Line 2: |
Line 2: |
| | | |
| ==परिचय== | | ==परिचय== |
| + | कठोपनिषद् कृष्णयजुर्वेदकी कठशाखाके अन्तर्गत है। इसमें यम और नचिकेताके संवादरूप से ब्रह्मविद्याका बडा विशद वर्णन किया गया है। इसकी वर्णनशैली बडी ही सुबोध और सरल है। श्रीमद्भगवद्गीतामें भी इसके कई मन्त्रोंका कहीं शब्दतः और कहीं अर्थतः उल्लेख है। |
| + | |
| + | इसमें, अन्य उपनिषदोंकी तरह ही तत्त्वज्ञानका गम्भीर विवेचन है वहाँ नचिकेताका चरित्र भी पाठकों के सामने अनुपम आदर्श भी उपस्थित करता है। |
| + | |
| उद्दालक ऋषि के पुत्र वाजश्रवस सर्वमेध (विश्ववेदस् ) यज्ञ के अन्त में ऋत्विजों को जीर्ण-शीर्ण गायें दक्षिणा में दे रहे थे। नचिकेता (नचिकेतस्) उनका पुत्र था। उसको पिता के इस कृत्य पर ग्लानि हुई। उसने कहा- पिताजी मुझे किसको दोगे। पिता ने क्रोध में कहा - यम को।<ref>कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/vedicsahityaevamsanskritidr.kapildevdwivedi/page/n193/mode/1up वैदिक साहित्य एवं संस्कृति], सन् २०००, विश्वविद्यालय प्रकाशन (पृ० १७५)</ref> | | उद्दालक ऋषि के पुत्र वाजश्रवस सर्वमेध (विश्ववेदस् ) यज्ञ के अन्त में ऋत्विजों को जीर्ण-शीर्ण गायें दक्षिणा में दे रहे थे। नचिकेता (नचिकेतस्) उनका पुत्र था। उसको पिता के इस कृत्य पर ग्लानि हुई। उसने कहा- पिताजी मुझे किसको दोगे। पिता ने क्रोध में कहा - यम को।<ref>कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/vedicsahityaevamsanskritidr.kapildevdwivedi/page/n193/mode/1up वैदिक साहित्य एवं संस्कृति], सन् २०००, विश्वविद्यालय प्रकाशन (पृ० १७५)</ref> |
| | | |
− | ==परिभाषा== | + | कठोपनिषद् में अध्यात्म पक्ष के समान व्यवहार पक्ष भी महत्वपूर्ण है। विना विशिष्ट गुणों के आत्मानुभूति सम्भव नहीं है। मनुष्य को अपने मन , वाणी और कर्म पर नियन्त्रण रखना चाहिए। कठोपनिषद् में आध्यात्मिक उत्कर्ष की प्रेरणा के साथ-साथ लौकिक और व्यावहारिक उपदेश भी है। |
| + | |
| + | * मानव कल्याण के हेतुभूत यज्ञ- भूतयज्ञ , पितृयज्ञ , अतिथि यज्ञ और देवयज्ञ का संकेत भी इसमें है। |
| + | * इसका उद्देश्य परम सत्ता से साक्षात्कार करने के साथ-साथ व्यावहारिक दृष्टि से आदर्श समाज का निर्माण करना भी है। |
| + | |
| + | == परिभाषा== |
| + | |
| + | ==कठ उपनिषद् - वर्ण्य विषय== |
| + | |
| + | * अतिथि-सत्कार |
| + | * मंगल - भावना |
| + | * नचिकेता की पितृभक्ति |
| + | * गुरु - शिष्य - संबंध |
| + | * विवेक एवं संयम |
| + | * श्रेय और प्रेय मार्ग |
| + | |
| + | नचिकेता की कथा |
| + | |
| + | आत्म का स्वरूप |
| + | |
| + | आत्म की अनुभूति |
| + | |
| + | आत्म-अनुभूति के साधन |
| + | |
| + | वैयक्तिक आत्म और ब्रह्माण्डीय आत्म |
| + | |
| + | अनुभूति का फल |
| + | |
| + | जीवन-मुक्तिः जीवित रहते अनुभूति |
| | | |
− | ==कठ उपनिषद्==
| + | विदेह-मुक्ति |
| | | |
| ==यम-नचिकेता संवाद== | | ==यम-नचिकेता संवाद== |
Line 13: |
Line 45: |
| यमलोक में नचिकेता का गमन एवं यमराज का वरप्रदान - <ref>[https://ia801502.us.archive.org/18/items/Works_of_Sankaracharya_with_Hindi_Translation/Kathopanishad%20Sankara%20Bhashya%20with%20Hindi%20Translation%20-%20Gita%20Press%201951.pdf कठोपनिषद्] , सानुवाद शांकरभाष्य, सन् २००८, गीताप्रेस गोरखपुर।</ref> | | यमलोक में नचिकेता का गमन एवं यमराज का वरप्रदान - <ref>[https://ia801502.us.archive.org/18/items/Works_of_Sankaracharya_with_Hindi_Translation/Kathopanishad%20Sankara%20Bhashya%20with%20Hindi%20Translation%20-%20Gita%20Press%201951.pdf कठोपनिषद्] , सानुवाद शांकरभाष्य, सन् २००८, गीताप्रेस गोरखपुर।</ref> |
| | | |
− | # प्रथम वर - पितृपरितोष (स्वर्गस्वरूपप्रदर्शन) | + | #प्रथम वर - पितृपरितोष (स्वर्गस्वरूपप्रदर्शन) |
− | # द्वितीय वर - स्वर्गसाधनभूत अग्निविद्या (नाचिकेत अग्निचयनका फल) | + | #द्वितीय वर - स्वर्गसाधनभूत अग्निविद्या (नाचिकेत अग्निचयनका फल) |
| # तृतीय वर - आत्मरहस्य (नाचिकेत की स्थिरता) | | # तृतीय वर - आत्मरहस्य (नाचिकेत की स्थिरता) |
| | | |
Line 20: |
Line 52: |
| | | |
| #संसार अनित्य है। संसार के भोग-विलास क्षणिक हैं। धन से आत्मिक शान्ति नहीं मिलती। न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यः। (१, १, २७) | | #संसार अनित्य है। संसार के भोग-विलास क्षणिक हैं। धन से आत्मिक शान्ति नहीं मिलती। न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यः। (१, १, २७) |
− | # श्रेय और प्रेय दो मार्ग हैं। सामान्य जन जीवनयापन के लिए प्रेय मार्ग (भौतिक सुख) को अपनाते हैं, परंतु विद्वान् व्यक्ति श्रेयमार्ग (अध्यात्म मार्ग) को ही अपनाते हैं। श्रेयमार्ग आत्मिक शान्ति और मोक्ष का साधन है। श्रेयो हि धीरोऽभिप्रेयसो वृणीते , प्रेयो मन्दो योगक्षेमौ वृणीते। (१,२,२) | + | #श्रेय और प्रेय दो मार्ग हैं। सामान्य जन जीवनयापन के लिए प्रेय मार्ग (भौतिक सुख) को अपनाते हैं, परंतु विद्वान् व्यक्ति श्रेयमार्ग (अध्यात्म मार्ग) को ही अपनाते हैं। श्रेयमार्ग आत्मिक शान्ति और मोक्ष का साधन है। श्रेयो हि धीरोऽभिप्रेयसो वृणीते , प्रेयो मन्दो योगक्षेमौ वृणीते। (१,२,२) |
| #ओम् सारे वेदों और शास्त्रों का सार है। ओम् (ईश्वर, ब्रह्म) के लिए ही सारे जप-तप आदि किए जाते हैं। वही संसार में सबसे बडा सहारा (आलम्बन) है। सर्वे वेदा यत्पदम् आमनन्ति - तत्ते पदं संग्रहेण ब्रवीमि-ओम् इत्येतत्। (१,२, १५) एतदालम्बनं श्रेष्ठम् , एतदालम्बनं परम् । (१,२,१७) | | #ओम् सारे वेदों और शास्त्रों का सार है। ओम् (ईश्वर, ब्रह्म) के लिए ही सारे जप-तप आदि किए जाते हैं। वही संसार में सबसे बडा सहारा (आलम्बन) है। सर्वे वेदा यत्पदम् आमनन्ति - तत्ते पदं संग्रहेण ब्रवीमि-ओम् इत्येतत्। (१,२, १५) एतदालम्बनं श्रेष्ठम् , एतदालम्बनं परम् । (१,२,१७) |
| #आत्मा अजर और अमर है, न कभी उत्पन्न होता है और न कभी मरता है। यह सूक्ष्म से सूक्ष्म और महान् से महान् है। इसको ज्ञानी ही जान पाते हैं। यह प्रत्येक जीव के अन्दर विद्यमान है। न जायते म्रियते वा विपश्चित् । (१,२,१८ से २०) अणोरणीयान् महतो महीयान्०। (१,२,२०) | | #आत्मा अजर और अमर है, न कभी उत्पन्न होता है और न कभी मरता है। यह सूक्ष्म से सूक्ष्म और महान् से महान् है। इसको ज्ञानी ही जान पाते हैं। यह प्रत्येक जीव के अन्दर विद्यमान है। न जायते म्रियते वा विपश्चित् । (१,२,१८ से २०) अणोरणीयान् महतो महीयान्०। (१,२,२०) |
Line 27: |
Line 59: |
| | | |
| ==सारांश== | | ==सारांश== |
| + | प्रत्येक उपनिषद् का मन्तव्य व्यक्ति का आध्यात्मिक उन्नयन है। कठोपनिषद् नचिकेता और यम के मध्य संवाद-शैली में लिखा होने के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध है। उपनिषद् वाजश्रवा के पुत्र नचिकेता की कथा कहता है, जिसने यम द्वारा प्रदत्त शिक्षा ग्रहण की। कथा से आरम्भ कर उपनिषद् गहन दार्शनिक सत्यों को उद्घाटित करता है। यह लौकिक और पारलौकिक जगतों के बारे में सत्य का रहस्योद्घाटन करता है। |
| | | |
| ==उद्धरण== | | ==उद्धरण== |
| <references /> | | <references /> |