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता की हानि और पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन जैसी समस्याएँ उत्पन्न की हैं। वृक्षायुर्वेद के अनुसार वृक्षारोपण, वनों की रक्षा, और प्राकृतिक उपचार के तरीकों का पालन करके इन समस्याओं का समाधान संभव है। आधुनिक तकनीकों के साथ वृक्षायुर्वेद के सिद्धांतों का मेल करके हम पर्यावरण की सुरक्षा और पुनर्स्थापना के लिए एक स्थायी और प्रभावी समाधान पा सकते हैं। | | वर्तमान समय में पर्यावरणीय संकट का समाधान अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इसके लिए प्राचीन भारतीय ज्ञान, विशेषकर वृक्षायुर्वेद, अत्यधिक उपयोगी साबित हो सकता है। वृक्षों की घटती संख्या ने जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता की हानि और पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन जैसी समस्याएँ उत्पन्न की हैं। वृक्षायुर्वेद के अनुसार वृक्षारोपण, वनों की रक्षा, और प्राकृतिक उपचार के तरीकों का पालन करके इन समस्याओं का समाधान संभव है। आधुनिक तकनीकों के साथ वृक्षायुर्वेद के सिद्धांतों का मेल करके हम पर्यावरण की सुरक्षा और पुनर्स्थापना के लिए एक स्थायी और प्रभावी समाधान पा सकते हैं। |