Line 32: |
Line 32: |
| | | |
| प्रस्तर यन्त्रों से युक्त दिल्ली वेधशालापर किये गये सफल प्रयोग के उपरान्त सन् १७२४ ई० में महाराजा सवाई जयसिंहने अपनी नयी राजधानी जयपुरमें एक बृहत् वेधशालाके निर्माणका निर्णय लिया और सन् १७२८ ई० में यह वेधशाला बनकर तैयार हुई।<ref name=":0" /> | | प्रस्तर यन्त्रों से युक्त दिल्ली वेधशालापर किये गये सफल प्रयोग के उपरान्त सन् १७२४ ई० में महाराजा सवाई जयसिंहने अपनी नयी राजधानी जयपुरमें एक बृहत् वेधशालाके निर्माणका निर्णय लिया और सन् १७२८ ई० में यह वेधशाला बनकर तैयार हुई।<ref name=":0" /> |
| + | |
| + | |
| + | पंचांग आदि की रचना तथा मुहूर्त-निर्धारण करनेहेतु जयपुर वेधशालामें निम्नलिखित यन्त्रोंकी रचना की गई- |
| + | |
| + | # लघु विषुवतीय धूपघडी(लघु सम्राट् यंत्र) |
| + | # ध्रुव दर्शक यन्त्र |
| + | # वृत्ताकार उत्तरी तथा दक्षिणी सूर्यघडी(नाडीवलय यन्त्र) |
| + | # समतल (क्षितिजीय धूपघडी) |
| + | # क्रान्तिवृत्त यन्त्र |
| + | # ज्योतिष-प्रयोगशाला(यन्त्रराज) |
| + | # उन्नतांशयन्त्र |
| + | # दक्षिणीवृत्ति भित्तियन्त्र-(क) पश्चिमी भित्तियन्त्र, (ख) पूर्वीभित्तियन्त्र |
| + | # बृहत् विषुवतीय सूर्यघडी(बृहत् सम्राट् यन्त्र), षष्ठांशयन्त्र, |
| + | # राशिवलय (राशियन्त्र १२) |
| + | # जयप्रकाशयन्त्र |
| + | # अर्धगोलाकार (कपालीययन्त्र) |
| + | # चक्रयन्त्र-२ |
| + | # रामयन्त्र-२(उन्नतांश,दिगांशयन्त्र) |
| + | # दिगांशयन्त्र |
| + | # प्रतिबन्धित क्रान्तिवृत्तयन्त्र। |
| + | |
| + | महाराजा सवाई माधोसिंहके आदेशसे सन् १९०१ ई० में इस वेधशालाका जीर्णोद्धार हुआ। स्वत्रन्ता के बाद यह वेधशाला राष्ट्रीय धरोहर बन गयी और अब इसका संरक्षण-अनुरक्षण राजस्थान सरकारके पुरातत्त्व विभागद्वारा किया जाता है। |
| + | |
| ===दिल्ली वेधशाला=== | | ===दिल्ली वेधशाला=== |
| यह समुद्रतलसे २३९ मीटर(७८५ फुट)-की ऊँचाईपर, अक्षांश-२८ अंश ३९ विकला उत्तर तथा देशान्तर- ग्रीनविचके पूर्वमें ७७ अंश १३ कला ५ विकलापर स्थित है।<ref name=":0" /> | | यह समुद्रतलसे २३९ मीटर(७८५ फुट)-की ऊँचाईपर, अक्षांश-२८ अंश ३९ विकला उत्तर तथा देशान्तर- ग्रीनविचके पूर्वमें ७७ अंश १३ कला ५ विकलापर स्थित है।<ref name=":0" /> |
| + | |
| + | दिल्ली वेधशालाके खगोलीय यन्त्र इस प्रकार हैं- |
| + | |
| + | # मिश्रयन्त्र-(क) मध्याह्न रेखा भित्तियन्त्र (दक्षिणीवृत्ति भित्तियन्त्र), (ख) लघुविषुवतीय धूप घडी,(ग) कर्क भचक्रयन्त्र (कर्कराशिवलय), (घ) अग्रायन्त्र, (ङ) स्थिरयन्त्र(नियत चक्रयन्त्र अन्तर्राष्ट्रीय सूर्य-घडी) |
| + | # बृहत् विषुवतीय सूर्य-घडी (बृहत् सम्राट् यन्त्र) |
| + | # वलीय गोलाधर यन्त्र (जयप्रकाश यन्त्र, भाग २) |
| + | # उन्नतांश-दिगांशयन्त्र-२ (रामयन्त्र)। |
| + | |
| ===उज्जैन वेधशाला=== | | ===उज्जैन वेधशाला=== |
| यह समुद्रतलसे ४९२ मीटर(१५०० फुट) ऊँचाईपर, देशान्तर-७५ अंश ४५ कला (ग्रीनविचके पूर्व) तथा अक्षांश- २३अंश १० कला उत्तरपर स्थित है। | | यह समुद्रतलसे ४९२ मीटर(१५०० फुट) ऊँचाईपर, देशान्तर-७५ अंश ४५ कला (ग्रीनविचके पूर्व) तथा अक्षांश- २३अंश १० कला उत्तरपर स्थित है। |
| + | |
| + | जयपुरके महाराजा सवाई माधोसिंह-द्वितीयने सन् १९२२ ई० में इस वेधशालाका जीर्णोद्धार कराया। उज्जैन जन्तर-महलके यन्त्रोंका विवरण इस प्रकार है- |
| + | |
| + | # विषुवतीय सूर्य-घडी (लघु-सम्राट् यन्त्र) |
| + | # गोलाकार धूप-घडी (नाडीवलययन्त्र) |
| + | # दिगांशायन्त्र |
| + | # मध्याह्न भित्तियन्त्र (दक्षिणावर्तीय याम्योत्तर भित्तियन्त्र) |
| + | # क्षितिजीय धूप-घडी |
| + | # क्षितिजीय समतलीय यन्त्र(शंकुयन्त्र)। यह अनूठा शंकुयन्त्र एकमात्र उज्जैन वेधशालामें ही उपलब्ध है। यह उत्तर २५॰ २०' तथा देशान्तर ग्रीनविचके पूर्व ८३॰२' स्थित है। |
| ===वाराणसी वेधशाला=== | | ===वाराणसी वेधशाला=== |
| वाराणसी प्राचीन कालसे धार्मिक आस्था, कला, संस्कृति और विद्याका एक महान् परम्परागत केन्द्र रहा है। काशी और बनारसके नामसे भी जानीजाने वाली यह नगरी सभी शास्त्रोंका अध्ययन केन्द्र रही है। अन्य विद्याओंके साथ-साथ खगोल-विज्ञान और ज्योतिषके अध्ययनकी भी यहाँ परम्परा थी। इसलिये जयपुरके महाराज सवाई जयसिंह(द्वितीय)-ने इस ज्ञानपीठमें गंगाके तटपर एक वैज्ञानिक संरचनापूर्ण वेधशालाका निर्माण कराया।<ref name=":0" /> | | वाराणसी प्राचीन कालसे धार्मिक आस्था, कला, संस्कृति और विद्याका एक महान् परम्परागत केन्द्र रहा है। काशी और बनारसके नामसे भी जानीजाने वाली यह नगरी सभी शास्त्रोंका अध्ययन केन्द्र रही है। अन्य विद्याओंके साथ-साथ खगोल-विज्ञान और ज्योतिषके अध्ययनकी भी यहाँ परम्परा थी। इसलिये जयपुरके महाराज सवाई जयसिंह(द्वितीय)-ने इस ज्ञानपीठमें गंगाके तटपर एक वैज्ञानिक संरचनापूर्ण वेधशालाका निर्माण कराया।<ref name=":0" /> |
| + | |
| + | इस वेधशालाके खगोलीय यन्त्र इस प्रकार हैं- |
| + | |
| + | # विषुवतीय सूर्य-घडी (सम्राट् यन्त्र) (लघु विषुवतीय सूर्य-घडी) |
| + | # लघु विषुवतीय धूप-घडी एवं ध्रुवदर्शक-यन्त्र |
| + | # दक्षिणोवृत्ति भित्तियन्त्र |
| + | # दिगांशयन्त्र |
| + | # गोलाकार धूप-घडी (नाडीवलय यन्त्र)। |
| + | |
| ===मथुरा वेधशाला=== | | ===मथुरा वेधशाला=== |
| यह समुद्रतलसे ६०० फुट ऊँचाईपर, देशान्तर-ग्रीनविचके पूर्व ७७॰ ४२' तथा अक्षांश- २७॰ २८' उत्तरपर स्थित है। | | यह समुद्रतलसे ६०० फुट ऊँचाईपर, देशान्तर-ग्रीनविचके पूर्व ७७॰ ४२' तथा अक्षांश- २७॰ २८' उत्तरपर स्थित है। |
| | | |
| महाराजा जयसिंहने सन् १७३८ ई०के आसपास यहाँ कई खगोलीय यन्त्रोंका निर्माण कराया था। इस वेधशालाके निर्माणके लिये महाराजने शाही किलेकी छतको चुना था, जिसे कंसका महल कहा जाता था।<ref name=":0" /> | | महाराजा जयसिंहने सन् १७३८ ई०के आसपास यहाँ कई खगोलीय यन्त्रोंका निर्माण कराया था। इस वेधशालाके निर्माणके लिये महाराजने शाही किलेकी छतको चुना था, जिसे कंसका महल कहा जाता था।<ref name=":0" /> |
− | ==उद्धरण॥ References== | + | |
| + | सोलहवीं सदीके अन्तमें महाराजा जयसिंहके पूर्वज आमेरके राजा मानसिंहने इस किलेका पुनर्निर्माण कराया और इसे सुदृढ किया। मथुरावेधशाला के बारे में बहुत अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, परन्तु प्राप्त विवरणके अनुसार यहाँ कई लघु-यन्त्र थे, जैसे- |
| + | |
| + | # अग्रयन्त्र |
| + | # लघु सम्राट् -यन्त्र |
| + | # विषुवतीय धूप-घडी |
| + | # दक्षिणावर्ती भित्तियन्त्र- ये यन्त्र ईंट और चूना पलस्तरसे बने थे और ये जयपुर वेधशालाके यन्त्रों के समरूप लघुयन्त्र थे। |
| + | |
| + | == विचार-विमर्श == |
| + | १३वीं शताब्दीमें 'पोप ग्रिगरी' द्वारा रचित 'वाशिंगटन' वेधशाला पाश्चात्यदेशीय वेधशालाओं में उपलब्ध सबसे प्रचीनतम वेधशाला है। अमेरिकामें तीन वेधशालाएँ प्रमुख हैं- |
| + | |
| + | # लिंगवेधशाला। |
| + | # प्रो० लावेलकी वेधशाला। |
| + | # हार्वर्ड विश्वविद्यालय में स्थित वेधशाला। |
| + | |
| + | अमेरिकाके कैलिफोर्निया प्रान्तमें 'फ्लोमर' पर्वतपर स्थित वेधशाला आधुनिक वेधशालाओं में अग्रणी है। |
| + | |
| + | आधुनिक भारतीय वेधशालाएँ- |
| + | |
| + | # मद्रास वेधशाला |
| + | # तमिलनाडु प्रदेश में स्थित कोडाईकनाल वेधशाला |
| + | # नीलगिरि पर्वतपर स्थित उटकमण्ड-वेधशाला |
| + | # उस्मानिया वेधशाला आदि प्रमुख हैं। |
| + | |
| + | राजस्थानप्रान्तके उदयपुर नगरमें फतेहसागर |
| + | |
| + | == उद्धरण॥ References == |