− | पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा के तट पर स्थित, भगवान शांकर की महिमा से मण्डित काशी (वाराणसी) को विश्व का प्राचीनतम नगर होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ परशक्तिपीठ है, ज्योतिर्लिग है तथा यह सप्तपुरियों में से एक है। ऋग्वेद, शतपथ ब्राह्मण, नारद पुराण, महाभारत, रामायण, स्कन्द पुराण आदि ग्रन्थों में काशी का वैभव-वर्णन श्रद्धा के साथ किया गया है। वरणा व असी नदी के मध्य स्थित होने के कारण इसका वाराणसी नाम प्रसिद्ध हुआ। बौद्धतीर्थ सारनाथ पास में ही स्थित है। विभिन्न विद्याओं के अध्ययन-केन्द्र, सभी पंथ-सम्प्रदायों के तीर्थ स्थल तथा भगवत्प्राप्ति के परम उपयुक्त क्षेत्र के रूप में काशी की प्रतिष्ठा है। शैव, शाक्त, वैष्णव, बौद्ध, जैन पंथों के उपासक काशी को पवित्र मानकर यात्रा-दर्शन करने यहाँ आते हैं। सातवें तथा तेइसवें तीर्थकरों का यहाँ आविर्भाव हुआ। भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया। आदि शंकराचार्य ने अपनी धार्मिक दिग्विजय यात्रा यहीं से प्रारंभ की थी। कबीर, रामानन्द, तुलसी सदृश संतों ने काशी को अपनी कर्मभूमि बनाया। काशी में शास्त्रों के अध्ययन, अध्यापन की प्राचीन परम्परा रही है। भारत की सांस्कृतिक एकता को अक्षुण्ण रखने में काशी ने भारी योगदान किया है। यहाँ पर तीन विश्वविद्यालय तथा कई संस्कृत अध्ययन केन्द्र हैं। प्रसिद्ध ज्योतिर्लिग काशी विश्वनाथ मन्दिर को औरंगजेब ने ध्वस्त कर उसके भग्नावशेषों पर मस्जिद बनवायी। कालान्तर में महारानी अहिल्याबाई ने मस्जिद के पास ही नवीन विश्वनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा करायी । महाराज रणजीत सिंह ने मन्दिर पर स्वर्णआच्छादित शिखर चढ़ाया। काशी विश्वनाथ के मूल स्थान को मुक्त कराने के प्रयास तेज हो गये हैं। मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध घाट, केदारघाट, हनुमान घाट प्रमुख घाट हैं। हजारों मन्दिरों की नगरी काशी भारत की सांस्कृतिक राजधानी कही जा सकती है। | + | पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा के तट पर स्थित, भगवान शंकर की महिमा से मण्डित काशी (वाराणसी) को विश्व का प्राचीनतम नगर होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ परशक्तिपीठ है, ज्योतिर्लिग है तथा यह सप्तपुरियों में से एक है। ऋग्वेद, शतपथ ब्राह्मण, नारद पुराण, महाभारत, रामायण, स्कन्द पुराण आदि ग्रन्थों में काशी का वैभव-वर्णन श्रद्धा के साथ किया गया है। वरणा व असी नदी के मध्य स्थित होने के कारण इसका वाराणसी नाम प्रसिद्ध हुआ। बौद्धतीर्थ सारनाथ पास में ही स्थित है। विभिन्न विद्याओं के अध्ययन-केन्द्र, सभी पंथ-सम्प्रदायों के तीर्थ स्थल तथा भगवत्प्राप्ति के परम उपयुक्त क्षेत्र के रूप में काशी की प्रतिष्ठा है। शैव, शाक्त, वैष्णव, बौद्ध, जैन पंथों के उपासक काशी को पवित्र मानकर यात्रा-दर्शन करने यहाँ आते हैं। सातवें तथा तेइसवें तीर्थकरों का यहाँ आविर्भाव हुआ। भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया। आदि शंकराचार्य ने अपनी धार्मिक दिग्विजय यात्रा यहीं से प्रारंभ की थी। कबीर, रामानन्द, तुलसी सदृश संतों ने काशी को अपनी कर्मभूमि बनाया। काशी में शास्त्रों के अध्ययन, अध्यापन की प्राचीन परम्परा रही है। भारत की सांस्कृतिक एकता को अक्षुण्ण रखने में काशी ने भारी योगदान किया है। यहाँ पर तीन विश्वविद्यालय तथा कई संस्कृत अध्ययन केन्द्र हैं। प्रसिद्ध ज्योतिर्लिग काशी विश्वनाथ मन्दिर को औरंगजेब ने ध्वस्त कर उसके भग्नावशेषों पर मस्जिद बनवायी। कालान्तर में महारानी अहिल्याबाई ने मस्जिद के पास ही नवीन विश्वनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा करायी । महाराज रणजीत सिंह ने मन्दिर पर स्वर्णआच्छादित शिखर चढ़ाया। काशी विश्वनाथ के मूल स्थान को मुक्त कराने के प्रयास तेज हो गये हैं। मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध घाट, केदारघाट, हनुमान घाट प्रमुख घाट हैं। हजारों मन्दिरों की नगरी काशी भारत की सांस्कृतिक राजधानी कही जा सकती है। |