Changes

Jump to navigation Jump to search
नया पृष्ठ निर्माण - चित्रकला
भारतीय चौंसठ कलाओं में चित्रकला का विशेष स्थान है। चित्रकला (Painting) प्राचीन भारत की महत्वपूर्ण कलाओं में से एक थी। इसका अभ्यास विभिन्न प्रकार की पद्धतियों से किया जाता था, जिसमें भित्ति चित्र (Fresco), पट्ट चित्र (Canvas Painting) और हस्त चित्रण (Miniature Painting) प्रमुख थे। उदाहरण के लिए, अजन्ता और एलोरा की गुफाओं में बने भित्ति चित्र प्राचीन भारतीय चित्रकला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

== परिचय॥ Introduction ==
कामसूत्र में चौंसठ कलाओं का वर्णन किया गया है, जहाँ चित्रकला को महत्वपूर्ण कला के रूप में स्थान दिया गया है - <blockquote>लेख्यादि-ज्ञानं। (लेखन और चित्रकला का ज्ञान)</blockquote>यह उद्धरण स्पष्ट रूप से चित्रकला को उन कलाओं में सम्मिलित करता है, जिन्हें एक शिक्षित और परिपूर्ण व्यक्ति को सीखना चाहिए।

इसके अतिरिक्त, ''विष्णुधर्मोत्तर पुराण'' में भी चित्रकला को अन्य कलाओं के साथ महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसमें चित्रकला के नियमों और सिद्धांतों पर विस्तृत चर्चा की गई है। इसका उल्लेख निम्नलिखित रूप से किया गया है:<blockquote>चित्रकला आत्मज्ञान का स्रोत है और यह ध्यान और साधना की एक विधि भी है। (''विष्णुधर्मोत्तर पुराण'', तृतीय खंड)</blockquote>इस उद्धरण से यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारत में चित्रकला को केवल एक कलात्मक कौशल ही नहीं, बल्कि एक ध्यान और साधना की विधि के रूप में भी देखा जाता था, जो आत्मज्ञान का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

== चित्रकला का महत्व ==
संस्कृत शास्त्रों में चित्रकला का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण और सम्मानजनक है। चित्रकला को केवल एक कला के रूप में नहीं, बल्कि एक साधना और आत्म-अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में देखा गया है। इसका उल्लेख विभिन्न संस्कृत ग्रंथों में मिलता है, जिनमें कामसूत्र, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, अग्निपुराण, और अन्य शास्त्र शामिल हैं। इन शास्त्रों में चित्रकला के सिद्धांत, तकनीक और इसके धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व को भी विस्तृत रूप से वर्णित किया गया है।

=== विष्णुधर्मोत्तर पुराण में चित्रकला का स्थान ===
विष्णुधर्मोत्तर पुराण में चित्रकला का विस्तृत और गहन वर्णन मिलता है। इसमें चित्रकला को विभिन्न कला विधाओं में श्रेष्ठ बताया गया है, और इसके नियमों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसे आत्मज्ञान का साधन और साधना का एक रूप माना गया है - <blockquote>यथा शिल्पे तथा चित्रे यथा चित्रे तथा नरः। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, तृतीय खंड, अध्याय 35)</blockquote>अर्थात, "जैसे शिल्प में वैसी ही कला चित्रकला में होती है, और जैसा चित्रकला में होता है, वैसा ही मनुष्य का स्वरूप होता है।" यह उद्धरण दर्शाता है कि चित्रकला का प्रभाव मनुष्य के व्यक्तित्व और आत्मा पर पड़ता है, और यह व्यक्ति की आंतरिक भावना और आध्यात्मिकता को प्रकट करने का एक साधन है।

'''अग्निपुराण में चित्रकला'''

अग्निपुराण में भी चित्रकला का वर्णन मिलता है, जहाँ इसका संबंध वास्तुकला और शिल्पकला से जोड़ा गया है। इसमें चित्रकला के नियम, रंगों का उपयोग, और विभिन्न आकृतियों के निर्माण की विधियों का वर्णन किया गया है।<blockquote>चित्रं धर्मार्थकामानां साधनं च सदा भवेत्। (अग्निपुराण,अध्याय 38)</blockquote>अर्थात चित्रकला धर्म, अर्थ, और काम (तीन पुरुषार्थों) के साधन के रूप में सदा उपयोगी होती है। यह उद्धरण चित्रकला को जीवन के मुख्य उद्देश्यों — धर्म, अर्थ और काम — के साथ जोड़ता है, जो कि वैदिक परंपरा का मूल तत्व है।

'''अन्य ग्रंथों में चित्रकला'''

नाट्यशास्त्र जैसे ग्रंथों में भी चित्रकला का उल्लेख मिलता है, जहाँ इसे नाट्यकला का एक आवश्यक हिस्सा माना गया है। नाटक के मंच, वस्त्र, और पात्रों की साज-सज्जा में चित्रकला का महत्व बताया गया है।

संस्कृत शास्त्रों में चित्रकला को एक अत्यंत महत्वपूर्ण और सम्मानजनक स्थान दिया गया है। यह कला न केवल सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि यह आध्यात्मिक साधना, आत्म-अभिव्यक्ति, और जीवन के तीन प्रमुख उद्देश्यों — धर्म, अर्थ, और काम — को साधने का माध्यम भी है।

== उद्धरण ==
925

edits

Navigation menu