Changes

Jump to navigation Jump to search
m
no edit summary
Line 3: Line 3:  
==परिभाषा==
 
==परिभाषा==
 
इयर्ति गच्छति अशोक-पुष्पविकासान् साधारणलिङ्गमिति वसन्तादिकालविशेषऋतुः।
 
इयर्ति गच्छति अशोक-पुष्पविकासान् साधारणलिङ्गमिति वसन्तादिकालविशेषऋतुः।
 +
 +
सूर्य की ऊष्मा प्रकाश के माध्यम से पृथ्वी पर पहुँचती है तथा सूर्य द्वारा प्रदत्त प्रकाश ही गर्मी शीत का मुख्य कारण होता है। जब हमें सूर्य द्वारा प्रदत्त प्रकाश में अधिक गर्मी का अनुभव होता है तो हम उसे ग्रीष्म ऋतु तथा जब कम अनुभव होता है तो हम उसे शरद् ऋतु की संज्ञा प्रदान करते हैं।
 +
 +
पृथ्वी की दो प्रकार की गतियाँ मानी गयी हैं, पहला दैनिक गति और दूसरा वार्षिक गति। दैनिक गति के अनुसार, पृथ्वी अपने अक्ष पर निरन्तर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती रहती है, जिसके कारण दिन और रात होते हैं तथा वार्षिक गति के अनुसार पृथ्वी अपने अक्ष पर निरन्तर घूमते हुये सूर्य का एक चक्कर एक वर्ष में पूर्ण कर लेती है जिसके कारण ऋतुओं का निर्माण एवं परिवर्तन होता है।<ref>ज्योति राय, वैदिक ज्योतिष आधुनिक और वैज्ञानिक विशलेषण, सन् २००७, वी०बी०एस०पूर्वाञ्चल विश्वविद्यालय(शोध गंगा) अध्याय०३, (पृ०१०२)।</ref>
 +
 +
पृथ्वी के वार्षिक परिक्रमण, दैनिक परिभ्रमण एवं अपने अक्ष पर झुकाव के कारण पूरे वर्ष पृथ्वी पर सर्वत्र एक सा मौसम नहीं रहता है। पृथ्वी पर कहीं गर्मी होती है तो कहीं सर्दी और कहीं पर वर्षा। पृथ्वी के प्रत्येक स्थान पर ऋतु परिवर्तन होता है।यदि ऋतु परिवर्तन नहीं होता तो शायद पृथ्वी पर जीव-जगत् का अस्तित्व ही संभव नहीं होता। पृथ्वी के जिस भाग पर दिन बडे होते हैं, वहाँ सूर्य से अधिक समय तक ऊष्मा प्राप्त होती है। अतः वहाँ गर्मी पडती है। जहाँ दिन छोटे होते हैं, वहाँ सूर्य से कम समय तक ऊष्मा प्राप्त होती है। अतः वहाँ सर्दी पडती है।<ref>रामेश्वर प्रसाद शर्मा, भारतीय ज्योतिष में भौगोलिक विवेचन, सन् १९९५, डॉ०बी०आर०अम्बेडकर विश्वविद्यालय आगरा, (शोध गंगा), अध्याय०२, (पृ० ७५)।</ref>
 +
 
==परिचय॥ Introduction==
 
==परिचय॥ Introduction==
 
प्रकृतिकृत शीतोष्णादि सम्पूर्ण कालको ऋषियोंने एक वर्षमें संवरण किया है, सूर्य एवं चन्द्रमाकी गति भेद से वर्षके दो विभाग किये गये हैं। जिन्हैं अयन कहते हैं। वे अयन दो हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन। उत्तरायणमें रात्रि छोटी तथा दिन बडे एवं दक्षिणायनमें दिन छोटे तथा रात्रि बडी होती होती है। इन अयनों में प्रत्येक के तीन-तीन उपविभाग किये गये हैं, जिन्हैं ऋतु कहते हैं। मुख्यतः उत्तरायण में शिशिर, वसन्त और ग्रीष्म-ऋतुएँ तथा दक्षिणायन में वर्षा, शरद् और हेमन्त ऋतुएँ पडती हैं, इस प्रकार समग्र वर्ष में छः ऋतुएँ होती हैं।
 
प्रकृतिकृत शीतोष्णादि सम्पूर्ण कालको ऋषियोंने एक वर्षमें संवरण किया है, सूर्य एवं चन्द्रमाकी गति भेद से वर्षके दो विभाग किये गये हैं। जिन्हैं अयन कहते हैं। वे अयन दो हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन। उत्तरायणमें रात्रि छोटी तथा दिन बडे एवं दक्षिणायनमें दिन छोटे तथा रात्रि बडी होती होती है। इन अयनों में प्रत्येक के तीन-तीन उपविभाग किये गये हैं, जिन्हैं ऋतु कहते हैं। मुख्यतः उत्तरायण में शिशिर, वसन्त और ग्रीष्म-ऋतुएँ तथा दक्षिणायन में वर्षा, शरद् और हेमन्त ऋतुएँ पडती हैं, इस प्रकार समग्र वर्ष में छः ऋतुएँ होती हैं।
    
== ऋतु भेद ==
 
== ऋतु भेद ==
मृगादिराशिद्वयभानुभोगात् षडर्तवः स्युः शिशिरो वसन्तः। ग्रीष्मश्च वर्षाश्च शरच्च तदवत् हेमन्त नामा कथितोऽपि षष्ठः॥(बृह०अवक०)
+
मृगादिराशिद्वयभानुभोगात् षडर्तवः स्युः शिशिरो वसन्तः। ग्रीष्मश्च वर्षाश्च शरच्च तदवत् हेमन्त नामा कथितोऽपि षष्ठः॥(बृह०अवक०)
 
   
अर्थात् सायन मकर-कुम्भ में शिशिर ऋतु, मीन-मेष में वसन्त ऋतु, वृष-मिथुन में ग्रीष्म ऋतु, कर्क-सिंह में वर्षा ऋतु, कन्या-तुला में शरद ऋतु, वृश्चिक-धनु में हेमन्त ऋतु होती है।सौर एवं चान्द्रमासों के अनुसार इन वसन्तादि ऋतुओं का स्पष्टार्थ सारिणी-
 
अर्थात् सायन मकर-कुम्भ में शिशिर ऋतु, मीन-मेष में वसन्त ऋतु, वृष-मिथुन में ग्रीष्म ऋतु, कर्क-सिंह में वर्षा ऋतु, कन्या-तुला में शरद ऋतु, वृश्चिक-धनु में हेमन्त ऋतु होती है।सौर एवं चान्द्रमासों के अनुसार इन वसन्तादि ऋतुओं का स्पष्टार्थ सारिणी-
   Line 52: Line 58:  
== ऋतु परिवर्तन का कारण ==
 
== ऋतु परिवर्तन का कारण ==
 
ऋतु परिवर्तन का कारण पृथ्वीद्वारा सूर्य के चारों ओर परिक्रमण और पृथ्वी का अक्षीय झुलाव है। पृथ्वी का डी घूर्णन अक्ष  इसके परिक्रमा पथ से बनने वाले समतल पर लगभग ६६,५ अंश का कोण बनता है जिसके कारण उत्तरी या दक्षिणी गोलार्द्धों में से कोई एक गोलार्द्ध सूर्य की झुका होता है। यह झुकाव सूर्य के चारो ओर परिक्रमा के कारण वर्ष के अलग-अलग समय में अलग-अलग होता है जिससे दिन-रात की अवधियों में घट-बढ का एक वार्षिक चक्र निर्मित होता है। यही ऋतु परिवर्तन का मूल कारण बनता है।
 
ऋतु परिवर्तन का कारण पृथ्वीद्वारा सूर्य के चारों ओर परिक्रमण और पृथ्वी का अक्षीय झुलाव है। पृथ्वी का डी घूर्णन अक्ष  इसके परिक्रमा पथ से बनने वाले समतल पर लगभग ६६,५ अंश का कोण बनता है जिसके कारण उत्तरी या दक्षिणी गोलार्द्धों में से कोई एक गोलार्द्ध सूर्य की झुका होता है। यह झुकाव सूर्य के चारो ओर परिक्रमा के कारण वर्ष के अलग-अलग समय में अलग-अलग होता है जिससे दिन-रात की अवधियों में घट-बढ का एक वार्षिक चक्र निर्मित होता है। यही ऋतु परिवर्तन का मूल कारण बनता है।
 +
 +
== ऋतु परिवर्तन तथा भारतीय संस्कृति ==
 
==ऋतुओं के नामों की सार्थकता==
 
==ऋतुओं के नामों की सार्थकता==
शास्त्रों में ऋतु के अनुसार ही वस्तुओं का परिणाम बताया गया है। प्रत्येक प्राणी, वृक्ष, लता इत्यादि का विकास ऋतुओं के अनुसार ही होता है।
+
शास्त्रों में ऋतु के अनुसार ही वस्तुओं का परिणाम बताया गया है। प्रत्येक प्राणी, वृक्ष, लता इत्यादि का विकास ऋतुओं के अनुसार ही होता है।<blockquote>अर्द्धरात्रं शरत्कालो हेमन्तश्च प्रभातकः । पूर्व्वाह्णश्च वसन्तः स्यात् मध्याह्नो ग्रीष्म एव च ॥ प्रावृडरूपोऽपराह्णः स्यात् प्रदोषः शिशिरः स्मृतः॥</blockquote>
 +
 
 
===वसन्त ऋतु===
 
===वसन्त ऋतु===
 
मधु एवं माधव ये दोनों ही शब्द। मधु से निष्पन्न है। मधु का अर्थ होता है एक प्रकार का रस। यह वृक्ष, लता तथा प्राणियों को मत्त करता है। इस रस की जिस ऋतु में प्राप्ति होती है उसे वसन्त कहते हैं। अतएव यह देखा जाता है कि इस ऋतु में वृष्टि के विना ही वृक्ष, लतादि पुष्पादि होते हैं एवं प्राणियों में मदन-विकार होता है। अतएव क्षीर स्वामी ने कहा है-
 
मधु एवं माधव ये दोनों ही शब्द। मधु से निष्पन्न है। मधु का अर्थ होता है एक प्रकार का रस। यह वृक्ष, लता तथा प्राणियों को मत्त करता है। इस रस की जिस ऋतु में प्राप्ति होती है उसे वसन्त कहते हैं। अतएव यह देखा जाता है कि इस ऋतु में वृष्टि के विना ही वृक्ष, लतादि पुष्पादि होते हैं एवं प्राणियों में मदन-विकार होता है। अतएव क्षीर स्वामी ने कहा है-
Line 103: Line 112:  
* '''ऋतु अनुकूल पृथक् -पृथक् रसों के सेवन का ज्ञान'''
 
* '''ऋतु अनुकूल पृथक् -पृथक् रसों के सेवन का ज्ञान'''
   −
वसन्त-ऋतु, ग्रीष्म-ऋतु, वर्षा-ऋतु, शरद् -ऋतु हेमन्त ऋतु और शिशिर ऋतुओं संबंधि  ऋतुचर्या का ज्ञान स्वस्थ जीवन जीने में एवं जीवनचर्यामें सहायक सिद्ध होता है।<ref>श्रीअनसूयाप्रसादजी मैठानी, आरोग्य अंक, स्वस्थ जीवनके लिये ऋतुचर्या का ज्ञान, सन् २००७, गोरखपुरः गीताप्रेस (पृ०सं०३४०/३४१)।</ref>  
+
वसन्त-ऋतु, ग्रीष्म-ऋतु, वर्षा-ऋतु, शरद् -ऋतु हेमन्त ऋतु और शिशिर ऋतुओं संबंधि  ऋतुचर्या का ज्ञान स्वस्थ जीवन जीने में एवं जीवनचर्यामें सहायक सिद्ध होता है।<ref>श्रीअनसूयाप्रसादजी मैठानी, आरोग्य अंक, स्वस्थ जीवनके लिये ऋतुचर्या का ज्ञान, सन् २००७, गोरखपुरः गीताप्रेस (पृ०सं०३४०/३४१)।</ref>
 +
 
 +
== विचार-विमर्श ==
 +
मधुश्च मधवश्च वासन्तिकावृतू। (यजु० १३/२५)
 +
 
 +
शुक्रश्च शुचिश्च ग्रैष्मावृतू। (यजु०१४/०६)
 +
 
 +
नभश्च नभस्यश्च वार्षिकावृतू। (यजु०१४/१५)
 +
 
 +
ईषश्चोर्जश्च शारदावृतू।  (यजु० १४/१६)
 +
 
 +
सहश्च सहस्यश्च हैमान्तिकावृतू। (यजु० १४/२७)
 +
 
 +
तपश्च तपस्यश्च शैशिरावृतू। ( यजु० १५/५७)
 +
 
 +
तैत्तरीय संहिता में भी इन ऋतुओं का क्रम से यथावत् वर्णन प्राप्त होता है तथा आज भी ये ऋतुयें इन्हीं मासों में लोक में प्रचलित हैं।
    
== उद्धरण॥ References ==
 
== उद्धरण॥ References ==
924

edits

Navigation menu