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| === सरहिन्द === | | === सरहिन्द === |
| पंजाब प्रान्त के पटियाला जिले में सरहिन्द नामक स्थान सिख पंथ के अनुयायी जनों का प्रमुख प्रेरणा-स्रोत है। जब दशम् गुरु आततायियों से लोहा ले रहे थे, उस समय उनके पुत्र भी उनके साथ योगदान कर रहे थे। सरहिन्द के मुसलमान शासक ने गुरु गोविन्द सिंहपर दबाव डालने के लिए उनके सुकुमार पुत्रोंफतेह सिंह व जोरावर सिंह को धोखे से बन्दी बना लिया। मुसलमानों ने उन बच्चों को तौबा करने और इस्लाम कबूल करने के लिए अनेक लालच दिये। जब वे "स्वधर्म निधनों श्रेय: परधामों भयावह" केअनुसार टस सेमस नहीं हुए तो उन निर्दय विधर्मियों ने दोनों को किले की दीवार में जिन्दा चुनवा दिया। हरिसिंह नलवा के बाद में सरहिन्द के नवाब से गुरुपुत्रों की क्रूर हत्या का बदला लिया। आज देवी, काली अर्जुन देवी तथा अन्य कई मन्दिरहैं। नवरात्र में यहाँ विशाल सरहिन्द में स्थापित पवित्र गुरुद्वारा गुरुपुत्रों की शहादत का स्मारक बना हुआ है । | | पंजाब प्रान्त के पटियाला जिले में सरहिन्द नामक स्थान सिख पंथ के अनुयायी जनों का प्रमुख प्रेरणा-स्रोत है। जब दशम् गुरु आततायियों से लोहा ले रहे थे, उस समय उनके पुत्र भी उनके साथ योगदान कर रहे थे। सरहिन्द के मुसलमान शासक ने गुरु गोविन्द सिंहपर दबाव डालने के लिए उनके सुकुमार पुत्रोंफतेह सिंह व जोरावर सिंह को धोखे से बन्दी बना लिया। मुसलमानों ने उन बच्चों को तौबा करने और इस्लाम कबूल करने के लिए अनेक लालच दिये। जब वे "स्वधर्म निधनों श्रेय: परधामों भयावह" केअनुसार टस सेमस नहीं हुए तो उन निर्दय विधर्मियों ने दोनों को किले की दीवार में जिन्दा चुनवा दिया। हरिसिंह नलवा के बाद में सरहिन्द के नवाब से गुरुपुत्रों की क्रूर हत्या का बदला लिया। आज देवी, काली अर्जुन देवी तथा अन्य कई मन्दिरहैं। नवरात्र में यहाँ विशाल सरहिन्द में स्थापित पवित्र गुरुद्वारा गुरुपुत्रों की शहादत का स्मारक बना हुआ है । |
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| + | === चण्डीगढ़ === |
| + | वर्तमान हरियाणा व पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ नियोजन की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ नगर माना जाता है। इसका नाम यहाँ के प्राचीन चंडीदेवी मन्दिर के कारण चंडीगढ़ पड़ा। चंडी देवी का मन्दिर प्राचीन तथा सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ पर कई दर्शनीय पार्क तथा प्रसिद्ध संग्रहालय हैं। औद्योगिक विकास की दृष्टि से इस नगर ने काफी प्रगति की हैं। |
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| + | === शिमला === |
| + | हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला भारतवर्ष का प्रमुख पर्यटन-स्थल है।यहाँ की जलवायुशीतल व स्वास्थ्यवर्धक है।शीत ऋतु मेंयहाँ पर्याप्त हिमपात होता है। अनेक पर्यटक हिमपात के मनोरम दृश्य का आनन्द लेने सर्दियों में यहाँ पहुँचते हैं। अंग्रेजी शासनकाल में ब्रिटिश सरकार के प्रमुख कार्यालय ग्रीष्म ऋतु में शिमला में स्थानान्तरित हो जाते थे, अत: उस दौरान कई सरकारी भवनों तथा विश्रामगृहों का निर्माण हुआ। शिमला में भगवती दुग, काली आदि के कई प्रसिद्ध मन्दिर हैं। |
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| + | === कुरुक्षेत्र === |
| + | विश्व के सर्वोत्कृष्ट ज्ञान 'गीता' का उपदेश कुरुक्षेत्र के पवित्र स्थल पर प्रकट हुआ। महाभारत के इस प्राचीन युद्धक्षेत्र का हमारे देश के इतिहास की प्रमुख घटनाओं से घनिष्ठतम सम्बन्ध है। थानेश्वर, पानीपत, तरावड़ी, कंथलआदि इतिहास-प्रसिद्ध युद्धमैदान कुरुक्षेत्र की भूमि में ही स्थित हैं। ३२६ ईसा-पूर्व से लेकर सन् ४८० ई.तक यह क्षेत्र मौर्य शासकों के अधिकार में रहा। कालान्तर में गुप्तवंश के राजाओं के राज्य का प्रमुख क्षेत्र रहा। इस दौरान यहाँ का सर्वतोमुखी विकास हुआ। प्रसिद्ध कवि बाणभट्ट ने हर्षचरित' में इस क्षेत्र के ऐश्वर्य का विस्तार से वर्णन किया है। महाभारत, पद्म पुराण, स्कन्दपुराण, शतपथ ब्राह्मण, यजुर्वेद आदि ग्रन्थों में इसका श्रद्धा के साथ वर्णन किया गया है। इस पवित्र क्षेत्र में अनेक यज्ञों का विश्वकल्याण के लिए आयोजन किया गया। यहाँ अनेक वाराहतीर्थ, शुकदेव मन्दिर, गीता मन्दिर,भगवती सती मन्दिर) विराजित हैं | द्वेपायन सरोवर के पास स्थित देवी-मन्दिर प्रधान शक्तिपीठ हैं। कहते हैं यहाँ सती का दक्षिण गुल्फ गिरा था।अन्त:सलिला सरस्वती इसी स्थान के पास से बहती थी। सूर्य-ग्रहण के समय यहाँ विशाल मेला लगता है। इस मेले में भारत के सभी प्रान्तों के नर-नारी एकत्र होते हैं तथा पवित्र सरोवर में स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं। |
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| + | === इन्द्रप्रस्थ(दिल्ली) === |
| + | महाभारत में उल्लिखित यह नगर वर्तमान दिल्ली के समीप था, जिसे पाण्डवों ने बसाया था। कहा जाता है कि पहले या खाण्डव नामक बीहड़ वन था, जिसे काटकरइन्द्रप्रस्थ का निर्माण कराया गया। हस्तिनापुर का राज्य स्वयं लेने के लिए दुर्योधन के हठ और छल-प्रपंच के कारण कुरुवंश के राज्य का विभाजन कर पाण्डवों को यह बीहड़ प्रदेश दिया गया था। किन्तुमय दानव की अद्भुत स्थापत्यकला ने इन्द्रप्रस्थ की भव्यता प्रदान कर दी। युधिष्ठर ने यहीं राजसूय यज्ञ किया था। यह वर्तमान भारत संघ की राजधानी है। यहाँ अनेक ऐतिहासिक व धार्मिक स्थान हैं। विष्णुध्वज (कुतुबमीनार), पाण्डवों का किला, लालकोट, शीशगंज, रकाबगंज, भाई मतिदास चौकआदि ऐतिहासिक स्थान आज भी भारत के ज्ञान, वैभव और शौर्य की कहानी कहते हैं। योगमाया देवी, कालिका देवी, बिरला मन्दिर, संकट मोचन हनुमान मन्दिर, बौद्ध विहार, लालजैन मन्दिर, शीशगंज गुरुद्वारा, रकाबगंज गुरुद्वारा, दीवान हाल, आर्य समाज मन्दिर तथा गौरी-शांकर मन्दिर आदि नये-पुराने धार्मिक स्थल जनता की श्रद्धा के केन्द्र हैं। विदेशी आक्रमणों की आधी में दिल्ली कई बार उजड़ी और बसी है। यहाँ केअनेक प्राचीन मन्दिरऔर ऐतिहासिक स्थानों का रूप ही आक्रमणकारियों ने बदल दिया। आज जहाँ जामा मस्जिद है वहाँ कभी विशाल शिवालय था। दक्षिणी दिल्ली में एक पहाड़ी पर कालिका देवी का प्राचीन मन्दिर है, इसे शक्तिपीठ माना जाता है। |
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| + | === स्थानेश्वर === |
| + | कुरुक्षेत्र के पास स्थित वर्तमान हरियाणा का प्रमुख ऐतिहासिक नगर। पवित्र सरोवर (ब्रह्मासर, ज्योतिसर), तीर्थ क्षेत्र (काम्यकत्वन, आदितिवन, इसको स्थाण्वीश्वर नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर पवित्र सरोवर के तटपर भगवान् शिव का प्राचीन मन्दिरहै। पुराणों में इस सरोवर व मन्दिर की महिमा का वर्णन किया गया है। महाभारत युद्ध के समय भी इस पवित्र तीर्थ की मान्यता थी। युद्ध से पूर्व पाण्डवों ने यहीं पर शिव की पूजा-अर्चना की और विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया। |
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| + | === पानीपत === |
| + | अनेक युद्धों का साक्षी पानीपत आजकल हरियाणा राज्य का प्रमुख औद्योगिक नगर है। पानीपत के प्रथम, द्वितीय और तृतीय युद्ध यहाँ लड़े गये। इन युद्धों का भारत के इतिहास मेंअतिविशिष्ट स्थान है। पानीपत ने भारत के उत्थान व पतन को कई बार देखा है। |
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| + | === कपिस्थल, पृथुदक, गुरुग्राम === |
| + | कंथल (कप-स्थल), पेहोवा(पृथूदक) भी अति प्राचीन नगर और धार्मिक स्थान हैं। दिल्ली के निकट स्थित गुरुग्राम (गुड़गांव) सिद्धदेवीपीठ है। गुरुग्राम का सम्बन्ध कौरवों व पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य जी से है। आज भी यहाँ द्रोणाचार्य का मन्दिर बना हुआ है। भगवती देवी का भी यहाँ प्राचीन मन्दिर है। चैत्र नवरात्र में यहाँ दूर-दूर से देवी के भक्त आते हैं और मां भगवती के चरणों में श्रद्धा-सुमन चढ़ाते हैं हिमालय क्षेत्र में अनेक प्रमुख स्थान, पवित्र तीर्थ तथा मनोरम सुषमायुक्त नगर व क्षेत्र हैं। देश की एकात्मता व समरसता की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण स्थानों का विवरण यहाँ दिया जा रहा है। |
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| + | === यमुनोत्री व गंगोत्री === |
| + | देवापग, पतित-पावनी गंगा का उद्गम गंगोत्री है। गांगोत्री शिखर समुद्रतल से लगभग ६५०० मीटर ऊँचा है। यहाँ सदैव हिमपात होता रहता है, अत: सारा प्रदेश हिमाच्छादित रहता है। पर्वतीय ढालों पर हिमानियाँ फिसलती हैं। ऐसी ही एक हिमानी गांगोत्री के नाम से जानी जाती है तथा इसके पिघलने से गंगा सदा स्वच्छ जल से आपूरित रहती है। यहाँ का मुख्य मन्दिर आदि शांकराचार्य द्वारा स्थापित है। इस मन्दिरमें गांगा मैया की भव्य प्रतिमा है। पास में ही सूर्यकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड तथा भागीरथ शिला है। जाड़ोंमें जब शीत का प्रकोप बहुत बढ़ जाता हैं तो पुजारी गंगा जी लिए बन्द हो जाता है। गंगोत्री के समान ही यमुनोत्री पवित्र शिखरहै। यह यमुना का उद्गम स्थान हैं। यद्यपि सारा क्षेत्र हिमाचछादित है. हिमानियों का सर्वत्र प्रसार हैं। तो भी यहाँ कई गर्म पानी के कुण्ड हैं। कई कुण्डों का जल तो इतना गरम है कि पोटली में आलू,चावल बांध कर थोड़ी देर पानी में डुबो देने से पक जाते हैं। बराबर में ही कनिन्दगिरि है जहाँ से हिम पिघल-पिघल कर यमुना में बहता जाता है।अत: यमुना का एक नाम कालिन्दी भी है। एक गर्म जल का झरना भी यमुना जी के मन्दिर के पास है। यमुना जी के मन्दिर में यमुना जी की प्रतिमा विराजमान है। हिमालय के गांगोत्री-यमुनोत्री क्षेत्र से उत्तर में तिब्बत जाने के लिए कई संकरे दरें हैं। नीति, माणा और शिप किला इनमें प्रमुख हैं। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से यह अति महत्व का क्षेत्र है। |
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| + | === नन्दादेवी === |
| + | कुमायूँ. हिमालय के अन्तर्गत कईपर्वत-शखर स्थित है। केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री का वर्णन पहले किया जा चुका है। नीलकण्ठ, कामेत तथा नन्दा देवीअन्य प्रमुख उच्च शिखर हैं। नन्दादेवी इनमें सर्वोच्च है।इसकी समुद्रतल से ऊँचाई ७८१७ मीटर है। नन्दादेवी साक्षात् भगवती देवी का स्वरूप है। भाद्र शुक्ला सप्तमी को इस क्षेत्र की यात्रा होती है। यह यात्रा कब प्रारम्भ हुई कुछ पता नहीं चलता है।आसपास शिलासमुद्र, नन्दापीठ तीर्थ स्थित है। नन्दादेवी ने अत्याचारीअसुरों का वध कर इस क्षेत्र को मुक्ति प्रदान की थी। |
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| ==References== | | ==References== |