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=== केदारनाथ ===
 
=== केदारनाथ ===
हिमालय के सुरम्यक्षेत्र में केदारपर्वत पर केदारेश्वर अथवा केदारनाथ ज्योतिर्लिग विराजमान है। सत्ययुग में उपमन्यु ने यहाँ भगवान शिव की आराधना कीथी।द्वापरमें पाण्डवों ने भी यहाँ तपस्या की थी। शिव पुराण के अनुसार नर-नारायण ने इस क्षेत्र में भगवान शिव की आराधना की। उससे प्रसन्न हो शिव ने वर माँगने को कहा तो उन्होंने शिव से लोक-कल्याण के लिए वहीं प्रतिष्ठित होने की प्रार्थना की, फलस्वरूप देवाधि-देव केदार तीर्थ में ज्योतिर्लिग के रूप में स्थित हो गये । स्कन्द पुराण मेंभी केदार क्षेत्र का उल्लेख आया है। महाभारत के वनपर्व में इस क्षेत्र का वर्णन आया है। इसक्षेत्र में स्नान-दान सेअक्षयपुण्य प्राप्त होता है।भारवि व कालिदास ने इस क्षेत्र कीप्राकृतिक सुषमा तथा आध्यात्मिक शान्ति का मार्मिक चित्रण किया है। यहीं अर्जुन ने दिव्यास्त्रों कीप्राप्ति के लिए तपस्या की। तब उसकी परीक्षा के लिए किरात रूप में शांकर ने युद्ध किया और प्रसन्न होकर पाशुपत अस्त्र प्रदान किया। केदार क्षेत्र सिद्धों यक्षों तथा साधुओं का निवास है। भगवान शिव यहाँ योग मुद्रा में विराजमान हैं।  
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हिमालय के सुरम्यक्षेत्र में केदारपर्वत पर केदारेश्वर अथवा केदारनाथ ज्योतिर्लिग विराजमान है। सत्ययुग में उपमन्यु ने यहाँ भगवान शिव की आराधना कीथी।द्वापरमें पाण्डवों ने भी यहाँ तपस्या की थी। शिव पुराण के अनुसार नर-नारायण ने इस क्षेत्र में भगवान शिव की आराधना की। उससे प्रसन्न हो शिव ने वर माँगने को कहा तो उन्होंने शिव से लोक-कल्याण के लिए वहीं प्रतिष्ठित होने की प्रार्थना की, फलस्वरूप देवाधि-देव केदार तीर्थ में ज्योतिर्लिग के रूप में स्थित हो गये । स्कन्द पुराण मेंभी केदार क्षेत्र का उल्लेख आया है। महाभारत के वनपर्व में इस क्षेत्र का वर्णन आया है। इसक्षेत्र में स्नान-दान सेअक्षयपुण्य प्राप्त होता है।भारवि व कालिदास ने इस क्षेत्र कीप्राकृतिक सुषमा तथा आध्यात्मिक शान्ति का मार्मिक चित्रण किया है। यहीं अर्जुन ने दिव्यास्त्रों कीप्राप्ति के लिए तपस्या की। तब उसकी परीक्षा के लिए किरात रूप में शंकर ने युद्ध किया और प्रसन्न होकर पाशुपत अस्त्र प्रदान किया। केदार क्षेत्र सिद्धों यक्षों तथा साधुओं का निवास है। भगवान शिव यहाँ योग मुद्रा में विराजमान हैं।  
    
केदारनाथ समुद्रतल से ६९४० मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ सदैव हिम जमा रहता है। ग्रीष्म ऋतु में हिम पिघलने परमन्दिर के कपाट कुछ दिनों के लिए खुलते हैं, तभी केदारेश्वर के दर्शन होते हैं। केदारनाथ के पास से मन्दाकिनी नदी निकलती हैं। यह नदी रुद्र प्रयाग में अलकनन्दा में मिल जाती है जो आगे चलकर भागीरथी से मिलकर पतित पावनी गंगा का रूप लेती है।पास में ही गौरीकुण्ड हैजहाँ भगवती पार्वती ने स्नान किया था। भगवान शिव औरपार्वती के विवाह के साक्षी रूप प्रज्वलित अग्नि अग्निकुण्ड के रूप में आज भी विद्यमान है। हरिद्वार में कुंभ और अर्द्धकुंभ के अवसरपर केदारनाथ की यात्रा का विशेष महात्म्य है।  
 
केदारनाथ समुद्रतल से ६९४० मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ सदैव हिम जमा रहता है। ग्रीष्म ऋतु में हिम पिघलने परमन्दिर के कपाट कुछ दिनों के लिए खुलते हैं, तभी केदारेश्वर के दर्शन होते हैं। केदारनाथ के पास से मन्दाकिनी नदी निकलती हैं। यह नदी रुद्र प्रयाग में अलकनन्दा में मिल जाती है जो आगे चलकर भागीरथी से मिलकर पतित पावनी गंगा का रूप लेती है।पास में ही गौरीकुण्ड हैजहाँ भगवती पार्वती ने स्नान किया था। भगवान शिव औरपार्वती के विवाह के साक्षी रूप प्रज्वलित अग्नि अग्निकुण्ड के रूप में आज भी विद्यमान है। हरिद्वार में कुंभ और अर्द्धकुंभ के अवसरपर केदारनाथ की यात्रा का विशेष महात्म्य है।  
    
=== भीमाशंकर ===
 
=== भीमाशंकर ===
देवाधिदेव भगवान शंकर के प्रमुखतम ज्योतिर्लिगों में एक भीमशंकर है। इसकी स्थिति कई स्थानों पर मानी गयी है। शिवपुराण में कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 20 के अनुसार भीम-शंकर मन्दिर कामरूप(असम) प्रदेश मेंगोहाटी के निकटब्रह्मापुर पर्वत पर स्थित है। स्थानीय राजा शिव के अनन्य उपासक थे। एक बार भीमक नामक राक्षस ने उसके राज्य में भयंकर उत्पात मचाया। उस राक्षस ने पूजा में रात शिवभक्तों को मारने के लिए ज्योंही तलवार से वार करना चाहा, भगवान शांकर ने स्वयं प्रकट होकर राक्षस का वध कर डाला। तब से राजा की प्रार्थना परभगवान ज्योतिर्लिग के रूप में ब्रह्मपुत्र पर्वत पर विराजमान् हो गये। शिवपुराण के इसी अध्याय मेंआये वर्णन के अनुसारभगवान यहाँ अवतीर्ण हुए तथा उनका मूल निवास सहयाद्रि है। भीमा नदी के तटपर सहयाद्रि पर्वतमाला में यह भव्य किन्तु प्राचीन मन्दिर है। जहाँ पर यह मन्दिर है उसे डाकिनी शिखर भी कहते हैं। यहाँ नाना फडनवीस का बनवाया हुआ एक नया तथा भव्य मन्दिरभी है।पुराण-कथा के अनुसार त्रिपुरासुर को मारने के बाद भगवान शांकरइस स्थान पर विश्राम करने के लिए रुक गये। स्थानीय राजा भीमक की प्रार्थना पर भगवान शिव लोककल्याण हेतु यहीं पर अवस्थित हो गये। कुछ लोग भीम शांकर की स्थिति उत्तर प्रदेश के नैनीताल जिलों में काशीपुर के पास मानते हैं। यहाँ उज्जनक नामक गाँव में भीमशंकर महादेव का भव्य व विशाल मन्दिर है। शिवपुराण में डाकिनी में भी शांकर की स्थिति बतायी है। स्थानीय जनता के अनुसार यहाँ का पुराना नाम डाकिनी था। सभी स्थानों पर विशेष पर्व पर मेले लगते हैंऔर दूर-दूर से भक्तजन आते हैं।   
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देवाधिदेव भगवान शंकर के प्रमुखतम ज्योतिर्लिगों में एक भीमशंकर है। इसकी स्थिति कई स्थानों पर मानी गयी है। शिवपुराण में कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 20 के अनुसार भीम-शंकर मन्दिर कामरूप(असम) प्रदेश मेंगोहाटी के निकटब्रह्मापुर पर्वत पर स्थित है। स्थानीय राजा शिव के अनन्य उपासक थे। एक बार भीमक नामक राक्षस ने उसके राज्य में भयंकर उत्पात मचाया। उस राक्षस ने पूजा में रात शिवभक्तों को मारने के लिए ज्योंही तलवार से वार करना चाहा, भगवान शंकर ने स्वयं प्रकट होकर राक्षस का वध कर डाला। तब से राजा की प्रार्थना परभगवान ज्योतिर्लिग के रूप में ब्रह्मपुत्र पर्वत पर विराजमान् हो गये। शिवपुराण के इसी अध्याय मेंआये वर्णन के अनुसारभगवान यहाँ अवतीर्ण हुए तथा उनका मूल निवास सहयाद्रि है। भीमा नदी के तटपर सहयाद्रि पर्वतमाला में यह भव्य किन्तु प्राचीन मन्दिर है। जहाँ पर यह मन्दिर है उसे डाकिनी शिखर भी कहते हैं। यहाँ नाना फडनवीस का बनवाया हुआ एक नया तथा भव्य मन्दिरभी है।पुराण-कथा के अनुसार त्रिपुरासुर को मारने के बाद भगवान शंकरइस स्थान पर विश्राम करने के लिए रुक गये। स्थानीय राजा भीमक की प्रार्थना पर भगवान शिव लोककल्याण हेतु यहीं पर अवस्थित हो गये। कुछ लोग भीम शंकर की स्थिति उत्तर प्रदेश के नैनीताल जिलों में काशीपुर के पास मानते हैं। यहाँ उज्जनक नामक गाँव में भीमशंकर महादेव का भव्य व विशाल मन्दिर है। शिवपुराण में डाकिनी में भी शंकर की स्थिति बतायी है। स्थानीय जनता के अनुसार यहाँ का पुराना नाम डाकिनी था। सभी स्थानों पर विशेष पर्व पर मेले लगते हैंऔर दूर-दूर से भक्तजन आते हैं।   
    
=== विश्वनाथ ===
 
=== विश्वनाथ ===
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=== घुश्मेश्वर ===
 
=== घुश्मेश्वर ===
द्वादश ज्योतिलिंग में अन्तिम घुश्मेश्वर है। घुश्मेश्वर या घुसुणेश्वर नाम से भी इसका वर्णन किया जाता है । घुश्मेश्वर मंदिर दौलताबाद  (देवगिरि) के पास स्थित वेरूल गाँव में है। यह प्रसिद्ध गुफा-मन्दिर एलोरा से मात्र एक-डेढ़ किमी.पर है। कुछ महानुभाव एलोरा के कैलास मन्दिर को ही घुश्मेश्वर मानते हैं। घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिग की स्थापना पतिपरायणा तथा शिवभक्ति घुश्मा की तपस्या तथा निष्काम भावना के कारण हुई। घुश्मा का अतीव सुन्दर बालक उसकी सौत सुदेहा के षड्यंत्र का शिकार हुआ। सुदेहा ने बालक के शव को एक सरोवर में फेंकवा दिया। घुश्मा सदैव की भांति शिवपूजा में व्यस्त रही तथा पूजा-समाप्ति पर जब पार्थिव लिंग विसर्जित कर लौटने लगी तो उसका पुत्र जीवित होकर उसके चरणों में आ गिरा। परन्तु घुश्मा इस सब को प्रभुलीला मानकर आनन्दमग्न हो गयी। तब शिव स्वयं प्रकट हो गये। घुश्मा ने सुदेहा को क्षमा करने की प्रार्थना की, साथ ही लोक-कल्याण हेतु शिव से वहीं विराजित रहने का वर माँगा। भगवान शांकर एवमस्तु कहकर वहीं वास करने लगे। उसी स्थान पर मन्दिर बना। महारानी अहिल्याबाई ने यहाँ अति सुन्दर मन्दिर का निर्माण कराया। मन्दिर के पास शिवालय नामक पवित्र सरोवर हैं। पास में ही सहसलिंग, पातालेश्वर व सूर्यश्वर के मन्दिर है। शिवपुराण में घुश्मेश्वर की महिमा का वर्णन इस प्रकार है:   
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द्वादश ज्योतिलिंग में अन्तिम घुश्मेश्वर है। घुश्मेश्वर या घुसुणेश्वर नाम से भी इसका वर्णन किया जाता है । घुश्मेश्वर मंदिर दौलताबाद  (देवगिरि) के पास स्थित वेरूल गाँव में है। यह प्रसिद्ध गुफा-मन्दिर एलोरा से मात्र एक-डेढ़ किमी.पर है। कुछ महानुभाव एलोरा के कैलास मन्दिर को ही घुश्मेश्वर मानते हैं। घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिग की स्थापना पतिपरायणा तथा शिवभक्ति घुश्मा की तपस्या तथा निष्काम भावना के कारण हुई। घुश्मा का अतीव सुन्दर बालक उसकी सौत सुदेहा के षड्यंत्र का शिकार हुआ। सुदेहा ने बालक के शव को एक सरोवर में फेंकवा दिया। घुश्मा सदैव की भांति शिवपूजा में व्यस्त रही तथा पूजा-समाप्ति पर जब पार्थिव लिंग विसर्जित कर लौटने लगी तो उसका पुत्र जीवित होकर उसके चरणों में आ गिरा। परन्तु घुश्मा इस सब को प्रभुलीला मानकर आनन्दमग्न हो गयी। तब शिव स्वयं प्रकट हो गये। घुश्मा ने सुदेहा को क्षमा करने की प्रार्थना की, साथ ही लोक-कल्याण हेतु शिव से वहीं विराजित रहने का वर माँगा। भगवान शंकर एवमस्तु कहकर वहीं वास करने लगे। उसी स्थान पर मन्दिर बना। महारानी अहिल्याबाई ने यहाँ अति सुन्दर मन्दिर का निर्माण कराया। मन्दिर के पास शिवालय नामक पवित्र सरोवर हैं। पास में ही सहसलिंग, पातालेश्वर व सूर्यश्वर के मन्दिर है। शिवपुराण में घुश्मेश्वर की महिमा का वर्णन इस प्रकार है:   
    
"ईदुशां चैव लिंग च दूष्ट्रवा पापै: प्रमुच्यते।  
 
"ईदुशां चैव लिंग च दूष्ट्रवा पापै: प्रमुच्यते।  

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