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आस्यते उपविश्यतेऽस्मिन् इति आसनम् -जिस में (ध्यानादि कर्मों के लिये )बैठा जा सके उसे आसन कहते हैं।<blockquote>कौशेयं कम्बलं चैव अजिनं पट्टमेव च । दारुजं तालपत्रं वा आसनं परिकल्पयेत्॥</blockquote>'''अनु''' - कुश, कम्बल, मृगचर्म, व्याघ्रचर्म और रेशमका आसन जपादिके लिये विहित है ॥
 
आस्यते उपविश्यतेऽस्मिन् इति आसनम् -जिस में (ध्यानादि कर्मों के लिये )बैठा जा सके उसे आसन कहते हैं।<blockquote>कौशेयं कम्बलं चैव अजिनं पट्टमेव च । दारुजं तालपत्रं वा आसनं परिकल्पयेत्॥</blockquote>'''अनु''' - कुश, कम्बल, मृगचर्म, व्याघ्रचर्म और रेशमका आसन जपादिके लिये विहित है ॥
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शास्त्रों में वर्णन किया गया है इन आसनों पर बैठकर साधना करने से आरोग्य, लक्ष्मी प्राप्ति, यश और तेज की वृद्घि होती है। साधकों की एकाग्रता भी भंग नहीं होती है अतःआसनों का उपयोग उपासना के समय इन्द्रियों को संयमित तथा मन को स्थिर और चित्त को एकाग्र करने के लिये अवश्य करना होता है।  
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उपर्युक्त आसनों में पूर्वोक्त आसनों की महत्ता अधिक है यथा [[Importance of kusha (कुशा का महत्त्व)|कुश आसन]] सर्वश्रेष्ठ है कुशाभाव में कम्बल अनन्तर क्रमशः आसनों का उपयोग किया जा सकता है। शास्त्रों में वर्णन किया गया है इन आसनों पर बैठकर साधना करने से आरोग्य, लक्ष्मी प्राप्ति, यश और तेज की वृद्घि होती है। साधकों की एकाग्रता भी भंग नहीं होती है अतःआसनों का उपयोग उपासना के समय इन्द्रियों को संयमित तथा मन को स्थिर और चित्त को एकाग्र करने के लिये अवश्य करना होता है।
 
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==== यज्ञोपवीत विधि ====
      
==== भस्मादितिलक धारण विधि ====
 
==== भस्मादितिलक धारण विधि ====
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