"वृक्षा न होहि देव ऋषि बानी " ऐसा विचार करके उन्होने अपनी पुत्री को समझाया कि ऐसे अल्पायु व्यक्ति के साथ विवाह करना उचित नहीं है। इसलिए कोई अन्य वर चुन लो। इस पर सावित्री बोली "पिताजी। आर्य कन्याये अपना वर ही वरण करती है। राजा एक बार आता देता है, पडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं। कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। अन चाहे जो हो सत्यवान को ही अपने पति के रूप में स्वीकार करूगी।" सावित्री ने सत्यवान के मृत्यु का समय मालूम कर लिया था। अन्ततः उन दोनों का विवाह हो गया। वह ससुराल पहुंचते ही सास ससुर की सेवा में दिन रात रहने लगी। समय बदला साविता के ससुर का जल क्षीण होता देखकर शत्रुओं ने राज्य छीन लिया। नारद का वचन साविती को दिन प्रतिदिन अधौर करता रहा। जब उसो जाना कि पति की मृत्यु का समय नजदीक आ गया है तो उसने तीन दिन पूर्व ही उपवास करना शुरू कर दिया। नारद द्वारा कथित तिथि पर पितरों का पूजन किया। नित्य ही सत्यवान लकड़ी काटने जंगल जाया करता था। उस दिन भी सत्यवान लकड़ी काटने जंगल जा रहा था तो सावित्री भी सास ससुर की माला से सत्यवान के साथ चलने को तैयार हो गयी। सत्यवान वन में पहुंचकर लकड़ी काटने वृया पर चढ़ गया। वृक्ष पर चढ़ते ही सत्यवान के सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी। वह व्याकुल हो गया और से नीचे उतर गया। | "वृक्षा न होहि देव ऋषि बानी " ऐसा विचार करके उन्होने अपनी पुत्री को समझाया कि ऐसे अल्पायु व्यक्ति के साथ विवाह करना उचित नहीं है। इसलिए कोई अन्य वर चुन लो। इस पर सावित्री बोली "पिताजी। आर्य कन्याये अपना वर ही वरण करती है। राजा एक बार आता देता है, पडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं। कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। अन चाहे जो हो सत्यवान को ही अपने पति के रूप में स्वीकार करूगी।" सावित्री ने सत्यवान के मृत्यु का समय मालूम कर लिया था। अन्ततः उन दोनों का विवाह हो गया। वह ससुराल पहुंचते ही सास ससुर की सेवा में दिन रात रहने लगी। समय बदला साविता के ससुर का जल क्षीण होता देखकर शत्रुओं ने राज्य छीन लिया। नारद का वचन साविती को दिन प्रतिदिन अधौर करता रहा। जब उसो जाना कि पति की मृत्यु का समय नजदीक आ गया है तो उसने तीन दिन पूर्व ही उपवास करना शुरू कर दिया। नारद द्वारा कथित तिथि पर पितरों का पूजन किया। नित्य ही सत्यवान लकड़ी काटने जंगल जाया करता था। उस दिन भी सत्यवान लकड़ी काटने जंगल जा रहा था तो सावित्री भी सास ससुर की माला से सत्यवान के साथ चलने को तैयार हो गयी। सत्यवान वन में पहुंचकर लकड़ी काटने वृया पर चढ़ गया। वृक्ष पर चढ़ते ही सत्यवान के सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी। वह व्याकुल हो गया और से नीचे उतर गया। |