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| == वारों के भेद == | | == वारों के भेद == |
| + | वारों के नाम एवं वार संबंधी कार्य हेतु शुभ अशुभ विचार किस वार में क्या करना चाहिये-<blockquote>आदित्यश्चन्द्रमा भौमो बुधश्चाथ बृहस्पतिः। शुक्रः शनैश्चरश्चैते वासराः परिकीर्तिताः॥</blockquote>आदित्य-रवि, चन्द्रमा-सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि क्रमशः ये सात वार होते हैं। |
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| + | ==== वारसंबंधी शुभाशुभ विचार ==== |
| + | <blockquote>गुरुश्चन्द्रो बुधः शुक्रः शुभा वाराः शुभे स्मृताः। क्रूरास्तु क्रूरकृत्येषु ग्राह्या भौमार्कसूर्यजाः॥</blockquote>बुध, गुरु, शुक्र और (शुक्ल पक्ष में) चन्द्र ये शुभ दिन हैं। इनमें शुभ कार्य सिद्ध होता है। रवि, मंगल, शनि ये क्रूर एवं पाप वार हैं। इन दिनों में क्रूर कर्म सिद्ध होता है। |
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| |+वारों के नाम, पर्यायवाची, वर्ण और वारप्रकृति तालिका | | |+वारों के नाम, पर्यायवाची, वर्ण और वारप्रकृति तालिका |
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| जो ग्रह बलवान् हो उसवार में जो कर्म करेंगे वह सफल होता है। किन्तु जो ग्रह षड्बल हीन है उस वार में बहुत प्रयत्न करने पर भी सफलता नहीं प्राप्त होती है। सोम, बुध, गुरु और शुक्र सभी शुभ कार्यों में शुभ होते हैं। रवि, भौम और शनि क्रूरकर्मों में इष्टसिद्धि देते हैं। | | जो ग्रह बलवान् हो उसवार में जो कर्म करेंगे वह सफल होता है। किन्तु जो ग्रह षड्बल हीन है उस वार में बहुत प्रयत्न करने पर भी सफलता नहीं प्राप्त होती है। सोम, बुध, गुरु और शुक्र सभी शुभ कार्यों में शुभ होते हैं। रवि, भौम और शनि क्रूरकर्मों में इष्टसिद्धि देते हैं। |
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− | ==== वारों में तैललेपन ====
| + | === वारों में तैललेपन === |
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| रविवार में तैललेपन करने से रोग, सोमवार में कान्तिकी वृद्धि, भौमवारमें व्याधि, बुधवारमें सौभाग्यवृद्धि, गुरुवार और शुक्रवारमें सौभाग्यहानि, शनिवार में धनसम्पत्ति की वृद्धि होती है।<blockquote>अभ्यक्तो भानुवारे यः स नरः क्लेशवान्भवेत् । ऋक्षेशे कान्तिभाग्भौमे व्याधिः सौभाग्यमिन्दुजे॥जीवे नैःस्वं सिते हानिर्मन्दे सर्वसमृद्धयः॥(ना०सं० श्लो०१५७/१५७)</blockquote> | | रविवार में तैललेपन करने से रोग, सोमवार में कान्तिकी वृद्धि, भौमवारमें व्याधि, बुधवारमें सौभाग्यवृद्धि, गुरुवार और शुक्रवारमें सौभाग्यहानि, शनिवार में धनसम्पत्ति की वृद्धि होती है।<blockquote>अभ्यक्तो भानुवारे यः स नरः क्लेशवान्भवेत् । ऋक्षेशे कान्तिभाग्भौमे व्याधिः सौभाग्यमिन्दुजे॥जीवे नैःस्वं सिते हानिर्मन्दे सर्वसमृद्धयः॥(ना०सं० श्लो०१५७/१५७)</blockquote> |
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− | === तैललेपन में दोष परिहार को === | + | ==== तैलाभ्यंग में वारदोष परिहार ==== |
| + | पकाया हुआ तेल, सरसों का तेल, पुष्पवासित(सुगंधित) तेल और किसी भी द्रव्य के संयोग से बना तेल निषिद्ध दिनों में भी लगाया जा सकता है-<blockquote>मन्त्रितं क्वधितं तैलं सार्षपं पुष्पवासितम् । द्रव्यान्तरयुतं वापि नैव दुष्येत् कदाचन॥</blockquote>यदि उपर्युक्त तेल का अभाव हो एवं आवश्यक कार्य के लिये तेललेपन(अभ्यंग आदि) करना भी हो तो रवि के दिन पुष्प के साथ तेल लगाना चाहिये। गुरु के दिन दूर्वा, मंगल के दिन मिट्टी, शुक्र के दिन गोबर मिलाने से दोष नहीं होता है- <blockquote>रवौ पुष्पं गुरौ दूर्वा मृत्तिका कुजवासरे। भार्गवे गोमयं दद्यात् तैलदोषस्य शान्तये॥</blockquote> |
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| === वारों में विहित कर्म === | | === वारों में विहित कर्म === |
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| [[File:क्रम दर्शिका.jpg|thumb|पीयूषधारा टीका( मुहूर्तचिन्तामणि)]] | | [[File:क्रम दर्शिका.jpg|thumb|पीयूषधारा टीका( मुहूर्तचिन्तामणि)]] |
| हमारे सौर मण्डलमें प्राचीन मत के अनुसार पृथ्वी, चन्द्र, बुध, सूर्य, मंगल, गुरु और शनि स्थित हैं। इनके ऊपर नक्षत्र मण्डल हैं। आधुनिक मत के अनुसार पृथ्वी के स्थान पर केन्द्र में सूर्य स्थित हैं। प्राचीन कक्षा क्रम में शनि से नीचे की ओर चौथे पिण्ड को वार का अधिपति माना गया। | | हमारे सौर मण्डलमें प्राचीन मत के अनुसार पृथ्वी, चन्द्र, बुध, सूर्य, मंगल, गुरु और शनि स्थित हैं। इनके ऊपर नक्षत्र मण्डल हैं। आधुनिक मत के अनुसार पृथ्वी के स्थान पर केन्द्र में सूर्य स्थित हैं। प्राचीन कक्षा क्रम में शनि से नीचे की ओर चौथे पिण्ड को वार का अधिपति माना गया। |
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| इस क्रम से स्पष्ट है कि शनि से चौथा सूर्य, सूर्य से चौथा चन्द्र, चन्द्र से चौथा मंगल, मंगल से चौथा बुध, बुध से चौथा गुरु, गुरू से चौथा शुक्र, शुक्र से चौथा शनि वार का अधिपति होने से यही वार क्रम निर्मित हुआ। प्राचीनकाल में पृथ्वी को केन्द्र मानकर अन्य समीपवर्ती ग्रहों के कक्षा क्रम को निर्धारित किया जाता था। आधुनिक युग में सूर्य को केन्द्र मानकर गणितकर्म किया जा रहा है। मनुष्य का कर्म क्षेत्र पृथ्वी है और सौरमण्डल का कर्मबिन्दु सूर्य है। प्राचीन आचार्य भी सूर्य के केन्द्रत्व रहस्य से परिचित थे। इसीलिये सूर्य को उन्होंने आत्मा ग्रह कहा। | | इस क्रम से स्पष्ट है कि शनि से चौथा सूर्य, सूर्य से चौथा चन्द्र, चन्द्र से चौथा मंगल, मंगल से चौथा बुध, बुध से चौथा गुरु, गुरू से चौथा शुक्र, शुक्र से चौथा शनि वार का अधिपति होने से यही वार क्रम निर्मित हुआ। प्राचीनकाल में पृथ्वी को केन्द्र मानकर अन्य समीपवर्ती ग्रहों के कक्षा क्रम को निर्धारित किया जाता था। आधुनिक युग में सूर्य को केन्द्र मानकर गणितकर्म किया जा रहा है। मनुष्य का कर्म क्षेत्र पृथ्वी है और सौरमण्डल का कर्मबिन्दु सूर्य है। प्राचीन आचार्य भी सूर्य के केन्द्रत्व रहस्य से परिचित थे। इसीलिये सूर्य को उन्होंने आत्मा ग्रह कहा। |
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− | सूर्यसिद्धान्त ग्रन्थ का भूगोलाध्याय वारप्रवृत्ति के वैज्ञानिक पक्ष को सामने रखता है-<blockquote>मन्दादधः क्रमेण स्युश्चतुर्धा दिवसाधिपाः, वर्षाधिपतयस्तद्वत्तृतीयाश्च प्रकीर्तिताः। | + | सूर्यसिद्धान्त ग्रन्थ का भूगोलाध्याय वारप्रवृत्ति के वैज्ञानिक पक्ष को सामने रखता है-<blockquote>मन्दादधः क्रमेण स्युश्चतुर्धा दिवसाधिपाः, वर्षाधिपतयस्तद्वत्तृतीयाश्च प्रकीर्तिताः।ऊर्ध्वक्रमेण शशिनो मासानामधिपाः स्मृताः, होरेशाः सूर्यतनयादधोऽधः क्रमशस्तथा॥</blockquote>ग्रहों के प्राचीनकक्षा क्रम (भारतीय आचार्यों द्वारा प्रदत्त) से वारों का क्रम निर्धारित हो सका। ऐसा वैज्ञानिक क्रम अन्यत्र कहीं दिखलाई नहीं देता। |
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− | ऊर्ध्वक्रमेण शशिनो मासानामधिपाः स्मृताः, होरेशाः सूर्यतनयादधोऽधः क्रमशस्तथा॥</blockquote>ग्रहों के प्राचीनकक्षा क्रम (भारतीय आचार्यों द्वारा प्रदत्त) से वारों का क्रम निर्धारित हो सका। ऐसा वैज्ञानिक क्रम अन्यत्र कहीं दिखलाई नहीं देता।
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| === वारप्रवृत्ति में होरा का महत्व === | | === वारप्रवृत्ति में होरा का महत्व === |
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| {| class="wikitable" | | {| class="wikitable" |
| |+ | | |+ |
| + | (वार ज्ञानार्थ सुगम सारिणी)<ref>श्रीसीताराम स्वामी, भारतीय कालगणना(ज्योतिष तत्त्वांक) सन् २०१४, गोरखपुरः गीताप्रेस (पृ०२११)।</ref> |
| !दिनों का क्रम | | !दिनों का क्रम |
− | ! | + | !१ |
− | ! | + | |
− | ! | + | रविवार |
− | ! | + | !२ |
− | ! | + | |
− | ! | + | सोमवार |
| + | !३ |
| + | |
| + | मंगलवार |
| + | !४ |
| + | |
| + | बुधवार |
| + | !५ |
| + | |
| + | गुरुवार |
| + | !६ |
| + | |
| + | शुक्रवार |
| + | !७ |
| + | शनिवार |
| |- | | |- |
| |सूर्य | | |सूर्य |
| + | |प्रथम वार |
| + | |१ |
| | | | | |
| + | |२ |
| | | | | |
− | | | + | |३ |
− | |
| |
− | |
| |
| | | | | |
| |- | | |- |
| |शुक्र | | |शुक्र |
| | | | | |
| + | |२ |
| | | | | |
| + | |३ |
| | | | | |
− | | | + | |४ |
− | |
| + | |
− | | | + | छठा वार |
| + | |१ |
| |- | | |- |
| |बुध | | |बुध |
| | | | | |
| + | |३ |
| | | | | |
| + | |चौथा वार |
| + | |
| + | ४ |
| + | |१ |
| | | | | |
− | | | + | |२ |
− | |
| |
− | |
| |
| |- | | |- |
| |चन्द्र(सोम) | | |चन्द्र(सोम) |
| | | | | |
| + | |दूसरा वार |
| + | |
| + | ४ |
| + | |१ |
| | | | | |
| + | |२ |
| | | | | |
− | | | + | |३ |
− | |
| |
− | |
| |
| |- | | |- |
| |शनि | | |शनि |
| | | | | |
| | | | | |
| + | |२ |
| | | | | |
| + | |३ |
| | | | | |
− | | | + | |सातवाँ वार |
− | |
| + | ४ |
| |- | | |- |
| |गुरु | | |गुरु |
| | | | | |
| | | | | |
| + | |३ |
| | | | | |
− | | | + | |पाँचवाँ वार |
− | | | + | |
| + | ४ |
| + | |१ |
| | | | | |
| |- | | |- |
Line 415: |
Line 447: |
| | | | | |
| | | | | |
| + | |तीसरा वार |
| + | |
| + | ४ |
| + | |१ |
| | | | | |
− | | | + | |२ |
− | |
| |
| | | | | |
| |} | | |} |