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'''शमो दानं यथाशक्तिर्गार्हस्थ्यो धर्म उच्यते॥'''<ref>डा० कामेश्वर उपाध्याय, हिन्दू जीवन पद्धति, सन् २०११, प्रकाशन- त्रिस्कन्धज्योतिषम् , पृ० ५८।</ref></blockquote>'''अर्थ-''' ब्राह्म मुहूर्तं मे जागना चाहिए, मूत्र-मल का विसर्जन, शुद्धि, दन्तधावन, स्नान, तर्पण, शुद्ध- पवित्र वस्त्र, तिलक, प्राणायाम- संध्यावन्दन, देव पूजा, अतिथि सत्कार, गोग्रास एवं जीवों को भोजन, पूर्वमुख मौन होकर भोजन, भोजन कर मुख ओर हाथ धोयें, ताम्बूल भक्षण, स्व-कार्य(जीविका हेतु), प्रातःसायं संध्या के पश्चात् वेद अध्ययन, धर्म चिन्तन, वैश्वदेव, हाथपैरधोकर भोजन, दोयाम (छःघण्टा) शयन, पानीपीने हेतु सिर की ओर पूर्णकुम्भ, ऋतुकाल (चतुर्थरात्रि से सोलहरात्रि) में पत्नी गमन आदि भारतीय जीवन पद्धति का यही सुव्यवस्थित पवित्र वैदिक एवं आयुर्वर्धक क्रम ब्रह्मपुराण मे दिया हआ है। इसे आलस्य, उपेक्षा, नास्तिकता या शरीर सुख मोह के कारण नहीं तोडना चाहिये।
 
'''शमो दानं यथाशक्तिर्गार्हस्थ्यो धर्म उच्यते॥'''<ref>डा० कामेश्वर उपाध्याय, हिन्दू जीवन पद्धति, सन् २०११, प्रकाशन- त्रिस्कन्धज्योतिषम् , पृ० ५८।</ref></blockquote>'''अर्थ-''' ब्राह्म मुहूर्तं मे जागना चाहिए, मूत्र-मल का विसर्जन, शुद्धि, दन्तधावन, स्नान, तर्पण, शुद्ध- पवित्र वस्त्र, तिलक, प्राणायाम- संध्यावन्दन, देव पूजा, अतिथि सत्कार, गोग्रास एवं जीवों को भोजन, पूर्वमुख मौन होकर भोजन, भोजन कर मुख ओर हाथ धोयें, ताम्बूल भक्षण, स्व-कार्य(जीविका हेतु), प्रातःसायं संध्या के पश्चात् वेद अध्ययन, धर्म चिन्तन, वैश्वदेव, हाथपैरधोकर भोजन, दोयाम (छःघण्टा) शयन, पानीपीने हेतु सिर की ओर पूर्णकुम्भ, ऋतुकाल (चतुर्थरात्रि से सोलहरात्रि) में पत्नी गमन आदि भारतीय जीवन पद्धति का यही सुव्यवस्थित पवित्र वैदिक एवं आयुर्वर्धक क्रम ब्रह्मपुराण मे दिया हआ है। इसे आलस्य, उपेक्षा, नास्तिकता या शरीर सुख मोह के कारण नहीं तोडना चाहिये।
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== शयनविधि॥ Shayana Vidhi ==
 
== शयनविधि॥ Shayana Vidhi ==
 
रात्रि मे सोने से पहले रात्रिसूक्त का पाठ करके सोना चाहिए। इस पाठ को करने वाला व्यक्ति दुःस्वप्न, अनिद्रा, निद्राभंग, भय, निर्जन शयन भय, भूत-परेत आदि भय, आकस्मिक उपद्रव आदि से सर्वथा सुरक्षित रहता हे। रात्रि में सोने के बाद उसे सर्पं आदि विषधर नहीं काट पाते। अग्नि, विषाक्त वायु आदि से भी उसे मृत्यु का भय नहीं होता हे। अतः प्राचीन भारत में रात्रिसूक्त का पाठ करके ही सोया जाता था। विशेष रूप से जँ रात्रि भय उपस्थित हो वहां इसका पाठ अवश्य करना चाहिए। अतिनिद्रा ओर अनिद्रा से वचने के लिए भी इसका पाठ करके सोना चाहिए।
 
रात्रि मे सोने से पहले रात्रिसूक्त का पाठ करके सोना चाहिए। इस पाठ को करने वाला व्यक्ति दुःस्वप्न, अनिद्रा, निद्राभंग, भय, निर्जन शयन भय, भूत-परेत आदि भय, आकस्मिक उपद्रव आदि से सर्वथा सुरक्षित रहता हे। रात्रि में सोने के बाद उसे सर्पं आदि विषधर नहीं काट पाते। अग्नि, विषाक्त वायु आदि से भी उसे मृत्यु का भय नहीं होता हे। अतः प्राचीन भारत में रात्रिसूक्त का पाठ करके ही सोया जाता था। विशेष रूप से जँ रात्रि भय उपस्थित हो वहां इसका पाठ अवश्य करना चाहिए। अतिनिद्रा ओर अनिद्रा से वचने के लिए भी इसका पाठ करके सोना चाहिए।
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निद्रादेवी -
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निद्रादेवी -<blockquote>या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥(दुर्गा सप्तशती)</blockquote>शरीर मे देवी तत्व ही निद्रा रूप में निवास करता हे। अतः निद्रा देवी को प्रणाम करके सोना चाहिए। शरीर के विश्राम के लिए ही प्रकृति ने निद्रा का शरीर में सन्निवेश किया है। अतः जिससे शरीर विश्राम कर सके उसे निद्रा कहते हैं।<blockquote>देहं विश्रमते यस्मात् तस्मान् निद्राप्रकीर्तिता।</blockquote>धर्म रस का पान करने वाला ही सुख की निद्रा को प्राप्त करता है। संयमी व्यक्ति को ही यथा समय निद्रा लगती है ओर खुलती है। अतः वैष्णवी शक्ति, योगमाया निद्रा देवी को प्रणाम करके सोना चाहिए।
 
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या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥(दुर्गा सप्तशती)
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शरीर मे देवी तत्व ही निद्रा रूप में निवास करता हे। अतः निद्रा देवी को प्रणाम करके सोना चाहिए। शरीर के विश्राम के लिए ही प्रकृति ने निद्रा का शरीर में सन्निवेश किया है। अतः जिससे शरीर विश्राम कर सके उसे निद्रा कहते हैं।
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निद्रा परिभाषा-<blockquote>यदा तु मनसि क्लान्ते कर्मात्मानः क्लमान्विताः। विषयेभ्यो निवर्तन्ते तदा स्वपिति मानवः॥(चरकसूत्रम्,२९)</blockquote>मन के थकने से इन्द्रियाँ थकती हैं।“इन्द्रियों के थकने से विषय निवृत्ति हो जाती है और मनुष्य सो जाता है।
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देहं विश्रमते यस्मात् तस्मान् निद्राप्रकीर्तिता।
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* यामद्वयं शयानस्तु ब्रह्मभूयाय कल्पते- छ. घण्टा से अधिक न सोयें।
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* न सन्ध्ययोः- सन्धि वेला (सूर्योदय-सूर्यास्त) में नहीं सोना चाहिए।
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धर्म रस का पान करने वाला ही सुख की निद्रा को प्राप्त करता है। संयमी व्यक्ति को ही यथा समय निद्रा लगती है ओर खुलती है। अतः वैष्णवी शक्ति, योगमाया निद्रा देवी को प्रणाम करके सोना चाहिए।
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धर्मशास्त्र में प्रायशः अनेक पर्वों में रात्रि जागरण हेतु विधान किया गया है। ध्येय है जहोँ भी रात्रि जागरण की व्यवस्था होती है, वहीं पर उपवास का भी विधान प्राप्त होता हे। रात्रि जागरण हेतु उपवास आवश्यक होता है। उपवास करके रात्रि जागरण करने पर कफ ओर अग्नि दोनों तत्व शान्त ओर सन्तुलित रहते है। अतिनिद्रा ओर अनिद्रा ये दोनो रोग के रूप में शरीर को कष्ट परहचाती है। अनिद्रा से जहाँ अंग मर्द, सिर का भारीपन, जम्हाई, जडता, ग्लानि, श्रम, अजीर्ण, तन्द्रा तथा वातजनित रोग होते हं वहीं पर अतिनिद्रा से शिथिलता, मस्तिष्क मे भारीपन, रक्तसंचरण में मन्दता तथा अनेक प्रकार की मानसिक बीमारियों पेदा होती है। आयुर्वेद के अनुसार काय विरेचन, शिरो विरेचन, व्यायाम, धुप्रपान उपवास, तथा पूजन आदि सं अतिनिद्रा दूर होती है।
 
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निद्रा परिभाषा-
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यदा तु मनसि क्लान्ते कर्मात्मानः क्लमान्विताः। विषयेभ्यो निवर्तन्ते तदा स्वपिति मानवः॥(चरकसूत्रम्,२९)
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मन के थकने से इन्द्रियाँ थकती हैं।“इन्द्रियों के थकने से विषय निवृत्ति हो जाती है और मनुष्य सो जाता है। धर्मशास्त्र में प्रायशः अनेक पर्वों में रात्रि जागरण हेतु विधान किया गया है। ध्येय है जहोँ भी रात्रि जागरण की व्यवस्था होती है, वहीं पर उपवास का भी विधान प्राप्त होता हे। रात्रि जागरण हेतु उपवास आवश्यक होता है। उपवास करके रात्रि जागरण करने पर कफ ओर अग्नि दोनों तत्व शान्त ओर सन्तुलित रहते है। अतिनिद्रा ओर अनिद्रा ये दोनो रोग के रूप में शरीर को कष्ट परहचाती है। अनिद्रा से जहाँ अंग मर्द, सिर का भारीपन, जम्हाई, जडता, ग्लानि, श्रम, अजीर्ण, तन्द्रा तथा वातजनित रोग होते हं वहीं पर अतिनिद्रा से शिथिलता, मस्तिष्क मे भारीपन, रक्तसंचरण में मन्दता तथा अनेक प्रकार की मानसिक बीमारियों पेदा होती है। आयुर्वेद के अनुसार काय विरेचन, शिरो विरेचन, व्यायाम, धुप्रपान उपवास, तथा पूजन आदि सं अतिनिद्रा दूर होती ह।
      
==दिनचर्या कब, कितनी ?==
 
==दिनचर्या कब, कितनी ?==
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==== विद्यार्थी की दिनचर्या ====
 
==== विद्यार्थी की दिनचर्या ====
 
समय पर सोना एवं समय पर जागना, वह स्वस्थ और दीर्घायुमान बने। ऐसी शिक्षा पूर्वकाल में बच्चों को दी जाती थी। आजकल बच्चे विलंब से सोते और उठते हैं। प्राचीनकाल में ऋषि-मुनियों का दिन ब्राह्ममुहूर्त से आरंभ होता था परन्तु आज वर्तमान काल में रात्रि में कार्य और दिन में नींद होती है। पूर्वकाल की दिनचर्या प्रकृति के अनुरूप थी। दिनचर्या जितनी अधिक प्रकृति के अनुरूप होगी उतनी ही स्वास्थ्य के लिये पूरक होती है। शास्त्रोक्त आचारों के पालन से रज एवं तम गुण न्यून होते एवं सत्वगुण में वृद्धि होती है। ज्ञानयोग, कर्मयोग आदि साधन मार्गों की तरह ही धार्मिक दिनचर्या भी उत्तम मार्ग प्रशस्त करती है।
 
समय पर सोना एवं समय पर जागना, वह स्वस्थ और दीर्घायुमान बने। ऐसी शिक्षा पूर्वकाल में बच्चों को दी जाती थी। आजकल बच्चे विलंब से सोते और उठते हैं। प्राचीनकाल में ऋषि-मुनियों का दिन ब्राह्ममुहूर्त से आरंभ होता था परन्तु आज वर्तमान काल में रात्रि में कार्य और दिन में नींद होती है। पूर्वकाल की दिनचर्या प्रकृति के अनुरूप थी। दिनचर्या जितनी अधिक प्रकृति के अनुरूप होगी उतनी ही स्वास्थ्य के लिये पूरक होती है। शास्त्रोक्त आचारों के पालन से रज एवं तम गुण न्यून होते एवं सत्वगुण में वृद्धि होती है। ज्ञानयोग, कर्मयोग आदि साधन मार्गों की तरह ही धार्मिक दिनचर्या भी उत्तम मार्ग प्रशस्त करती है।
      
ब्राह्ममुहूर्त में उठ कर स्नान-संध्या-वन्दन-गायत्री जप करके तप से परिपूर्ण जीवनचर्या का शुभारम्भ करें। सरस्वती और गणेश देवता को प्रणाम करें। योगासन और व्यायाम हितकारी मात्रा में करें। शरीर, मन, वाणी, बुद्धि, इन्द्रियों को एकाग्र करके गुरु मुख की ओर देखते हुए विद्या को आत्मसात् करना चाहिए-<blockquote>शरीरं चैव वाचं च बुद्धीन्द्रिय मनांसि च। नियम्य प्राञ्जलिस्तिष्ठेद् वीक्षमाणो गुरोर्मुखम् ॥</blockquote>सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, विद्या, देशभक्ति और आत्म त्याग के द्वारा विद्यार्थी को हमेशा सम्मान प्राप्त करना चाहिए-<blockquote>सत्येन ब्रहमचर्येण व्यायामेनाथ विद्यया। देशभक्त्याऽऽत्मत्यागेन सम्मानार्हो सदा भव॥</blockquote>
 
ब्राह्ममुहूर्त में उठ कर स्नान-संध्या-वन्दन-गायत्री जप करके तप से परिपूर्ण जीवनचर्या का शुभारम्भ करें। सरस्वती और गणेश देवता को प्रणाम करें। योगासन और व्यायाम हितकारी मात्रा में करें। शरीर, मन, वाणी, बुद्धि, इन्द्रियों को एकाग्र करके गुरु मुख की ओर देखते हुए विद्या को आत्मसात् करना चाहिए-<blockquote>शरीरं चैव वाचं च बुद्धीन्द्रिय मनांसि च। नियम्य प्राञ्जलिस्तिष्ठेद् वीक्षमाणो गुरोर्मुखम् ॥</blockquote>सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, विद्या, देशभक्ति और आत्म त्याग के द्वारा विद्यार्थी को हमेशा सम्मान प्राप्त करना चाहिए-<blockquote>सत्येन ब्रहमचर्येण व्यायामेनाथ विद्यया। देशभक्त्याऽऽत्मत्यागेन सम्मानार्हो सदा भव॥</blockquote>
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