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| == परिचय == | | == परिचय == |
− | कवि अपनी कृति के माध्यम से आदर्शो का प्रकाश विकर्ण कर मानवता को लोक कल्याण के पथ पर प्रशस्त करता है जो कृति केवल मनोरंजन ही कर सकती हैं, दिशा-बोध नहीं कर सकती, क्षणिक भले ही हो जाये। कालजयी कवि वाल्मीकि अपनी सामाजिक रचना रामायण से जन-जन के हृदय में प्रवेश कर गए हैं। वाल्मीकि एक सृजनशील कवि है जिन्होंने आदर्श-मूल्यों को मानव के समक्ष प्रस्तुत कर स्तुत्य कार्य किया है। यह एक निर्विवाद सत्य है कि रामायण में समस्त जीवन मूल्यों को प्रस्तुत किया है। स्वयं वाल्मीकि ने रामायण के लिए इस गर्वोक्ति को कहा था जो सत्यार्थ प्रतीत हो रही है। वाल्मीकि रामायण न केवल भारत में ही अपितु अन्य भी अनेक देशों में प्रसिद्ध हो गई है - <ref>शोधगंगा-श्रीसदन जोशी, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/296058 वाल्मीकि रामायण में जीवन मूल्य], सन् २०१०, शोधकेन्द्र- महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय (पृ० १८)</ref><blockquote>यावत् स्थास्यन्ति गिरयः सरितश्च महीतले। तावद्रामायणकथा लोकेषु प्रचरिष्यन्ति॥ (वा० रा० १,२,३६-३७)</blockquote>अतः प्राचीनतम श्रेष्ठ और विशिष्ट होने के साथ आदिकाव्य रामायण के विषय में ब्रह्मा के द्वारा कही गई उपर्युक्त युक्ति सही ही है। | + | कवि अपनी कृति के माध्यम से आदर्शो का प्रकाश विकर्ण कर मानवता को लोक कल्याण के पथ पर प्रशस्त करता है जो कृति केवल मनोरंजन ही कर सकती हैं, दिशा-बोध नहीं कर सकती, क्षणिक भले ही हो जाये। कालजयी कवि वाल्मीकि अपनी सामाजिक रचना रामायण से जन-जन के हृदय में प्रवेश कर गए हैं। वाल्मीकि एक सृजनशील कवि है जिन्होंने आदर्श-मूल्यों को मानव के समक्ष प्रस्तुत कर स्तुत्य कार्य किया है। यह एक निर्विवाद सत्य है कि रामायण में समस्त जीवन मूल्यों को प्रस्तुत किया है। स्वयं वाल्मीकि ने रामायण के लिए इस गर्वोक्ति को कहा था जो सत्यार्थ प्रतीत हो रही है। वाल्मीकि रामायण न केवल भारत में ही अपितु अन्य भी अनेक देशों में प्रसिद्ध हो गई है - <ref>शोधगंगा-श्रीसदन जोशी, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/296058 वाल्मीकि रामायण में जीवन मूल्य], सन् २०१०, शोधकेन्द्र- महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय (पृ० १८)</ref><blockquote>यावत् स्थास्यन्ति गिरयः सरितश्च महीतले। तावद्रामायणकथा लोकेषु प्रचरिष्यन्ति॥ (वा० रा० १,२,३६-३७)</blockquote>अतः प्राचीनतम श्रेष्ठ और विशिष्ट होने के साथ आदिकाव्य रामायण के विषय में ब्रह्मा के द्वारा कही गई उपर्युक्त युक्ति सही ही है। रामायण चतुर्विंशति संहिता के नाम से विख्यात है, क्योंकि इसमें २४ हजार श्लोक हैं। भारतीय परम्परा के अनुसार आदि कवि ने त्रेता युग के प्रारम्भ में , राम के जन्म के पूर्व ही, रामायण की रचना की थी। भारतीय जनजीवन में आदि काव्य धार्मिक ग्रन्थ के रूप में समादृत है। |
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− | == आदिकवि-वाल्मीकि == | + | ==आदिकवि-वाल्मीकि== |
| आदिकवि वाल्मीकि के विषय में बहुत अधिक उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। भविष्यपुराण के प्रतिसर्गपर्व में वाल्मीकि के विषय में एक कथा का उल्लेख किया गया है। वाल्मीकि के कुल, वंश, विद्याग्रहण आदि के विषय में कहीं कुछ भी उल्लेख नहीं उपलब्ध होता है। अध्यात्मरामायण तथा कृत्तिवासकृत बंगरामायण में वाल्मीकि को च्यवन के पुत्र के रूप में कहा गया है। | | आदिकवि वाल्मीकि के विषय में बहुत अधिक उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। भविष्यपुराण के प्रतिसर्गपर्व में वाल्मीकि के विषय में एक कथा का उल्लेख किया गया है। वाल्मीकि के कुल, वंश, विद्याग्रहण आदि के विषय में कहीं कुछ भी उल्लेख नहीं उपलब्ध होता है। अध्यात्मरामायण तथा कृत्तिवासकृत बंगरामायण में वाल्मीकि को च्यवन के पुत्र के रूप में कहा गया है। |
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| + | ==रामायण का रचनाकाल== |
| + | आदिकाव्य रामायण के रचनाकाल के विषय में गम्भीरतापूर्वक विचार करने पर हमें यह ज्ञात होता है कि यद्यपि वैदिक-साहित्य में रामायण के कुछ पात्रों के नामों का उल्लेख मिलता है, जैसे कि सीता, जनक, राम, मरुत् इत्यादि। परन्तु न तो उनके पारस्परिक सम्बन्ध की कोई सूचना दी गई है और न ही उनके सम्बन्ध में रामायण की कथा का निर्देश कहीं प्राप्त होता है। |
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| ==रामायण की विषय-वस्तु== | | ==रामायण की विषय-वस्तु== |
| वाल्मीकि-रामायण वस्तुतः वह अमर रचना है जिसमें विश्वसनीय तत्वों का समावेश हुआ है, जिस कारण से यह समस्त मानव-समाज को आह्लादित व प्रसन्न कर रही है। वाल्मीकि रामायण की रचना हुए शताब्दियाँ व्यतीत हो गईं है, परन्तु इसका प्रभाव आज भी मानव मस्तिष्क पर उतना ही है जितना यह पूर्व काल में था। वस्तुतः रामायण मानव-हृदय को पूर्णरूप से उद्वेलित करती है। सर्वप्रथम तमसा नदी के तट पर स्नान करते समय घायल क्रौंच के विलाप के द्वारा, बाद में ब्रह्माजी के आदेश से यह रचना की। वाल्मीकि रामायण को ७ काण्डों में विभक्त किया गया है - | | वाल्मीकि-रामायण वस्तुतः वह अमर रचना है जिसमें विश्वसनीय तत्वों का समावेश हुआ है, जिस कारण से यह समस्त मानव-समाज को आह्लादित व प्रसन्न कर रही है। वाल्मीकि रामायण की रचना हुए शताब्दियाँ व्यतीत हो गईं है, परन्तु इसका प्रभाव आज भी मानव मस्तिष्क पर उतना ही है जितना यह पूर्व काल में था। वस्तुतः रामायण मानव-हृदय को पूर्णरूप से उद्वेलित करती है। सर्वप्रथम तमसा नदी के तट पर स्नान करते समय घायल क्रौंच के विलाप के द्वारा, बाद में ब्रह्माजी के आदेश से यह रचना की। वाल्मीकि रामायण को ७ काण्डों में विभक्त किया गया है - |
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− | # बालकाण्ड | + | #बालकाण्ड |
− | # अयोध्या काण्ड | + | #अयोध्या काण्ड |
− | # अरण्यकाण्ड | + | #अरण्यकाण्ड |
− | # किष्किन्धाकाण्ड | + | #किष्किन्धाकाण्ड |
− | # सुन्दरकाण्ड | + | #सुन्दरकाण्ड |
− | # युद्धकाण्ड | + | #युद्धकाण्ड |
− | # उत्तर काण्ड | + | #उत्तर काण्ड |
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| इस प्रकार से रामायण को ७ काण्डों में विभक्त किया गया है। रामायण-कथा की विलक्षणता यह है कि इसके गायक कोई और नहीं, स्वयं वाल्मीकि शिष्य और राम के पुत्र लव-कुश हैं। इन यमल भाईयों ने राम के समक्ष सम्पूर्ण रामायण का मधुर स्वरों में गायन किया था। आदिकाव्य रामायण को 'चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता' कहते हैं, अर्थात् इसमें २४ हजार श्लोक हैं।<ref>बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/sanskrit-vangmaya-ka-brihat-ithas-iii-arsha-kavya-bholashankar-vyas/page/n13/mode/1up?view=theater संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास-आर्षकाव्य-खण्ड], सन् २००६, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ (पृ० १०)।</ref> | | इस प्रकार से रामायण को ७ काण्डों में विभक्त किया गया है। रामायण-कथा की विलक्षणता यह है कि इसके गायक कोई और नहीं, स्वयं वाल्मीकि शिष्य और राम के पुत्र लव-कुश हैं। इन यमल भाईयों ने राम के समक्ष सम्पूर्ण रामायण का मधुर स्वरों में गायन किया था। आदिकाव्य रामायण को 'चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता' कहते हैं, अर्थात् इसमें २४ हजार श्लोक हैं।<ref>बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/sanskrit-vangmaya-ka-brihat-ithas-iii-arsha-kavya-bholashankar-vyas/page/n13/mode/1up?view=theater संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास-आर्षकाव्य-खण्ड], सन् २००६, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ (पृ० १०)।</ref> |
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| '''4. किष्किन्धाकाण्ड -''' किष्किन्धाकाण्ड में कुल 67 सर्ग हैं। इस काण्ड में सीता माता की खोज करते हुए वसन्त ऋतु की मनोहर छटा को देखकर भगवान् राम का अत्यन्त अधीर होना, हनुमान के प्रयास राम-सुग्रीव में मित्रता होना, सुग्रीव का सीता को खोजने में सहयोग प्रदान करने का आश्वासन देना, राम द्वारा वालि का वध, मरणासन्न वालि को राम द्वारा ज्ञान दिया जाना, वालि का पश्चात्ताप करना और मृत्यु का वरण करना, सुग्रीव का राज्याभिषेक,्पश्चात सुग्रीव का प्रमाद, पुनः राम से आकर क्षमायाचना पूर्वक हनुमान सहित अन्य वानरों को सीता की खोज में भेजना, दक्षिण दिशा में हनुमान का प्रस्थान करना, सम्पाति से भेंट एवं सीता की सूचना से अवगत होना, हनुमान द्वारा समुद्र को पार करने के लिए प्रस्तुत होना इत्यादि कथाएं उपस्थापित हैं। | | '''4. किष्किन्धाकाण्ड -''' किष्किन्धाकाण्ड में कुल 67 सर्ग हैं। इस काण्ड में सीता माता की खोज करते हुए वसन्त ऋतु की मनोहर छटा को देखकर भगवान् राम का अत्यन्त अधीर होना, हनुमान के प्रयास राम-सुग्रीव में मित्रता होना, सुग्रीव का सीता को खोजने में सहयोग प्रदान करने का आश्वासन देना, राम द्वारा वालि का वध, मरणासन्न वालि को राम द्वारा ज्ञान दिया जाना, वालि का पश्चात्ताप करना और मृत्यु का वरण करना, सुग्रीव का राज्याभिषेक,्पश्चात सुग्रीव का प्रमाद, पुनः राम से आकर क्षमायाचना पूर्वक हनुमान सहित अन्य वानरों को सीता की खोज में भेजना, दक्षिण दिशा में हनुमान का प्रस्थान करना, सम्पाति से भेंट एवं सीता की सूचना से अवगत होना, हनुमान द्वारा समुद्र को पार करने के लिए प्रस्तुत होना इत्यादि कथाएं उपस्थापित हैं। |
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− | '''5. सुंदरकाण्ड -''' सुंदरकाण्ड में कुल 68 सर्ग प्राप्त होते हैं। इसमें मुख्यरूप से हनुमान का सागर लांघना, लंका में प्रवेश करना, रावण के अन्तःपुर में सीता की खोज करना््््् ्््््््््््् | + | '''5. सुंदरकाण्ड -''' सुंदरकाण्ड में कुल 68 सर्ग प्राप्त होते हैं। इसमें मुख्यरूप से हनुमान का सागर लांघना, लंका में प्रवेश करना, रावण के अन्तःपुर में सीता की खोज करना, लंका-दहन तथा वाटिकाविध्वंस कर हनुमान् का जाम्बवान् आदि के पास लौट आना तथा सीता का कुशल राम-लक्ष्मण को सुनाना। |
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| + | '''6. युद्धकाण्ड -''' राम का हनुमान जी की प्रशंसा, लंका की स्थिति के सम्बन्ध में प्रश्न, रामादि का लंका प्रयाण, विभीषण का राम की शरण में आना और राम की उनके साथ मन्त्रणा, समुद्र पर बाँध बाँधना, अंगद का दूत बनकर रावण के दरबार में जाना तथा लौट कर राम के पास आना, लंका पर चढाई, मेघनाद का राम-लक्ष्मण को घायल करना, सुषेण वैद्य एवं गरुड का आगमन एवं राम-लक्ष्मण का स्वस्थ होना, मेघनाद द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर लक्ष्मण को मूर्च्छित करना, हनुमान का द्रोण-पर्वत को लाकर लक्ष्मण को चेतना प्राप्त करवाना। |
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| + | '''7. उत्तरकाण्ड -''' राम जी के पास कौशिक, अगस्त्य आदि ऋषियों का आगमन, उनके द्वारा मेघनाद की प्रशंसा सुनने पर राम का उसके संबंध में जानने की जिज्ञासा प्रकट करना, अगस्त्य मुनि द्वारा रावण के पितामह पुलस्त्य एवं पिता विश्रवा की कथा सुनाना। |
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| ==रामायण के कुछ अन्य ग्रन्थ== | | ==रामायण के कुछ अन्य ग्रन्थ== |
− | रामकथा सम्बन्धी वर्णन करने वाला मुख्य ग्रन्थ तो महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण ही है, रामकथा का प्रमुख स्रोत वही है। रामायण की रचना के पश्चात् रामकथा का अतिशय प्रचार प्रसार हुआ, रचनाकारों के द्वारा विभिन्न प्रान्तीय भाषाओम में रामायण की रचना हुई है। किसी ने वेदान्त तो किसी किसी ने अध्यात्मवाद के विभिन्न पक्षों से राम को जोडकर अनेक रामायण ग्रन्थ लिखे। भारत ही नहीं अपितु तिब्बत, खोतान, जावा, सुमात्रा आदि देशों में भी रामायण का विपुल प्रचार-प्रसार है। इस खण्ड में कुछ प्रमुख रामायण ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है -<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/sanskrit-sahitya-ka-samikshatmak-itihas-dr-kapildeva-dwivedi_compress/page/n129/mode/1up संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास], सन् २०१७, विश्वभारती अनुसंधान परिषद, भदोही (पृ० ११३)। </ref> | + | रामकथा सम्बन्धी वर्णन करने वाला मुख्य ग्रन्थ तो महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण ही है, रामकथा का प्रमुख स्रोत वही है। रामायण की रचना के पश्चात् रामकथा का अतिशय प्रचार प्रसार हुआ, रचनाकारों के द्वारा विभिन्न प्रान्तीय भाषाओं में रामायण की रचना हुई है। किसी ने वेदान्त तो किसी किसी ने अध्यात्मवाद के विभिन्न पक्षों से राम को जोडकर अनेक रामायण ग्रन्थ लिखे। भारत ही नहीं अपितु तिब्बत, खोतान, जावा, सुमात्रा आदि देशों में भी रामायण का विपुल प्रचार-प्रसार है। वाल्मीकि की रामायण से प्रेरित होकर संस्कृत एवं अन्य भाषाओं में राम कथाओं की रचना हुई जिनमें प्रमुख हैं - <ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/sanskrit-sahitya-ka-samikshatmak-itihas-dr-kapildeva-dwivedi_compress/page/n129/mode/1up संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास], सन् २०१७, विश्वभारती अनुसंधान परिषद, भदोही (पृ० ११३)। </ref> |
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| #भुशुण्डी रामायण | | #भुशुण्डी रामायण |
| #तुलसी दास - रामचरित मानस | | #तुलसी दास - रामचरित मानस |
− | # कंब रामायण | + | #कंब रामायण |
| #आनंद रामायण | | #आनंद रामायण |
| #वाल्मीकि रामायण | | #वाल्मीकि रामायण |
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| #अध्यात्म रामायण | | #अध्यात्म रामायण |
| #तत्वसंग्रह रामायण | | #तत्वसंग्रह रामायण |
| + | इनके अतिरिक्त जैन परम्परा में विमलसूरि रचित पउमचरिउ प्राकृत में और रविषेण का पद्मचरित भी रामायण काव्य हैं। तमिल में कंबन रामायण, बंगला में कृत्तिवास और अवधि में रामचरितमानस की रचना हुई। राम-चरितमानस समस्त उत्तर भारत में जन-जन में अत्यन्त लोकप्रिय एवं प्रचलित हुई। |
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| ==रामायण का महत्व== | | ==रामायण का महत्व== |
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| '''राजनीतिक महत्व -''' राजा के कर्तव्य और अधिकार, राजा-प्रजा-सम्बन्ध, उच्च नागरिकता, उत्तराधिकार-विधान, शत्रु-संहार, पाप-विनाशन, सैन्य-संचालन आदि विषयों पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला गया है। | | '''राजनीतिक महत्व -''' राजा के कर्तव्य और अधिकार, राजा-प्रजा-सम्बन्ध, उच्च नागरिकता, उत्तराधिकार-विधान, शत्रु-संहार, पाप-विनाशन, सैन्य-संचालन आदि विषयों पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला गया है। |
| *वैदिक यज्ञीय सामग्रियों का वर्णन रामायण में मिलता है जैसे - आज्य, हवि, पुरोडाश, कुश तथा खादिरयूप। | | *वैदिक यज्ञीय सामग्रियों का वर्णन रामायण में मिलता है जैसे - आज्य, हवि, पुरोडाश, कुश तथा खादिरयूप। |
− | *यज्ञों में विहित दक्षिणा का प्रचलन रामायणकाल में भी था। | + | * यज्ञों में विहित दक्षिणा का प्रचलन रामायणकाल में भी था। |
| *यज्ञीय पशुबलि का भी उल्लेख रामायण में प्राप्त हो जाता है। | | *यज्ञीय पशुबलि का भी उल्लेख रामायण में प्राप्त हो जाता है। |
| *रामायण अनेक नीतिवाक्यों, सुभाषितों तथा राजनीतिपरक तथ्यों का संग्रह भी है। | | *रामायण अनेक नीतिवाक्यों, सुभाषितों तथा राजनीतिपरक तथ्यों का संग्रह भी है। |
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| *गोविन्दराज कृत रामायणभूषण - यह गोविन्दराजीय नाम से भी प्रख्यात है। प्रत्येक काण्ड में व्याख्यान के नाम ग्रन्थकार ने भिन्न-भिन्न दिये हैं। इस टीका के काण्डक्रम इस प्रकार हैं - मणिमंजीर, पीताम्बर, रत्नमेखल, मुक्ताहार, शृंगारतिलक, मणिमुकुट तथा रत्नकिरीट। | | *गोविन्दराज कृत रामायणभूषण - यह गोविन्दराजीय नाम से भी प्रख्यात है। प्रत्येक काण्ड में व्याख्यान के नाम ग्रन्थकार ने भिन्न-भिन्न दिये हैं। इस टीका के काण्डक्रम इस प्रकार हैं - मणिमंजीर, पीताम्बर, रत्नमेखल, मुक्ताहार, शृंगारतिलक, मणिमुकुट तथा रत्नकिरीट। |
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| + | '''रामायण के संस्करण''' |
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| + | वाल्मीकि रामायण के उपलब्ध होने वाले पाठ एकरूप नहीं मिलते हैं, उसके चार संस्करण मुख्य रूप से उपलब्ध होते हैं। इन चारों के अतिरिक्त बडौदा से प्रकाशित रामायण का आलोचनात्मक संस्करण आजकल विशेष रूप से प्रचलित है। ये संस्करण निम्नलिखित हैं - |
| + | |
| + | *औदीच्य संस्करण |
| + | *गौडीय संस्करण |
| + | *दाक्षिणात्य संस्करण |
| + | *पश्चिमोत्तरीय संस्करण |
| + | *आलोचनात्मक संस्करण |
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| + | ==रामायण के आख्यान== |
| + | संस्कृत के शब्दकोशों के अनुसार आख्यान शब्द के निम्नलिखित अर्थ स्वीकार किये जाते हैं - कथन, उक्ति, कथा, कहानी, वृत्तान्त, पुरावृत्तकथन, गाथा तथा आख्यायिका आदि। |
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| + | *विष्णु वामन आख्यान |
| + | *शुनः शेप का आख्यान |
| + | *इन्द्र-अहल्या आख्यान |
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| ==रामायण में इन्द्रियातीत वर्णन== | | ==रामायण में इन्द्रियातीत वर्णन== |
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| आकाशवाणी का अर्थ आकाश से उत्पन्न वाणी लिया जाता है। जो कि अलौकिक प्रतीत होता है।<ref>शोधगंगा-सन्तोष, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/303331 रामायण में इन्द्रियातीत सन्दर्भ], सन् २०१२, शोधकेन्द्र-महर्षि दयानन्द विश्विद्यालय, रोहतक (पृ० २४३)।</ref> | | आकाशवाणी का अर्थ आकाश से उत्पन्न वाणी लिया जाता है। जो कि अलौकिक प्रतीत होता है।<ref>शोधगंगा-सन्तोष, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/303331 रामायण में इन्द्रियातीत सन्दर्भ], सन् २०१२, शोधकेन्द्र-महर्षि दयानन्द विश्विद्यालय, रोहतक (पृ० २४३)।</ref> |
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− | * रामायण में आकाशीय पुष्प वृष्टि का उल्लेख हुआ है जिसमें आकाश से बादलों द्वारा पुष्प की वृष्टि प्रदर्शित की गई है। | + | *रामायण में आकाशीय पुष्प वृष्टि का उल्लेख हुआ है जिसमें आकाश से बादलों द्वारा पुष्प की वृष्टि प्रदर्शित की गई है। |
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| ==रामायणकालीन समाज एवं संस्कृति== | | ==रामायणकालीन समाज एवं संस्कृति== |