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श्रृंगगिरेि से उद्भूत पवित्र नदी नद नेत्रावती के तट पर धर्मस्थल नामक धर्मक्षेत्र है। यहाँ का प्राचीनतम मन्दिर मंजूनाथेश्वर है। आदि शांकराचार्य ने मंजूनाथेश्वर की प्रतिष्ठा की थी, किन्तु बाद में यहाँ की उपासना पद्धति श्री मध्वाचार्य के ईत मतानुसार होने लगी। कार्तिक मास में यहाँ दीपदानोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है और असंख्य यात्री यहाँ दर्शनार्थ आते हैं। इस अवसर पर विभिन्न मतावलम्बी धर्माचायों का सम्मेलन भी होता है। मेष संक्रांति के समय श्री मंजुकेश्वरनाथ की रथयात्रा निकाली जाती हैं।  
 
श्रृंगगिरेि से उद्भूत पवित्र नदी नद नेत्रावती के तट पर धर्मस्थल नामक धर्मक्षेत्र है। यहाँ का प्राचीनतम मन्दिर मंजूनाथेश्वर है। आदि शांकराचार्य ने मंजूनाथेश्वर की प्रतिष्ठा की थी, किन्तु बाद में यहाँ की उपासना पद्धति श्री मध्वाचार्य के ईत मतानुसार होने लगी। कार्तिक मास में यहाँ दीपदानोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है और असंख्य यात्री यहाँ दर्शनार्थ आते हैं। इस अवसर पर विभिन्न मतावलम्बी धर्माचायों का सम्मेलन भी होता है। मेष संक्रांति के समय श्री मंजुकेश्वरनाथ की रथयात्रा निकाली जाती हैं।  
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पणजी (पंजिम )
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=== पणजी (पंजिम ) ===
 
   
पणजी अथवा पंजिम वर्तमान गोवा (गोमान्तक ) प्रदेश की राजधानी व मुख्या नगर है । कई शताब्दियों तक पुर्तगाली अधिकार में रहने के कारण यहाँ ईसाई प्रभाव अधिक है। कुछ पुराने मंदिर है, परन्तु उनकी अवस्था अच्छी नहीं है । पणजी दे कुछ दूर प्रियोल गाँव में श्री मंगेश महादेव मन्दिर है । इसका वास्तविक नाम मांगीश है । ये महाराष्ट्र के पंच  गौड़िय  ब्राह्मणों में से वत्स ब्राह्मणों के कुल देवता है । मूल रूप से श्री मंगेश महादेव कुशस्थल ग्राम में प्रतिष्ठित थे । किन्तु पुर्तगालियों के उपद्रवों के कारण भक्त उन्हें पालकी में विराजित करके ले आयें और यहाँ प्रतिष्ठित कर दिया  । बाद में मंदिर बन गया । भगवन परशुराम द्वारा यहाँ एक यज्ञ कराया गया था । एक शिवभक्त द्वारा आर्त स्वर में "माँ गिरीश पाहि " पुकारने पर शिव स्वयं प्रकट हुए तथा "मांगीश"कहलायें।
 
पणजी अथवा पंजिम वर्तमान गोवा (गोमान्तक ) प्रदेश की राजधानी व मुख्या नगर है । कई शताब्दियों तक पुर्तगाली अधिकार में रहने के कारण यहाँ ईसाई प्रभाव अधिक है। कुछ पुराने मंदिर है, परन्तु उनकी अवस्था अच्छी नहीं है । पणजी दे कुछ दूर प्रियोल गाँव में श्री मंगेश महादेव मन्दिर है । इसका वास्तविक नाम मांगीश है । ये महाराष्ट्र के पंच  गौड़िय  ब्राह्मणों में से वत्स ब्राह्मणों के कुल देवता है । मूल रूप से श्री मंगेश महादेव कुशस्थल ग्राम में प्रतिष्ठित थे । किन्तु पुर्तगालियों के उपद्रवों के कारण भक्त उन्हें पालकी में विराजित करके ले आयें और यहाँ प्रतिष्ठित कर दिया  । बाद में मंदिर बन गया । भगवन परशुराम द्वारा यहाँ एक यज्ञ कराया गया था । एक शिवभक्त द्वारा आर्त स्वर में "माँ गिरीश पाहि " पुकारने पर शिव स्वयं प्रकट हुए तथा "मांगीश"कहलायें।
  
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