'''मोक्ष्यामि पुण्डरीकाक्ष परेडहिन शरण भवा।'''</blockquote>अर्थात् हे देव पुण्डरीकाक्ष! मैं पूर्णिमा को निराहार व्रत रखकर दूसरे दिन आपकी आज्ञा से भोजन करूंगा, आप मुझे अपनी शरण दें। इस प्रकार भगवान को व्रत समर्पित करके सायं को चन्द्रमा निकलने पर दोनों घुटने पृथ्वी पर टेककर सफेद फूल, अक्षत, चन्दन, जल सहित अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय चन्द्रमा से कहो-हे भगवन! रोहिणीपते! आपका जन्म अग्निकुल में हुआ और आप क्षीर सागर में प्रकट हुये हैं। मेरे दिये हुए अर्घ्य को स्वीकार करें। इसके बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देकर उनकी ओर मुंह करके हाथ जोड़कर प्रार्थना "हे भगवन! आप श्वेत किरणों से सुशोभित हैं। आपको नमस्कार है, आप लक्ष्मी के भाई हैं, आपको नमस्कार है।" इस प्रकार रात्रि को नारायण भगवान की मूर्ति के पास ही शयन करें। दूसरे दिन सुबह ब्राह्मणों को भोजन करायें और दान देकर विदा करें। जो इस प्रकार व्रत धारण करते हैं वो पुत्र-पौत्रादि के साथ सुख भोगकर सब पापों से मुक्त हो जाते हैं और अपनी 10 पीढ़ियों के साथ बैकुण्ठ को जाते हैं। | '''मोक्ष्यामि पुण्डरीकाक्ष परेडहिन शरण भवा।'''</blockquote>अर्थात् हे देव पुण्डरीकाक्ष! मैं पूर्णिमा को निराहार व्रत रखकर दूसरे दिन आपकी आज्ञा से भोजन करूंगा, आप मुझे अपनी शरण दें। इस प्रकार भगवान को व्रत समर्पित करके सायं को चन्द्रमा निकलने पर दोनों घुटने पृथ्वी पर टेककर सफेद फूल, अक्षत, चन्दन, जल सहित अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय चन्द्रमा से कहो-हे भगवन! रोहिणीपते! आपका जन्म अग्निकुल में हुआ और आप क्षीर सागर में प्रकट हुये हैं। मेरे दिये हुए अर्घ्य को स्वीकार करें। इसके बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देकर उनकी ओर मुंह करके हाथ जोड़कर प्रार्थना "हे भगवन! आप श्वेत किरणों से सुशोभित हैं। आपको नमस्कार है, आप लक्ष्मी के भाई हैं, आपको नमस्कार है।" इस प्रकार रात्रि को नारायण भगवान की मूर्ति के पास ही शयन करें। दूसरे दिन सुबह ब्राह्मणों को भोजन करायें और दान देकर विदा करें। जो इस प्रकार व्रत धारण करते हैं वो पुत्र-पौत्रादि के साथ सुख भोगकर सब पापों से मुक्त हो जाते हैं और अपनी 10 पीढ़ियों के साथ बैकुण्ठ को जाते हैं। |