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| == Role in the Society == | | == Role in the Society == |
− | Towards the common people, the Kṣatriya stood in a relation of well-nigh unquestioned superiority. | + | |
| + | * Towards the common people, the Kṣatriya stood in a relation of well-nigh unquestioned superiority. |
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| === Samhita === | | === Samhita === |
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| क्षत्रमुपांशुयाजः। स यो ह वै क्षत्रमुपांशुयाज इति वेदाव ह क्षत्रं रुन्द्धेऽथो यत्किं च क्षत्रेण जय्यं सर्वं हैव तज्जयति तद्यदुपांशुयाजं कुर्वन्त्येके नैके तस्मादुच्चैश्चोपांशु च क्षत्रायाचक्षते - ११.२.७.[१५] | | क्षत्रमुपांशुयाजः। स यो ह वै क्षत्रमुपांशुयाज इति वेदाव ह क्षत्रं रुन्द्धेऽथो यत्किं च क्षत्रेण जय्यं सर्वं हैव तज्जयति तद्यदुपांशुयाजं कुर्वन्त्येके नैके तस्मादुच्चैश्चोपांशु च क्षत्रायाचक्षते - ११.२.७.[१५] |
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| + | * In return for these privileges the Kṣatriyas had duties of protection to perform, as well as some judicial functions |
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| + | Kāṭhaka Saṃhitā. xxvii. 4 |
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| + | शृतेन श्रीणाति मैत्रं वै शृतं वारुणं प्रतिधुक् स्वेनैवैनौ भागधेयेन समर्धयति मैत्रो ब्राह्मणो वारुणो राजन्यो यदेष मैत्रावरुणो गृह्यते तस्माद्ब्रह्मपुरोहितं क्षत्रं यज्ञस्य वै शिरोऽच्छिद्यताय तर्ह्यश्विना असोमपौ भिषजौ देवानामास्तां तौ देवा अब्रुवन् ... |
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| + | == Attributes == |
| + | The bow is thus his special attribute |
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| + | Kāṭhaka Saṃhitā, xxxvii. 1; |
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| + | तिसृधन्वं राजन्यायौजस्तेन परिक्रीणात्यष्ट्रां वैश्याय पुष्टिं तेन परिक्रीणाति |
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| + | Av. xviii. 2, 60; |
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| + | धनुर्हस्तादाददानो मृतस्य सह क्षत्रेण वर्चसा बलेन । समागृभाय वसु भूरि पुष्टमर्वाङ्त्वमेह्युप जीवलोकम् ॥६०॥ |
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| + | Śatapatha Brāhmaṇa, v. 3, 5, 30; |
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| + | ताः प्रयच्छति । पातैनं प्राञ्चं पातैनं प्रत्यञ्चं पातैनं तिर्यञ्चं दिग्भ्यः पातेति तदस्मै सर्वा एव दिशोऽशरव्याः करोति तद्यदस्मै धनुः प्रयच्छति वीर्यं वा एतद्राजन्यस्य यद्धनुर्वीर्यवन्तमभिषिञ्चानीति तस्माद्वा अस्मा आयुधम्प्रयच्छति - ५.३.५.[३०] |
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| + | In the Aitareya Brāhmaṇa, vii. 19, the list is longer--chariot, breastplate (Kavaca), bow and arrow (iṣu-dhanvan)--and in the prayer for the prosperity of the Kṣatriya (called, as usual in the older texts, Rājanya), at the Aśvamedha, the Rājanva is to be an archer and a good chariot-fighter; |
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| + | प्रजापतिर्यज्ञमसृजत यज्ञं सृष्टमनु ब्रह्मक्षत्रे असृज्येताम्ब्रह्मक्षत्रे अनु द्वय्यः प्रजा असृज्यन्त हुतादश्चाहुतादश्च ब्रह्मैवानु हुतादः क्षत्रमन्वहुताद एता वै प्रजा हुतादो यद्ब्राह्मणा अथैता अहुतादो यद्र ?ाजन्यो वैश्यः शूद्र स्ताभ्यो यज्ञ उदक्राम-त्तम्ब्रह्मक्षत्रे अन्वैतां यान्येव ब्रह्मण आयुधानि तैर्ब्रह्मान्वैद्यानि क्षत्रस्य तैः क्षत्रमेतानि वै ब्रह्मण आयुधानि यद्यज्ञायुधान्यथैतानि क्षत्रस्यायुधानि यदश्वरथः कवच इषुधन्व तं क्षत्रमनन्वाप्य न्यवर्ततायुधेभ्यो ह स्मास्य विजमानः पराङेवैत्यथैनम्ब्रह्मान्वैत्तमाप्नोत्तमाप्त्वा परस्तान्निरुध्यातिष्ठत्स आप्तः परस्ता-न्निरुद्धस्तिष्ठञ्ज्ञात्वा स्वान्यायुधानि ब्रह्मोपावर्तत तस्माद्धाप्येतर्हि यज्ञो ब्रह्म-ण्येव ब्राह्मणेषु प्रतिष्ठितोऽथैनत्क्षत्रमन्वागच्छत्तदब्रवीदुप मास्मिन्यज्ञे ह्वयस्वेति तत्तथेत्यब्रवीत्तद्वै निधाय स्वान्यायुधानि ब्रह्मण एवायुधैर्ब्रह्मणो रूपेण ब्रह्म भूत्वा यज्ञमुपावर्तस्वेति तथेति तत्क्षत्रं निधाय स्वान्यायुधानि ब्रह्मण एवा-युधैर्ब्रह्मणो रूपेण ब्रह्म भूत्वा यज्ञमुपावर्तत तस्माद्धाप्येतर्हि क्षत्रियो यजमानो निधायैव स्वान्यायुधानि ब्रह्मण एवायुधैर्ब्रह्मणो रूपेण ब्रह्म भूत्वा यज्ञमुपावर्तते॥7.19॥ (34.1) (142) |
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| + | Taittirīya Saṃhitā, vii. 5, 18, 1; |
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| + | आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायताम् आऽस्मिन् राष्ट्रे राजन्य इषव्यः शूरो महारथो जायताम् । दोग्ध्री धेनुः । वोढाऽनड्वान् आशुः सप्तिः पुरंधिर् योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवा । आऽस्य यजमानस्य वीरो जायताम् । निकामेनिकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलिन्यो न ओषधयः पच्यन्ताम् । योगक्षेमो नः कल्पताम् ॥ |
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| + | Maitrāyaṇī Saṃhitā, iii. 12, 6; |
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| + | आ ब्रह्मन् ब्राह्मणस्तेजस्वी ब्रह्मवर्चसी जायताम् , आ राष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यो महारथो जायताम् , दोग्री, धेनु , र्वोढानड्वान् , आशुः सप्तिः, सभेयो युवा, पुरंधिर् योषा, जिष्णू रथेष्ठा आस्य यजमानस्य वीरो जायताम् , निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु, फलवतीर्ना ओषधयः पच्यन्ताम् , योगक्षेमो नः कल्पताम् ॥ |
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| + | Aśvamedha |
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| + | So Indra is the god of the Kṣatriyas, Maitrāyaṇī Saṃhitā, ii. 3, 1; |
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| + | ऐन्द्रवारुणी राजन्यस्य स्यात् , ऐन्द्रवारुणो हि राजन्यो देवतया , |
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| + | iv. 5, 8, etc. |
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| + | क्षत्रं वरुणः , ब्रह्मणि च वा एतत् क्षत्रे च पयो दधाति, तस्माद् ब्रह्म च क्षत्रं च पयस्वितमे |
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| + | just as the goad is that of the agriculturist; for the bow is the main weapon of the Veda. |
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| + | == Learned Kshatriyas || Rajanyarshi == |
| + | Similarly at the Dīkṣā a Kṣatriya becomes temporarily a Brahmin, Aitareya Brāhmaṇa, vii. 23. Cf. Śatapatha Brāhmaṇa, iii. 4, 1, 3. |
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| + | In the Brāhmaṇa literature there are references to learned princes like Janaka of Videha, who is said to have become a Brahmana (brahmā), apparently in the sense that he had the full knowledge which a Brahmana possessed. |
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| + | 21) Śatapatha Brāhmaṇa, xi. 6, 2, 1. |
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| + | Cf. Kauṣītaki Upaniṣad, iv. 1. |
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| + | Other learned Kṣatriyas of this period were |
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| + | Pravāhaṇa Jaivali, 22) Bṛhadāraṇyaka Upaniṣad, vi. 1, 1; Chāndogya Upaniṣad, i. 8, 1; v. 3, 1; |
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| + | Aśvapati Kaikeya, 23) Śatapatha Brāhmaṇa, x. 6, 1, 2 et seq. and |
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| + | Ajātaśatru. 24) Bṛhadāraṇyaka Upaniṣad, ii. 1, 1; Kauṣītaki Upaniṣad, iv. 1. |
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| + | There are earlier references to royal sages (rājanyarṣi), 28) E.g., in Pañcavimśa Brāhmaṇa, xii. 12, 6; |
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| + | the Nirukta 30) ii. 10. gives a tradition relating how Devāpi, a king's son, became the Purohita of his younger brother Śaṃtanu; |
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| + | See Devāpi. in the Rigveda 32) x. 98. |
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| + | The case of Viśvāmitra may also be cited mention of him as a Rājaputra in the Aitareya Brāhmaṇa, vii. 17 |
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| ==References== | | ==References== |