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| सूर्यग्रहण शराभाव अमान्त में होता है। सूर्य ग्रहण में छाद्य सूर्य तथा छादक चन्द्र होता है। सूर्य ग्रहण में विशेष रूप से लंबन एवं नति का विचार किया जाता है। सूर्यग्रहण का विचार शास्त्रों में इसलिये किया जाता है क्योंकि सूर्य का महत्व अत्यधिक है। सूर्य को संसार का आत्मा कहा गया है यथा- सूर्य आत्मा जगतः<nowiki>''</nowiki>। वस्तुतः सूर्य के प्रकाश से ही सारा संसार प्रकाशित होता है। ग्रह तथा उपग्रह भी सूर्य के प्रकाश के कारण ही प्रकाशित होते हैं। कहा जाता है कि-<blockquote>तेजसां गोलकः सूर्यः ग्रहर्क्षाण्यम्बुगोलकाः। प्रभावन्तो हि दृश्यन्ते सूर्यरश्मिप्रदीपिताः॥(सिद्धा०तत्ववि०)<ref>कमलाकर भट्ट, सिद्धान्ततत्वविवेकः, सन् १९९१, चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन, बिम्बाधिकार (पृ० ३१५)।</ref></blockquote>हम सभी जानते हैं कि प्रकाश की अवस्था में ही किसी वस्तु का होना या न होना हम देख सकते हैं अंधेरे में किसी का होना या न होना हम नहीं देख सकते। इसी प्रकाश का प्रमुख आधार या मूल सूर्य ही है। | | सूर्यग्रहण शराभाव अमान्त में होता है। सूर्य ग्रहण में छाद्य सूर्य तथा छादक चन्द्र होता है। सूर्य ग्रहण में विशेष रूप से लंबन एवं नति का विचार किया जाता है। सूर्यग्रहण का विचार शास्त्रों में इसलिये किया जाता है क्योंकि सूर्य का महत्व अत्यधिक है। सूर्य को संसार का आत्मा कहा गया है यथा- सूर्य आत्मा जगतः<nowiki>''</nowiki>। वस्तुतः सूर्य के प्रकाश से ही सारा संसार प्रकाशित होता है। ग्रह तथा उपग्रह भी सूर्य के प्रकाश के कारण ही प्रकाशित होते हैं। कहा जाता है कि-<blockquote>तेजसां गोलकः सूर्यः ग्रहर्क्षाण्यम्बुगोलकाः। प्रभावन्तो हि दृश्यन्ते सूर्यरश्मिप्रदीपिताः॥(सिद्धा०तत्ववि०)<ref>कमलाकर भट्ट, सिद्धान्ततत्वविवेकः, सन् १९९१, चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन, बिम्बाधिकार (पृ० ३१५)।</ref></blockquote>हम सभी जानते हैं कि प्रकाश की अवस्था में ही किसी वस्तु का होना या न होना हम देख सकते हैं अंधेरे में किसी का होना या न होना हम नहीं देख सकते। इसी प्रकाश का प्रमुख आधार या मूल सूर्य ही है। |
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− | विष्णु पुराण में ग्रहण का वर्णन किया गया है। इसमें राहु द्वारा सूर्य और चंद्रमा को ग्रसने का उल्लेख मिलता है, जो ग्रहण का कारण बनता है -<blockquote>राहुश्चन्द्रार्कयोः पिबति यदाह्नायिकं गृणन। लोकानां तमसाच्छन्नं व्याहतः सूर्यमण्डलः॥ (विष्णु पुराण)</blockquote>'''भाषार्थ -''' राहु, सूर्य और चंद्रमा को ग्रसने के लिए लगातार उनका पीछा करता है, जिससे सूर्य का मंडल अंधकार से ढक जाता है, और ग्रहण की स्थिति उत्पन्न होती है। | + | विष्णु पुराण में ग्रहण का वर्णन किया गया है। इसमें राहु द्वारा सूर्य और चंद्रमा को ग्रसने का उल्लेख मिलता है, जो ग्रहण का कारण बनता है -<blockquote>राहुश्चन्द्रार्कयोः पिबति यदाह्नायिकं गृणन। लोकानां तमसाच्छन्नं व्याहतः सूर्यमण्डलः॥ (विष्णु पुराण)</blockquote>'''भाषार्थ -''' राहु, सूर्य और चंद्रमा को ग्रसने के लिए लगातार उनका पीछा करता है, जिससे सूर्य का मंडल अंधकार से ढक जाता है, और ग्रहण की स्थिति उत्पन्न होती है। वराहमिहिर द्वारा रचित बृहत्संहिता में भी सूर्यग्रहण के प्रभावों और उनके समय के बारे में उल्लेख मिलता है - <blockquote>यदा ग्रहः सूर्यशशी च राहुणा गृह्येत तच्छेदसुताः प्रजाः स्मृताः। जनपदा व्याधिविवर्णविग्रहाः समुपयान्ति किलाहार्यमानिनी॥ (बृहत्संहिता)</blockquote>'''भाषार्थ -''' जब सूर्य या चंद्रमा को राहु ग्रहण करता है, तो यह संतान, प्रजा, और जनपदों में रोग, अशांति और संघर्ष को जन्म देता है। मनुस्मृति में ग्रहण के समय कुछ नियमों और विधियों का पालन करने के लिए कहा गया है -<blockquote>सूर्येण च समं ज्योतिः संवृतं यदा भवेत्। तदा हि सर्वभूतानि श्राम्यन्ति ग्रहणं हि तत्॥ (मनु स्मृति)</blockquote>भाषार्थ - जब सूर्य का प्रकाश ग्रहण के समय आच्छादित हो जाता है, तब सभी जीवधारी प्रभावित होते हैं, और यह स्थिति ग्रहण कहलाती है। |
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− | वराहमिहिर द्वारा रचित बृहत्संहिता में भी सूर्यग्रहण के प्रभावों और उनके समय के बारे में उल्लेख मिलता है - <blockquote>यदा ग्रहः सूर्यशशी च राहुणा गृह्येत तच्छेदसुताः प्रजाः स्मृताः। जनपदा व्याधिविवर्णविग्रहाः समुपयान्ति किलाहार्यमानिनी॥ (बृहत्संहिता)</blockquote>'''भाषार्थ -''' जब सूर्य या चंद्रमा को राहु ग्रहण करता है, तो यह संतान, प्रजा, और जनपदों में रोग, अशांति और संघर्ष को जन्म देता है। मनुस्मृति में ग्रहण के समय कुछ नियमों और विधियों का पालन करने के लिए कहा गया है -<blockquote>सूर्येण च समं ज्योतिः संवृतं यदा भवेत्। तदा हि सर्वभूतानि श्राम्यन्ति ग्रहणं हि तत्॥ (मनु स्मृति)</blockquote>भाषार्थ - जब सूर्य का प्रकाश ग्रहण के समय आच्छादित हो जाता है, तब सभी जीवधारी प्रभावित होते हैं, और यह स्थिति ग्रहण कहलाती है। | |
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| महाभारत में भी सूर्यग्रहण का वर्णन है, विशेषकर महाभारत युद्ध के संदर्भ में - <blockquote>तथैव दिवसे सूर्ये राहुणा गगने ग्रसे। अन्यं लोकं समायान्ति सत्त्वानि भयपीडिताः॥ (महाभारत)</blockquote>'''भाषार्थ -''' जिस प्रकार दिन के समय राहु सूर्य को ग्रहण करता है, वैसे ही सभी प्राणी भयभीत होकर अन्य लोकों में चले जाते हैं। | | महाभारत में भी सूर्यग्रहण का वर्णन है, विशेषकर महाभारत युद्ध के संदर्भ में - <blockquote>तथैव दिवसे सूर्ये राहुणा गगने ग्रसे। अन्यं लोकं समायान्ति सत्त्वानि भयपीडिताः॥ (महाभारत)</blockquote>'''भाषार्थ -''' जिस प्रकार दिन के समय राहु सूर्य को ग्रहण करता है, वैसे ही सभी प्राणी भयभीत होकर अन्य लोकों में चले जाते हैं। |
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| ==निष्कर्ष== | | ==निष्कर्ष== |
| सूर्यग्रहण को शास्त्रीय दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण धार्मिक और ज्योतिषीय घटना माना जाता है, जबकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह एक प्राकृतिक खगोलीय घटना है जिसका अध्ययन हमें ब्रह्मांड के बारे में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। दोनों दृष्टिकोणों में सूर्यग्रहण का महत्व अद्वितीय है, और यह हमें प्रकृति और खगोलशास्त्र के रहस्यों को समझने में मदद करता है। | | सूर्यग्रहण को शास्त्रीय दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण धार्मिक और ज्योतिषीय घटना माना जाता है, जबकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह एक प्राकृतिक खगोलीय घटना है जिसका अध्ययन हमें ब्रह्मांड के बारे में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। दोनों दृष्टिकोणों में सूर्यग्रहण का महत्व अद्वितीय है, और यह हमें प्रकृति और खगोलशास्त्र के रहस्यों को समझने में मदद करता है। |
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| + | ग्रहण के समय और विशेषतः सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करने और भूम्यादि दान देने का अनेकों जगह प्रमाण प्राप्त होते हैं।<ref>श्री शिवनाथ झारखण्डी, [https://ia804703.us.archive.org/8/items/in.ernet.dli.2015.483607/2015.483607.Bharteey-Jyontish.pdf भारतीय ज्योतिष], सन् १९७५, उत्तर प्रदेश शासन, हिन्दी समिति-लखनऊ (पृ० १६०)।</ref><blockquote>राहुग्रसदादित्यमपर्वणि विशांपते॥ (सभापर्व, अध्या०७९)</blockquote>पाण्डवों के वनवास के समय सूर्य-ग्रहण हुआ था। इसके सन्दर्भ में भट्टोत्पल ने बृहत्संहिता की टीका (राहुचार) में महाभारतोक्त इन ग्रहणों का विचार किया है। |
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| ==उद्धरण== | | ==उद्धरण== |