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काल गणना में महीनों का बहुत महत्व होता है। प्रस्तुत समय में ग्रेगोरियन कैलेंडर के प्रचार के साथ भी भारतीय महीनों के नाम आज भी अधिकांश लोगों को स्मरण हैं। यह जानना अति आवश्यक है कि भारतीय कालगणना में महीनों का नामकरण बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से किया गया है। आम लोगों में महीना या मास केवल एक ही प्रकार का होता है। परंतु खगोलीय दृष्टि से विचार करने पर मास के कई प्रकार होते हैं। सामान्यतः ज्योतिषीय व्यवहार में चांद्र, सौर, सावन और नाक्षत्र ये चार प्रकार के मास होते हैं। वैसे नौ प्रकार के मासों वा वर्ष का विचार प्रायः ज्योतिष के सिद्धांत ग्रंथों में मिलता है।
'''परिचय'''
तिथि का आरंभ और सूर्य संक्रमण (उसका एक राशि से दूसरी में गमन) दिन में किसी भी समय हो सकता है और वस्तुतः चांद्र और सौर मासों का आरंभ क्रमशः इन्हीं समयों से होता है, परंतु सूर्योदय से मासारंभ मानने से व्यवहार में सुविधा होती है। इसलिए जिस दिन सूर्योदय में प्रतिपदा रहती है, उसी दिन चांद्रमास का आरंभ मान लेते हैं। प्रतिपदा दो दिन सूर्योदय काल में रहने पर मासारंभ प्रथम दिन माना जाता है। सौर मासारंभ के निम्नलिखित कई नियम प्रचलित हैं। जैसे –
1. बंगाल में सूर्योदय और मध्यरात्रि के बीच में संक्रांति होने पर पर्वकाल उसी दिन मानते हैं। और मासारंभ दूसरे दिन करते हैं। मध्यरात्रि के बाद और सूर्योदय के पूर्व संक्रांति हुई तो पर्वकाल दूसरे दिन और मासारंभ तीसरे दिन मानते हैं।
2. उड़ीसा प्रांत में मासों का आरंभ संक्रांति के दिन ही होता है, संक्रांति चाहे जिस समय हो। मद्रास में भी दो नियम प्रचलित हैं –
a) तमिल प्रांत में सूर्यास्त के पूर्व संक्रांति होने पर उसी दिन और सूर्यास्त के बाद होने पर दूसरे दिन मासारंभ मानते हैं।
b) मालवार प्रांत में अपराह्न का आरंभ होने के पूर्व संक्रांति होने पर उसी दिन और बाद में होने पर दूसरे दिन मसारंभ मानते हैं।
द्वादशमासा पञ्चर्तवो हेमंतशिशिरयो समासेन। (ए० ब्रा० १.१)
ऋग्वेद में चांद्रमास और सौरवर्ष की चर्चा कई स्थानों पर आयी है। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि चांद्र और सौर का समन्वय करने के लिए अधिमास की कल्पना ऋग्वेद के समय में प्रचलित थी।[1]
----[1] <nowiki>https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.341974/page/n76/mode/1up</nowiki>
'''परिभाषा'''
'''मस्यते परीमीयते इति मासः।(....)'''
'''महीनों की वैज्ञानिक अवधारणा'''
'''सौर मास –''' सूर्य मेषादि 12 राशियों से भ्रमण करता है। इन राशियों में जिस मास सूर्य की संक्रांति होती है उसी को सौर मास कहते हैं। अथवा अन्य प्रकार से कहें तो सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति तक का समय सौर मास कहलाता है।
मेषादि सौरमासांस्ते भवंति रविसंक्रमात्। मधुश्च माधवश्चैव शुक्र शुचिरथो नभः॥
नभस्यश्चेष ऊर्जश्च सहश्चाथ सहस्यकः। तपस्तपस्यः क्रमतः सौरमासाः प्रकीर्तिता॥
यह मास प्रायः तीस इकतीस और कभी-काभी उनतीस और बत्तीस दिन का भी होता है। राशियों की कुल संख्या बारह है इसलिए सौर मास भी बारह ही होते हैं। वस्तुतः वेदों में भी 12 मासों का ही विधान किया जाना प्रकारांतर से अंतरिक्ष को 12 भागों में बांटे जाने का संकेत हैं। इन 12 भागों को ही 12 राशियां कहा जाता है। एक सौर वर्ष 365 दिन, 15 घटिका और 23 पलों का होता है।