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− | भारतीय ज्योतिष त्रिस्कन्धात्मक गणित, गोल तर्क तथा यन्त्राश्रित एवं यन्त्रगम्य कालविधायक त्रिकालिक एवं सार्वदेशिक वेदांग है। भारतवर्ष में वेध परंपरा का प्रादुर्भाव वैदिक काल से ही आरंभ हो गया था, कालांतर में उसका क्रियान्वयन का स्वरूप समय-समय पर परिवर्तित होते रहा है। कभी तपोबल से समस्त ग्रहों की स्थितियों को जान लिया जाता था, फिर ग्रहों को प्राचीन वेध-यंत्रों से देखा जाने लगा। वर्तमान में अत्याधुनिक वेध-यंत्रों से आकाशीय पिंडों का अध्ययन करने की परंपरा आरंभ हो चुकी है। ब्रह्मगुप्त, लल्ल, श्रीपति और भास्कर द्वितीय द्वारा रचित सिद्धांतों में यंत्र-अध्याय नामक खगोलीय उपकरणों पर विशेष अध्याय प्राप्त होते हैं। प्राचीन ग्रंथों में अनेक यंत्रों का उल्लेख प्राप्त होता है। यन्त्रों से संबंधित विषयों का वर्णन यहां किया जा रहा है। | + | भारतीय ज्योतिष त्रिस्कन्धात्मक गणित, गोल तर्क तथा यन्त्राश्रित एवं यन्त्रगम्य कालविधायक त्रिकालिक एवं सार्वदेशिक वेदांग है। खगोलीय उपकरण वे यंत्र हैं जिनका उपयोग खगोल विज्ञान में आकाशीय पिंडों के अध्ययन के लिये किया जाता है। भारतवर्ष में वेध परंपरा का प्रादुर्भाव वैदिक काल से ही आरंभ हो गया था, कालांतर में उसका क्रियान्वयन का स्वरूप समय-समय पर परिवर्तित होते रहा है। कभी तपोबल से समस्त ग्रहों की स्थितियों को जान लिया जाता था, फिर ग्रहों को प्राचीन वेध-यंत्रों से देखा जाने लगा। वर्तमान में अत्याधुनिक वेध-यंत्रों से आकाशीय पिंडों का अध्ययन करने की परंपरा आरंभ हो चुकी है। ब्रह्मगुप्त, लल्ल, श्रीपति और भास्कर द्वितीय द्वारा रचित सिद्धांतों में यंत्र-अध्याय नामक खगोलीय उपकरणों पर विशेष अध्याय प्राप्त होते हैं। प्राचीन ग्रंथों में अनेक यंत्रों का उल्लेख प्राप्त होता है। यन्त्रों से संबंधित विषयों का वर्णन यहां किया जा रहा है। |
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| ==परिचय== | | ==परिचय== |
| भास्कराचार्य सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ के यंत्राध्याय प्रकरण में कहते हैं, काल के सूक्ष्म खंडों का ज्ञान यंत्रों के बिना संभव नहीं है। इसलिए अब मै यंत्रों के बारे में कहता हूं। वे नाड़ीवलय यंत्र, यष्टि यंत्र, घटी यंत्र, चक्र यंत्र, शंकु यंत्र , चाप , तुर्य, फलक आदि का वर्णन करते हैं। ब्राह्मस्फुटसिद्धांत को प्रथम ऐसा भारतीय पाठ माना जाता है, जिसमें खगोलीय उपकरणों की व्यवस्थित चर्चा की गई है। ब्रह्म स्फुट सिद्धांत के 22 वें अध्याय में, जीसे यंत्राध्याय कहा जाता है, ब्रह्म गुप्त ने विभिन्न प्रकार के खगोलीय उपकरणों का वर्णन किया है। | | भास्कराचार्य सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ के यंत्राध्याय प्रकरण में कहते हैं, काल के सूक्ष्म खंडों का ज्ञान यंत्रों के बिना संभव नहीं है। इसलिए अब मै यंत्रों के बारे में कहता हूं। वे नाड़ीवलय यंत्र, यष्टि यंत्र, घटी यंत्र, चक्र यंत्र, शंकु यंत्र , चाप , तुर्य, फलक आदि का वर्णन करते हैं। ब्राह्मस्फुटसिद्धांत को प्रथम ऐसा भारतीय पाठ माना जाता है, जिसमें खगोलीय उपकरणों की व्यवस्थित चर्चा की गई है। ब्रह्म स्फुट सिद्धांत के 22 वें अध्याय में, जीसे यंत्राध्याय कहा जाता है, ब्रह्म गुप्त ने विभिन्न प्रकार के खगोलीय उपकरणों का वर्णन किया है। |
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− | ==परिभाषा == | + | ==परिभाषा== |
| जिससे प्राकृतिक नैसर्गिक निर्माण के अनुकरण से सर्वविध मानवीय निर्माण की प्रक्रिया इसके अन्तर्गत आती हैं -<ref>प्रो० सच्चिदानन्द मिश्र, [https://bhu.ac.in/Images/files/p61_1.pdf भारतीय ज्योतिष का वैज्ञानिकत्व-एक समीक्षा], सन् २०१५-१६,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय-प्रज्ञा पत्रिका(पृ० ४)।</ref> <blockquote>यन्त्रीयते अनेन इति यन्त्रम्।</blockquote>अभियान्त्रिकी की अति उत्कृष्ट भारतीय परम्परा क्षीण अवस्था को प्राप्त होने पर भी सैद्धान्तिक दृष्टि से आज भी इसका कोई मुकाबला नहीं है। भारद्वाज प्रणीत यन्त्रसर्वस्व से काश्यपशिल्पम् समरांगणसूत्राधारादि महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। | | जिससे प्राकृतिक नैसर्गिक निर्माण के अनुकरण से सर्वविध मानवीय निर्माण की प्रक्रिया इसके अन्तर्गत आती हैं -<ref>प्रो० सच्चिदानन्द मिश्र, [https://bhu.ac.in/Images/files/p61_1.pdf भारतीय ज्योतिष का वैज्ञानिकत्व-एक समीक्षा], सन् २०१५-१६,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय-प्रज्ञा पत्रिका(पृ० ४)।</ref> <blockquote>यन्त्रीयते अनेन इति यन्त्रम्।</blockquote>अभियान्त्रिकी की अति उत्कृष्ट भारतीय परम्परा क्षीण अवस्था को प्राप्त होने पर भी सैद्धान्तिक दृष्टि से आज भी इसका कोई मुकाबला नहीं है। भारद्वाज प्रणीत यन्त्रसर्वस्व से काश्यपशिल्पम् समरांगणसूत्राधारादि महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। |
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− | ==यन्त्र-प्रमुख ग्रन्थ== | + | ==यन्त्र-प्रमुख ग्रन्थ == |
| इस तरह सूर्यसिद्धांत या आर्यभट्ट के काल से आरंभ कर लगभग 15 वीं शताब्दी तक मुख्यतया शंकुयंत्र , घटीयंत्र , नलिका यंत्र , यष्टि यंत्र , चापयंत्र , तुरीय यंत्र , फलक यंत्र , दिगंश यंत्र एवं स्वयंवह यंत्र का ही प्रयोग दिखाई देता है। इस काल के कुछ स्वतंत्र वेध ग्रंथ भी उपलब्ध होते हैं, जिनमें यंत्रों के निर्माण एवं प्रयोग विधि का सुस्पष्ट समावेश है , कुछ ग्रंथों में तो वर्णित यंत्रों के निर्माण एवं प्रयोग विधि का सुस्पष्ट समावेश है, कुछ ग्रंथों में तो वर्णित यंत्रों द्वारा साधित गणितीय तथ्य भी निर्दिष्ट हैं। उनमें से कुछ प्रमुख वेध ग्रंथो का परिचय इस प्रकार हैं।<ref>बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/SanskritVangmayaKaBrihatItihas/Sanskrit%20Vangmaya%20Ka%20Brihat%20Itihas%20XVl-Jyotisha/page/n147/mode/1up?view=theater संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास-ज्योतिष खण्ड], उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान (पृ० १८४)।</ref> | | इस तरह सूर्यसिद्धांत या आर्यभट्ट के काल से आरंभ कर लगभग 15 वीं शताब्दी तक मुख्यतया शंकुयंत्र , घटीयंत्र , नलिका यंत्र , यष्टि यंत्र , चापयंत्र , तुरीय यंत्र , फलक यंत्र , दिगंश यंत्र एवं स्वयंवह यंत्र का ही प्रयोग दिखाई देता है। इस काल के कुछ स्वतंत्र वेध ग्रंथ भी उपलब्ध होते हैं, जिनमें यंत्रों के निर्माण एवं प्रयोग विधि का सुस्पष्ट समावेश है , कुछ ग्रंथों में तो वर्णित यंत्रों के निर्माण एवं प्रयोग विधि का सुस्पष्ट समावेश है, कुछ ग्रंथों में तो वर्णित यंत्रों द्वारा साधित गणितीय तथ्य भी निर्दिष्ट हैं। उनमें से कुछ प्रमुख वेध ग्रंथो का परिचय इस प्रकार हैं।<ref>बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/SanskritVangmayaKaBrihatItihas/Sanskrit%20Vangmaya%20Ka%20Brihat%20Itihas%20XVl-Jyotisha/page/n147/mode/1up?view=theater संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास-ज्योतिष खण्ड], उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान (पृ० १८४)।</ref> |
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| बृहज्जातक | | बृहज्जातक |
− | |चक्र यंत्र | + | | चक्र यंत्र |
| |अंगूठी यंत्र | | |अंगूठी यंत्र |
| |- | | |- |
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| करणकुतूहल | | करणकुतूहल |
− | | चक्र यंत्र | + | |चक्र यंत्र |
| चाप यंत्र | | चाप यंत्र |
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| तर्जनीयंतरम | | तर्जनीयंतरम |
− | |जालतनालिक यंत्र | + | | जालतनालिक यंत्र |
| |स्टार प्रोजिशनिंग यंत्र | | |स्टार प्रोजिशनिंग यंत्र |
| |} | | |} |
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| ==यन्त्रों का प्राचीन नाम एवं उपयोगिता== | | ==यन्त्रों का प्राचीन नाम एवं उपयोगिता== |
− | भारतीय सिद्धान्त ग्रन्थों में अनेक यन्त्रों का वर्णन प्राप्त होता है, जिसमें राहु यन्त्र प्रमुख है। वराहमिहिर ने पञ्चसिद्धान्तिका में छायार्क साधन तथा छाया के माध्यम से लग्नानयन करने की विधि बतलायी है। सिद्धान्त शिरोमणि के गोलाध्याय में यन्त्राध्याय नामक एक अध्याय है, जिसमें गोलयन्त्र, नाडीवलययन्त्र, यष्टियन्त्र, शंकुयन्त्र, चक्रयन्त्र, घटीयन्त्र, चापयन्त्र, तुरीय यन्त्र और फलक यन्त्र बनाने का उल्लेख है। सूर्यसिद्धान्त में आठ यन्त्रों का उल्लेख प्राप्त होता है - <blockquote>शंकुयष्टिधनुश्चक्रैश्छायायन्त्रैरनेकधा। गुरूपदेशाद्विज्ञेयं कालज्ञानमतन्द्रितैः॥ | + | भारतीय सिद्धान्त ग्रन्थों में अनेक यन्त्रों का वर्णन प्राप्त होता है, जिसमें राहु यन्त्र प्रमुख है। वराहमिहिर ने पञ्चसिद्धान्तिका में छायार्क साधन तथा छाया के माध्यम से लग्नानयन करने की विधि बतलायी है। सिद्धान्त शिरोमणि के गोलाध्याय में यन्त्राध्याय नामक एक अध्याय है, जिसमें गोलयन्त्र, नाडीवलययन्त्र, यष्टियन्त्र, शंकुयन्त्र, चक्रयन्त्र, घटीयन्त्र, चापयन्त्र, तुरीय यन्त्र और फलक यन्त्र बनाने का उल्लेख है। सूर्यसिद्धान्त में आठ यन्त्रों का उल्लेख प्राप्त होता है - <blockquote>शंकुयष्टिधनुश्चक्रैश्छायायन्त्रैरनेकधा। गुरूपदेशाद्विज्ञेयं कालज्ञानमतन्द्रितैः॥ तोययन्त्रकपालाद्यैर्मयूरनरवानरैः। ससूत्ररेणुगर्भैश्च सम्यक् कालं प्रसाधयेत्॥ </blockquote>श्रीलल्लाचार्य ने द्वादश यन्त्रों का कथन किया है, जैसा कि उल्लिखित है - <blockquote>गोलो भगणश्चक्रं धनुर्घटीशंकुशकटकर्त्रर्यः। पीठकपालशलाका द्वादशयन्त्राणि सह यष्ट्या॥</blockquote>श्रीपति जी ने सिद्धान्त शेखर ग्रन्थ में विविध यन्त्रों का वर्णन किया है। इन्होंने दश यन्त्रों का उल्लेख किया है - <blockquote>गोलचक्रं कार्मुकं कर्त्तरी च कालज्ञाने यन्त्रमन्यत्कपालकम्। पीठं शंकु स्याद् घटीयष्टिसंज्ञं गन्त्रीयन्त्राण्यत्र दिक्सम्मितानि॥</blockquote>श्रीपति ने यन्त्रों का नाम उल्लेख करके उनके निर्माण का प्रकार तथा वेध की प्रक्रिया का निर्देश भी किया है। इसके अतिरिक्त कमलाकर भट्ट ने सिद्धान्ततत्त्व-विवेक में तथा सामन्तचन्द्रशेखर ने सिद्धान्तदर्पण में अनेक यन्त्रों का वर्णन किया है जो समस्त वेध उपयोगी थे। |
− | तोययन्त्रकपालाद्यैर्मयूरनरवानरैः। ससूत्ररेणुगर्भैश्च सम्यक् कालं प्रसाधयेत्॥ </blockquote>श्रीलल्लाचार्य ने द्वादश यन्त्रों का कथन किया है, जैसा कि उल्लिखित है - <blockquote>गोलो भगणश्चक्रं धनुर्घटीशंकुशकटकर्त्रर्यः। पीठकपालशलाका द्वादशयन्त्राणि सह यष्ट्या॥</blockquote>श्रीपति जी ने सिद्धान्त शेखर ग्रन्थ में विविध यन्त्रों का वर्णन किया है। इन्होंने दश यन्त्रों का उल्लेख किया है - <blockquote>गोलचक्रं कार्मुकं कर्त्तरी च कालज्ञाने यन्त्रमन्यत्कपालकम्। पीठं शंकु स्याद् घटीयष्टिसंज्ञं गन्त्रीयन्त्राण्यत्र दिक्सम्मितानि॥</blockquote>श्रीपति ने यन्त्रों का नाम उल्लेख करके उनके निर्माण का प्रकार तथा वेध की प्रक्रिया का निर्देश भी किया है। इसके अतिरिक्त कमलाकर भट्ट ने सिद्धान्ततत्त्व-विवेक में तथा सामन्तचन्द्रशेखर ने सिद्धान्तदर्पण में अनेक यन्त्रों का वर्णन किया है जो समस्त वेध उपयोगी थे। | |
| *आकाश में सुर्य चन्द्रमा का अवलोकन | | *आकाश में सुर्य चन्द्रमा का अवलोकन |
| *समय का ज्ञान और पञ्चांग का निर्माण | | *समय का ज्ञान और पञ्चांग का निर्माण |
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| भास्कराचार्य जी ने सिद्धान्तशिरोमणि में गोलबन्धाधिकार तथा यन्त्राध्याय नामक शीर्षकों में वेध यन्त्रों का सविस्तार वर्णन किया है इसमें भी कालानुसार आवश्यक संशोधन करके सम्राट जयसिंह जी ने जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, बनारस तथा मथुरा में वेधशालाएं स्थापित की। | | भास्कराचार्य जी ने सिद्धान्तशिरोमणि में गोलबन्धाधिकार तथा यन्त्राध्याय नामक शीर्षकों में वेध यन्त्रों का सविस्तार वर्णन किया है इसमें भी कालानुसार आवश्यक संशोधन करके सम्राट जयसिंह जी ने जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, बनारस तथा मथुरा में वेधशालाएं स्थापित की। |
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− | ==प्राच्य एवं अर्वाचीन यन्त्र== | + | == प्राच्य एवं अर्वाचीन यन्त्र == |
| ज्योतिष शास्त्र के अन्तर्गत वेध-यन्त्र द्वारा वेध करने की प्रक्रिया अतिप्राचीन काल से रही है। ज्योतिष शास्त्र के प्राचीन व अर्वाचीन आचार्यों ने विविध यन्त्रों का उपयोग अपने-अपने कालखण्डों में विधिवत् किया है। अतः प्राचीन काल खण्ड में वेध के लिये प्रयोग किये गये यन्त्र को प्राचीन तथा अर्वाचीन वाले वर्तमान यन्त्र के रूप में जाने जाते हैं - | | ज्योतिष शास्त्र के अन्तर्गत वेध-यन्त्र द्वारा वेध करने की प्रक्रिया अतिप्राचीन काल से रही है। ज्योतिष शास्त्र के प्राचीन व अर्वाचीन आचार्यों ने विविध यन्त्रों का उपयोग अपने-अपने कालखण्डों में विधिवत् किया है। अतः प्राचीन काल खण्ड में वेध के लिये प्रयोग किये गये यन्त्र को प्राचीन तथा अर्वाचीन वाले वर्तमान यन्त्र के रूप में जाने जाते हैं - |
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