− | यह त्यौहार वैशाख मास की एकम को मनाया जाता है। इस दिन भगवान कश्यप की पूजा करनी चाहिए। सर्वप्रथम भगवान कश्यपजी को स्नान कराके वस्त्रादि पहनाकर उन्हें भोग लगायें। भोग लगाने के उपरान्त आचमन कराकर, फूल, धूप, दीप, चन्दन आदि चढ़ाने से भगवान कश्यप हर कार्य में सहायता करते हैं और मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। कश्यपावतार की कथा-एक समय देवताओं को असुरों ने हराकर इन्द्र सहित सभी देवताओं को इन्द्रलोक भगा दिया। सभी देवगण भगवान विष्णु के समक्ष पहुंचकर प्रार्थना करने लगे। तब भगवान बोले-“हे देवगणों! तुम क्षीर सागर का मंथन करो। उसमें से तुम्हें रत्न व अमृत की प्राप्ति होगी। उस अमृत को देवता पी लेना फिर असुर तुम्हें हरा नहीं सकेंगे।" देवगण भगवान से पूछने लगे, " हे प्रभु ! हम मंथनी किसको बनाये और रस्सी किसको बनाये ?"तब भगवन बोले,"हे देवताओं! मन्दराचल पर्वत की राई बनाकर लपटों | उसके निचे मै कच्छप का रूप रखकर मन्दराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण | + | यह त्यौहार वैशाख मास की एकम को मनाया जाता है। इस दिन भगवान कश्यप की पूजा करनी चाहिए। सर्वप्रथम भगवान कश्यपजी को स्नान कराके वस्त्रादि पहनाकर उन्हें भोग लगायें। भोग लगाने के उपरान्त आचमन कराकर, फूल, धूप, दीप, चन्दन आदि चढ़ाने से भगवान कश्यप हर कार्य में सहायता करते हैं और मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। कश्यपावतार की कथा-एक समय देवताओं को असुरों ने हराकर इन्द्र सहित सभी देवताओं को इन्द्रलोक भगा दिया। सभी देवगण भगवान विष्णु के समक्ष पहुंचकर प्रार्थना करने लगे। तब भगवान बोले-“हे देवगणों! तुम क्षीर सागर का मंथन करो। उसमें से तुम्हें रत्न व अमृत की प्राप्ति होगी। उस अमृत को देवता पी लेना फिर असुर तुम्हें हरा नहीं सकेंगे।" देवगण भगवान से पूछने लगे, " हे प्रभु ! हम मंथनी किसको बनाये और रस्सी किसको बनाये ?"तब भगवन बोले,"हे देवताओं! मन्दराचल पर्वत की राई बनाकर लपटों | उसके निचे मै कच्छप का रूप रखकर मन्दराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण करूंगा। तुम नाग की पूंछ की तरफ रहना तथा असुरों को फन की तरफ रखना।" ऐसा ही हुआ। फिर समुद्र मंथन हुआ। उसमें से चौदह रत्न और अमृत निकला। यह मंथनी वैशाख मास प्रतिपदा को शुरू हुई। इसी दिन भगवान विष्णु ने कश्यप अवतार धारण किया। इसी से इस दिन कश्यप अवतार की पूजा होती है। |
| + | वैशाख कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला देवी की पूजा चेचक निकलने के प्रकोप से परिवार को सुरक्षित रखने के लिए की जाती है। ऐसी प्राचीन मान्यता है कि जिस घर की स्त्रियां शुद्ध मन से इस व्रत को करती हैं, उनके परिवार को शीतला देवी अवश्य आशीर्वाद देती हैं। इस व्रत के दिन चूल्हा नहीं जलाते। व्रत से एक दिन पूर्व ही खाने-पीने की सामग्री रख ली जाती है। इस बासी भोजन को दूसरे दिन परिवार के लोग खाते हैं। जिसे कहीं-कहीं बिसियौरा 'या' 'बसौड़ा' कहा जाता है। इसी दिन स्त्रियां प्रात: शुद्ध होकर, रोली, चन्दन, दही, अक्षत, फूल, जल आदि देवी को चढ़ाती हैं। जिस घर में चेचक जैसी कोई बीमारी हो उस घर में इस व्रत को नहीं करना चाहिए। <blockquote>'''रक्षक माता सम नाहीं दुनिया की जो मात।'''</blockquote><blockquote>'''छाती से चिपटा रखे अपने-अपने तात।'''</blockquote> |
| + | बरूथिनी एकादशी वैशाख कृष्ण पक्ष में एकादशी के दिन मनाई जाती है। यह व्रत सुख सौभाग्य का प्रतीक है। सुपात्र ब्रह्माण को दान देने, करोड़ों वर्षों तक तपस्या करने और कन्यादान के भी फल से बढ़कर (बरूथिनी एकादशी) का व्रत है। इस व्रत को करने वाले के लिए खासतौर से उस दिन खाना, दातुन करना, परनिन्दा, क्रोध करना और मसल बोलना वर्जित है। इस व्रत में अलोना रहकर तेलयुक्त भोजन नहीं करना चाहिए। इसका माहात्म्य सुनने से सौ गौ की हत्या के पाप से भी मुक्त हो जाते हैं। इस तरह यह अत्यधिक फलदायक व्रत है। व्रत की कथा (प्रथम)-प्राचीन काल की बात है, काशी नगरी में एक ब्राह्मण रहता था। उसके तीन लड़के थे। उसका सबसे बड़ा बेटा बुरे विचारों वाला पापी |