Changes

Jump to navigation Jump to search
editing content
Line 141: Line 141:  
जैसे-<blockquote>द्वादशाङ्गुलक विप्रे काष्ठमाहुर्मनीषिणः । क्षत्रविट्शूद्रजातीनां नवषट्चतुरङ्गुलम्॥</blockquote>'''अनु'''-ब्राह्मणके लिये दातौन बारह अंगुल, क्षत्रियकी नौ अंगुल, वैश्यकी छ: अंगुल और शूद्र तथा स्त्रियोंकी चार-चार अंगुल के बराबर लम्बी होनी चाहिये ।<blockquote>कनिष्ठिकाङ्गुलिवत् स्थूलं पूर्वार्धकृतकूर्चकम्।</blockquote>दातौन की चौडाई कनिष्ठिका अंगुलि के समान मोटी हो एवं एक भाग को आगे से कूँचकर कूँची बना लेने के अनन्तर ही दन्तधावन करना होता है।<blockquote>खदिरश्चकरञ्जश्च कदम्वश्च वटस्तथा । तिन्तिडी वेणुपृष्ठं च आम्रनिम्बो तथैव च ॥</blockquote><blockquote>अपामार्गश्च बिल्वश्च अर्कश्चौदुम्बरस्तथा । बदरीतिन्दुकास्त्वेते प्रशस्ता दन्तधावने ॥</blockquote>दातौन के लिये कडवे, कसैले अथवा तीखे रसयुक्त नीम,बबूल,खैर,चिड़चिड़ा, गूलर, आदिकी दातौनें अच्छी मानी जाती हैं । <blockquote>आयुर्बलं यशो वर्चः प्रजाः पशुवसूनि च । ब्रह्म प्रज्ञां च मेधां च त्वं नो देहि वनस्पते ॥( कात्यायनस्मृ १०।४, गर्गसंहिता, विज्ञानखण्ड, अ० ७) </blockquote>'''अनु-'''हे वृक्ष! मुझे आयु, बल, यश, ज्योति, सन्तान, पशु, धन, ब्रह्म (वेद), स्मृति एवं बुद्धि दो।इस प्रकार दातौन करने के पूर्व उसे उपर्युक्त मन्त्र द्वारा अभिमन्त्रित करके दातौन करने का विधान धर्मशास्त्रों में बताया गया है।
 
जैसे-<blockquote>द्वादशाङ्गुलक विप्रे काष्ठमाहुर्मनीषिणः । क्षत्रविट्शूद्रजातीनां नवषट्चतुरङ्गुलम्॥</blockquote>'''अनु'''-ब्राह्मणके लिये दातौन बारह अंगुल, क्षत्रियकी नौ अंगुल, वैश्यकी छ: अंगुल और शूद्र तथा स्त्रियोंकी चार-चार अंगुल के बराबर लम्बी होनी चाहिये ।<blockquote>कनिष्ठिकाङ्गुलिवत् स्थूलं पूर्वार्धकृतकूर्चकम्।</blockquote>दातौन की चौडाई कनिष्ठिका अंगुलि के समान मोटी हो एवं एक भाग को आगे से कूँचकर कूँची बना लेने के अनन्तर ही दन्तधावन करना होता है।<blockquote>खदिरश्चकरञ्जश्च कदम्वश्च वटस्तथा । तिन्तिडी वेणुपृष्ठं च आम्रनिम्बो तथैव च ॥</blockquote><blockquote>अपामार्गश्च बिल्वश्च अर्कश्चौदुम्बरस्तथा । बदरीतिन्दुकास्त्वेते प्रशस्ता दन्तधावने ॥</blockquote>दातौन के लिये कडवे, कसैले अथवा तीखे रसयुक्त नीम,बबूल,खैर,चिड़चिड़ा, गूलर, आदिकी दातौनें अच्छी मानी जाती हैं । <blockquote>आयुर्बलं यशो वर्चः प्रजाः पशुवसूनि च । ब्रह्म प्रज्ञां च मेधां च त्वं नो देहि वनस्पते ॥( कात्यायनस्मृ १०।४, गर्गसंहिता, विज्ञानखण्ड, अ० ७) </blockquote>'''अनु-'''हे वृक्ष! मुझे आयु, बल, यश, ज्योति, सन्तान, पशु, धन, ब्रह्म (वेद), स्मृति एवं बुद्धि दो।इस प्रकार दातौन करने के पूर्व उसे उपर्युक्त मन्त्र द्वारा अभिमन्त्रित करके दातौन करने का विधान धर्मशास्त्रों में बताया गया है।
   −
==== प्रातःस्नानादि विधि ====
+
== प्रातःस्नानादि विधि ==
 
ब्राह्म मुहूर्त में जागरण के विषय में शास्त्र का प्रमाण दिया ही जा चुका है। अब प्रात: स्नान का वर्णन किया जा रहा है। प्रातः स्नान में विशेषता यह है कि रात्रि भर चन्द्रामृत से जो चन्द्रमा की किरणें जल में प्रवेश करती हैं, उसके प्रभाव से जल पुष्ट हो जाता है। सूर्योदय होने पर वह सब गुण सूर्य की किरणों द्वारा आकृष्ट हो जाता है; अत: जो व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व स्नान करेगा. वही जल के अमृतमय कणों का लाभ उठा सकेगा।जो लोग  आलस्यवश नित्य स्नान नहीं करते उन्हें स्नान के गुण व लाभ समझ लेने चाहिये और नित्य प्रातः स्नान अवश्य करना चाहिये।
 
ब्राह्म मुहूर्त में जागरण के विषय में शास्त्र का प्रमाण दिया ही जा चुका है। अब प्रात: स्नान का वर्णन किया जा रहा है। प्रातः स्नान में विशेषता यह है कि रात्रि भर चन्द्रामृत से जो चन्द्रमा की किरणें जल में प्रवेश करती हैं, उसके प्रभाव से जल पुष्ट हो जाता है। सूर्योदय होने पर वह सब गुण सूर्य की किरणों द्वारा आकृष्ट हो जाता है; अत: जो व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व स्नान करेगा. वही जल के अमृतमय कणों का लाभ उठा सकेगा।जो लोग  आलस्यवश नित्य स्नान नहीं करते उन्हें स्नान के गुण व लाभ समझ लेने चाहिये और नित्य प्रातः स्नान अवश्य करना चाहिये।
   Line 147: Line 147:     
==== वस्त्रधारण विधि ====
 
==== वस्त्रधारण विधि ====
 +
ब्राह्ममुहूर्त में जागरण स्नानादि के अनन्तर वस्त्र धारण का भी मानव जीवन में घनिष्ठ सम्बन्ध है । वैदिक काल से ही शरीर ढकने हेतु वस्त्रों का उपयोग होता हुआ आ रहा है। प्रचीन काल में वृक्षों के पत्ते ,छाल, कुशादि घास एवं मृगचर्मादि का भी साधन बनाकर शरीर ढकने हेतु वस्त्ररूप में उपयोग हुआ करता था।वस्यते आच्छाद्यतेऽनेनेति वस्त्रम् -जिसके द्वारा (शरीर को) आच्छादित किया जाता है उसे वस्त्र (परिधान)कहते हैं।सनातनी परम्परा में ब्रह्मचारी,स्नातक,गृहस्थ,सन्न्यासी आदियों के लिये पृथक् पृथक् वस्त्रों का विधान किया गया है।
    
==== आसन विधि ====
 
==== आसन विधि ====
Line 155: Line 156:  
उपर्युक्त आसनों में पूर्वोक्त आसनों की महत्ता अधिक है यथा [[Importance of kusha (कुशा का महत्त्व)|कुश आसन]] सर्वश्रेष्ठ है कुशाभाव में कम्बल अनन्तर क्रमशः आसनों का उपयोग किया जा सकता है। शास्त्रों में वर्णन किया गया है इन आसनों पर बैठकर साधना करने से आरोग्य, लक्ष्मी प्राप्ति, यश और तेज की वृद्घि होती है। साधकों की एकाग्रता भी भंग नहीं होती है अतःआसनों का उपयोग उपासना के समय इन्द्रियों को संयमित तथा मन को स्थिर और चित्त को एकाग्र करने के लिये अवश्य करना होता है।
 
उपर्युक्त आसनों में पूर्वोक्त आसनों की महत्ता अधिक है यथा [[Importance of kusha (कुशा का महत्त्व)|कुश आसन]] सर्वश्रेष्ठ है कुशाभाव में कम्बल अनन्तर क्रमशः आसनों का उपयोग किया जा सकता है। शास्त्रों में वर्णन किया गया है इन आसनों पर बैठकर साधना करने से आरोग्य, लक्ष्मी प्राप्ति, यश और तेज की वृद्घि होती है। साधकों की एकाग्रता भी भंग नहीं होती है अतःआसनों का उपयोग उपासना के समय इन्द्रियों को संयमित तथा मन को स्थिर और चित्त को एकाग्र करने के लिये अवश्य करना होता है।
   −
==== भस्मादितिलक धारण विधि ====
+
==== भस्मादितिलक धारण विधि एवं वैज्ञानिक विशेषता ====
 
सनातन धर्म में प्रायः सभी व्यक्ति भस्म तिलक या गुरुपरम्परा अनुसार चन्दन धारण करते हैं यह भी महत्वपूर्ण नियम है। गङ्गा, मृत्तिका या गोपी-चन्दनसे ऊर्ध्वपुण्ड्र, भस्मसे त्रिपुण्ड्र और श्रीखण्डचन्दनसे दोनों प्रकारका तिलक कर सकते हैं। किंतु उत्सवकी रात्रिमें सर्वाङ्गमें चन्दन लगाना चाहिये।
 
सनातन धर्म में प्रायः सभी व्यक्ति भस्म तिलक या गुरुपरम्परा अनुसार चन्दन धारण करते हैं यह भी महत्वपूर्ण नियम है। गङ्गा, मृत्तिका या गोपी-चन्दनसे ऊर्ध्वपुण्ड्र, भस्मसे त्रिपुण्ड्र और श्रीखण्डचन्दनसे दोनों प्रकारका तिलक कर सकते हैं। किंतु उत्सवकी रात्रिमें सर्वाङ्गमें चन्दन लगाना चाहिये।
   Line 168: Line 169:  
दुर्गन्ध दूर करना यह भस्मका स्वाभाविक गुण है। विकृत जलमें भस्मके डालनेसे उसका दुर्गन्ध दूर होता है । भस्मसे बिच्छूका विष भी दूर होता है। भस्मसे आयु भी बढ़ती है इसका कारण यह है कि हमारी आयु हमारे तेज पर आश्रित है।जब तक तेज सुरक्षित है। तब तक तेज बढ़ता है । भस्म तेजको स्थिर करती है अतः इससे आयु बढती है।
 
दुर्गन्ध दूर करना यह भस्मका स्वाभाविक गुण है। विकृत जलमें भस्मके डालनेसे उसका दुर्गन्ध दूर होता है । भस्मसे बिच्छूका विष भी दूर होता है। भस्मसे आयु भी बढ़ती है इसका कारण यह है कि हमारी आयु हमारे तेज पर आश्रित है।जब तक तेज सुरक्षित है। तब तक तेज बढ़ता है । भस्म तेजको स्थिर करती है अतः इससे आयु बढती है।
   −
==== आध्यात्मिक अंश ====
+
आध्यात्मिक दृष्टि से तिलक धारण सात्विक भाव को उत्पन्न करता हुआ भगवद् भक्ति की ओर और भी अधिक प्रेरित करता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से यह सात्विक भाव को उत्पन्न करता हुआ भगवद् भक्ति की ओर और भी अधिक प्रेरित करता है।
     −
योग-क्रिया-सम्बद्ध एक विशेष रहस्य यह है कि भृकुटी के बीच में मस्तक के नीचे 'आज्ञा' नामक एक चक्र है, उस स्थान पर चन्दन लगाने से वह चक्र शीघ्र जागृत होकर उसका भेद न हो जाता है। जो साधक की साधना में लाभदायक है। इसी प्रकार कण्ठ में चन्दन लगाने से 'विशुद्ध चक्र' का, हृदय में लगाने से 'अनाहत चक्र' का एवं नाभिस्थान में लगाने से 'मणिपूर' आदि चक्रों का जागरण एवं भेदन होता है और उनमें सहायता प्राप्त होती है। इसीलिए उक्त स्थानों में चन्दन लगाया जाता है।
+
योग-क्रिया-सम्बद्ध एक विशेष रहस्य यह है कि भृकुटी के बीच में मस्तक के नीचे 'आज्ञा' नामक एक चक्र है, उस स्थान पर चन्दन लगाने से वह चक्र शीघ्र जागृत होकर उसका भेदन हो जाता है। जो साधक की साधना में लाभदायक है। इसी प्रकार कण्ठ में चन्दन लगाने से 'विशुद्ध चक्र' का, हृदय में लगाने से 'अनाहत चक्र' का एवं नाभिस्थान में लगाने से 'मणिपूर' आदि चक्रों का जागरण एवं भेदन होता है और उनमें सहायता प्राप्त होती है। इसीलिए उक्त स्थानों में चन्दन लगाया जाता है।
   −
==== वैज्ञानिक लाभ ====
   
वैज्ञानिक दृष्टि से भी चन्दन लगाना स्वास्थ्य के लिये लाभदायक है। यह संक्रामक रोगों का नाशक है। इसकी सुगन्ध से दूषित कीटाणु दूर होते हैं, मन प्रसन्न रहता है तथा अन्य लोगों पर भी इसकी सुगन्ध का प्रभाव पड़ता है। चन्दन लगाने वाले व्यक्ति के मुख की कान्ति चमकती है, शोभा बढ़ती है और मुंहासे आदि का भी प्रकोप नहीं होता। शरीर के विभिन्न अंगों में लगाने के कारण दुर्गन्ध को नाश करता हुआ यह स्वास्थ्य प्रदान करता है।
 
वैज्ञानिक दृष्टि से भी चन्दन लगाना स्वास्थ्य के लिये लाभदायक है। यह संक्रामक रोगों का नाशक है। इसकी सुगन्ध से दूषित कीटाणु दूर होते हैं, मन प्रसन्न रहता है तथा अन्य लोगों पर भी इसकी सुगन्ध का प्रभाव पड़ता है। चन्दन लगाने वाले व्यक्ति के मुख की कान्ति चमकती है, शोभा बढ़ती है और मुंहासे आदि का भी प्रकोप नहीं होता। शरीर के विभिन्न अंगों में लगाने के कारण दुर्गन्ध को नाश करता हुआ यह स्वास्थ्य प्रदान करता है।
  
924

edits

Navigation menu