यह समायोजन भी दो प्रकार से होता है। एक होता है अपने स्वार्थ के लिए और दूसरा होता है इन के साथ अपना संबंध आत्मीयता का है ऐसा मानने से। चिरकाल से मनुष्य के सभी सामाजिक और सृष्टिगत संबंधों के पीछे ‘स्वार्थ’ और ‘आत्मीयता’ यही दो कारण रहे हैं। इन संबंधों का आधार स्वार्थ है ऐसा माननेवाले लोगों को ‘असुर’ स्वभाव और संबंधों का आधार आत्मीयता है ऐसा माननेवालों को ‘सुर’ स्वभाव कहा गया है। | यह समायोजन भी दो प्रकार से होता है। एक होता है अपने स्वार्थ के लिए और दूसरा होता है इन के साथ अपना संबंध आत्मीयता का है ऐसा मानने से। चिरकाल से मनुष्य के सभी सामाजिक और सृष्टिगत संबंधों के पीछे ‘स्वार्थ’ और ‘आत्मीयता’ यही दो कारण रहे हैं। इन संबंधों का आधार स्वार्थ है ऐसा माननेवाले लोगों को ‘असुर’ स्वभाव और संबंधों का आधार आत्मीयता है ऐसा माननेवालों को ‘सुर’ स्वभाव कहा गया है। |