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६. सोलर लेम्प बनाना भी इस कॉलेज में सिखाया जाता है, जिसमें देश-विदेश की बहनें सीखने के लिए आती हैं । जिन गाँवों में आज तक बिजली नहीं पहुँची, वहाँ की बहनें यहाँ आकर लेम्प बनाना सीखती हैं । एक और अनोखापन यहाँ देखने को मिलता है, वह यह कि सीखने वाले शिक्षार्थी की सिखाने वाले आचार्य की भाषा एक नहीं होती । एक ही कक्षा में पाँच-छः या कभी-कभी तो इससे भी अधिक भाषा बोलने वाली शिक्षार्थी बहनें होती है । ये अनेक देशों की होती हैं, जैसे - वियतनाम, सोमालिया, लीबेरिया, सूडान, झाँझीबार, सेनेगल आदि । इसी प्रकार हमारे देश के अलग- अलग राज्यों जैसे - असम, उडिसा, हिमाचल प्रदेश आदि से आनेवाली बहनें अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाली होती हैं । इतनी अधिक भाषाओं के लिए दूभाषिया रखना भी सम्भव नहीं होता । सीखना भी कोई सामान्य विषय नहीं, अपितु इलेक्ट्रोनिक्स इंजिनियरींग का काम ae भी नियत समय और मर्यादा में उन ग्रामीण-अनपढ़ बहनों को सीखना होता है । सोलर लेम्प के लिए सर्किट कैसे बनाना, उन्हें एसेम्बल कैसे करना, एसेम्बल करने के बाद उसकी जाँच करना, जाँचते समय कोई समस्या आ गई तो उसका निराकरण करना जैसी सभी बातें वे यहाँ सीखती हैं ।
 
६. सोलर लेम्प बनाना भी इस कॉलेज में सिखाया जाता है, जिसमें देश-विदेश की बहनें सीखने के लिए आती हैं । जिन गाँवों में आज तक बिजली नहीं पहुँची, वहाँ की बहनें यहाँ आकर लेम्प बनाना सीखती हैं । एक और अनोखापन यहाँ देखने को मिलता है, वह यह कि सीखने वाले शिक्षार्थी की सिखाने वाले आचार्य की भाषा एक नहीं होती । एक ही कक्षा में पाँच-छः या कभी-कभी तो इससे भी अधिक भाषा बोलने वाली शिक्षार्थी बहनें होती है । ये अनेक देशों की होती हैं, जैसे - वियतनाम, सोमालिया, लीबेरिया, सूडान, झाँझीबार, सेनेगल आदि । इसी प्रकार हमारे देश के अलग- अलग राज्यों जैसे - असम, उडिसा, हिमाचल प्रदेश आदि से आनेवाली बहनें अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाली होती हैं । इतनी अधिक भाषाओं के लिए दूभाषिया रखना भी सम्भव नहीं होता । सीखना भी कोई सामान्य विषय नहीं, अपितु इलेक्ट्रोनिक्स इंजिनियरींग का काम ae भी नियत समय और मर्यादा में उन ग्रामीण-अनपढ़ बहनों को सीखना होता है । सोलर लेम्प के लिए सर्किट कैसे बनाना, उन्हें एसेम्बल कैसे करना, एसेम्बल करने के बाद उसकी जाँच करना, जाँचते समय कोई समस्या आ गई तो उसका निराकरण करना जैसी सभी बातें वे यहाँ सीखती हैं ।
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७. यह सब सीखने के लिए उन्हें कोई डिग्री नहीं चाहिए, यहाँ प्रवेश लेने के लिए किसी विशेष योग्यता की भी आवश्यकता नहीं चाहिए । यहाँ कोई निम्न तम योग्यता भी नहीं निर्धारित नहीं है, जैसे कम से कम आठवी पास तो हो, अथवा कम से कम पढ़ना-लिखना तो आता हो, इतना भी नहीं है । यहां सीखने आने वालों में अनेक ऐसे होते हैं, जिन्हें लिखना-पढ़ना भी नहीं आता । फिर भी इतना तो निश्चित है कि यहां सें सीखने के बाद वह एक कुशल सोलर इंजिनीयर अवश्य बन जाता है । ये डिग्रीधारियों की तरह केवल पुस्तकीय ज्ञान रखने वाले नहीं होते, अपितु उत्पादन करने वाले और जीविका चलाने वाले बनते हैं ।
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७. यह सब सीखने के लिए उन्हें कोई डिग्री नहीं चाहिए, यहाँ प्रवेश लेने के लिए किसी विशेष योग्यता की भी आवश्यकता नहीं चाहिए । यहाँ कोई निम्न तम योग्यता भी नहीं निर्धारित नहीं है, जैसे कम से कम आठवी पास तो हो, अथवा कम से कम पढ़ना-लिखना तो आता हो, इतना भी नहीं है । यहां सीखने आने वालों में अनेक ऐसे होते हैं, जिन्हें लिखना-पढ़ना भी नहीं आता । तथापि इतना तो निश्चित है कि यहां सें सीखने के बाद वह एक कुशल सोलर इंजिनीयर अवश्य बन जाता है । ये डिग्रीधारियों की तरह केवल पुस्तकीय ज्ञान रखने वाले नहीं होते, अपितु उत्पादन करने वाले और जीविका चलाने वाले बनते हैं ।
    
८. तिलोणियाँ के आस-पास के ग्रामीण अंचलों के लिए यहाँ एक रेडियो ब्रोड कास्टिंग भी आरम्भ किया गया है । इस माध्यम से लोगोंं को कॉलेज में चलनेवाले पाठ्यक्रमों की जानकारी देश-विदेश में चलने वाले दैनन्दिनि कार्यों की जानकारी तथा सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई ग्रामीण योजनाओं की जानकारी के द्वारा जनजागृति का कार्य भी होता है । इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में लगने वाले उपकरणों , कम्प्यूटर, बोडकास्टिंग की मशीनों का संचालन ग्रामीण बहनें ही करती हैं ।
 
८. तिलोणियाँ के आस-पास के ग्रामीण अंचलों के लिए यहाँ एक रेडियो ब्रोड कास्टिंग भी आरम्भ किया गया है । इस माध्यम से लोगोंं को कॉलेज में चलनेवाले पाठ्यक्रमों की जानकारी देश-विदेश में चलने वाले दैनन्दिनि कार्यों की जानकारी तथा सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई ग्रामीण योजनाओं की जानकारी के द्वारा जनजागृति का कार्य भी होता है । इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में लगने वाले उपकरणों , कम्प्यूटर, बोडकास्टिंग की मशीनों का संचालन ग्रामीण बहनें ही करती हैं ।

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