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सुधार जारि
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==योग साधन==
 
==योग साधन==
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ज्योतिषशास्त्र में योगों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है - नैसर्गिक व तात्कालिक।
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* '''नैसर्गिक योग -''' नैसर्गिक योगों का सदैव एक ही क्रम रहता है और एक के बाद एक आते रहते हैं। विष्कुम्भादि 27 योग नैसर्गिक श्रेणी गत हैं।
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* '''तात्कालिक योग -''' तिथि-वार-नक्षत्रादि के विशेष संगम से तात्कालिक योग बनते हैं। आनन्द प्रभृति एवं क्रकच, उत्पात, सिद्धि तथा मृत्यु आदि योग तात्कालिक हैं।
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'''विष्कुम्भादि योग -''' किसी भी दिन विष्कुम्भादि वर्तमान योग ज्ञात करने के लिये पुष्य नक्षत्र से सूर्य नक्षत्र तक तथा श्रवण नक्षत्र से चन्द्र नक्षत्र तक गणना करके दोनों प्राप्त संख्याओं के योग में 27 का भाग देने पर अवशिष्ट अंकों के अनुसार विष्कुम्भादि योगों का क्रम जानना चाहिये। विष्कुम्भादि 27 योगों को इस सारणी के द्वारा भी समझा जा सकता है -
 
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|+(योग सारिणी, देवता एवं फल)<ref name=":0">श्री विन्ध्येश्वरीप्रसाद द्विवेदी, म्हूर्तचिन्तामणि, पीयूषधारा टीका, शुभाशुभ प्रकरण, सन् २०१८, वाराणसीः चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन (पृ०२८)</ref>
 
|+(योग सारिणी, देवता एवं फल)<ref name=":0">श्री विन्ध्येश्वरीप्रसाद द्विवेदी, म्हूर्तचिन्तामणि, पीयूषधारा टीका, शुभाशुभ प्रकरण, सन् २०१८, वाराणसीः चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन (पृ०२८)</ref>
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15
 
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+
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वज्र
 
वज्र
 
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अशुभ
 
अशुभ
 
|-
 
|-
| 2
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|2
 
|प्रीति
 
|प्रीति
 
|विष्णु
 
|विष्णु
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शुभ
 
शुभ
 
|-
 
|-
|3
+
| 3
 
|आयुष्मान्
 
|आयुष्मान्
 
|चन्द्र
 
|चन्द्र
| शुभ
+
|शुभ
 
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17
 
17
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|4
 
|4
 
|सौभाग्य
 
|सौभाग्य
| ब्रह्मा
+
|ब्रह्मा
 
|शुभ
 
|शुभ
 
|
 
|
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अशुभ
 
अशुभ
 
|-
 
|-
| 6
+
|6
 
|अतिगण्ड
 
|अतिगण्ड
 
|चन्द्र
 
|चन्द्र
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|
 
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मित्र
 
मित्र
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+
|
 
शुभ
 
शुभ
 
|-
 
|-
 
|7
 
|7
|सुकर्मा
+
| सुकर्मा
 
|इन्द्र
 
|इन्द्र
 
|शुभ
 
|शुभ
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|
 
|
 
22
 
22
|  
+
|
 
साध्य
 
साध्य
 
|
 
|
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शुभ
 
शुभ
 
|-
 
|-
| 9
+
|9
 
|शूल
 
|शूल
 
|सर्प
 
|सर्प
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|11
 
|11
 
|वृद्धि
 
|वृद्धि
| सूर्य
+
|सूर्य
 
|शुभ
 
|शुभ
 
|
 
|
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|
 
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26
 
26
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+
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ऐन्द्र
 
ऐन्द्र
 
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===आनन्दादि योग जानने का प्रकार===
 
===आनन्दादि योग जानने का प्रकार===
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आनन्दादि योग - वार और नक्षत्र के समाहार से तात्कालिक आनन्दादि २८ योगों का प्रादुर्भाव होता है। इन योगों को ज्ञात करने के हेतु वार विशेष को निर्दिष्ट नक्षत्र से विद्यमान नक्षत्र तक साभिजित् गणना की जाती है। रविवार को अश्विनी से, सोमवार को भरणी से, मंगल को आश्लेषा से, बुध को हस्त से, गुरू को अनुराधा से, शुक्र को उत्तराषाढा से तथा शनिवार को शतभिषा से और उस दिन के चन्द्र नक्षत्र तक गणना पर प्राप्त नक्षत्र की संख्या को ही उस दिन के वर्तमान आनन्दादि योग का क्रमांक जानना चाहिये। आनन्दादि योगों को सारणी के अनुसार जान सकते हैं -
 
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|+(सुगमता पूर्वक आनन्दादि योगों को जानने के लिये सारिणी)<ref name=":0" />
 
|+(सुगमता पूर्वक आनन्दादि योगों को जानने के लिये सारिणी)<ref name=":0" />
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|उ०भाद्र
 
|उ०भाद्र
 
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| 4
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|धाता
 
|धाता
 
|शुभ
 
|शुभ
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|पू०षाढा
 
|पू०षाढा
 
|धनिष्ठा
 
|धनिष्ठा
|रेवती
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| रेवती
 
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|सौम्य
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| सौम्य
 
|शुभ
 
|शुभ
 
|मृगशिरा
 
|मृगशिरा
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|ध्वांक्ष
 
|ध्वांक्ष
 
|अशुभ
 
|अशुभ
|आर्द्रा
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| आर्द्रा
 
|मघा
 
|मघा
 
|चित्रा
 
|चित्रा
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|भरणी
 
|भरणी
 
|-
 
|-
| 7
+
|7
 
|केतु
 
|केतु
|शुभ
+
| शुभ
 
|पुनर्वसु
 
|पुनर्वसु
 
|पू०फाल्गु
 
|पू०फाल्गु
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|श्रीवत्स
 
|श्रीवत्स
 
|शुभ
 
|शुभ
| पुष्य
+
|पुष्य
 
|उ०फाल्गु
 
|उ०फाल्गु
 
|विशाखा
 
|विशाखा
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|-
 
|9
 
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| वज्र
+
|वज्र
 
|अशुभ
 
|अशुभ
 
|आश्लेषा
 
|आश्लेषा
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