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| | == समय का अभाव == | | == समय का अभाव == |
| | अर्थाजन जीवन चलाने के लिये अनिवार्य है। आज भारत की जीवनव्यवस्था में इतना भारी परिवर्तन हो गया है कि सामान्य मनुष्य को जीवननिर्वाह हेतु अर्थाजन करने के लिये दिन का अधिकतम समय खर्च करना पड़ता है। महानगरों में व्यवसाय का स्थान घर से दूर होता है । ट्रैफिक जाम की समस्या होती है । कम समय काम करके जो पैसा मिलता है वह पर्याप्त नहीं होता। मनुष्य की इच्छायें बढ़ गई हैं और वे पूर्ण करनी ही चाहिये ऐसी धारणा बन गई है । उसके लिये अधिकाधिक अधथर्जिन करना चाहिये ऐसा मानस है। सेवानिवृत्त लोग निवृत्ति के बाद भी अर्थाजन करते हैं, दुकान चलाने वाले रात्रि में देर तक दुकान चलाते हैं, रात्रि में भी अर्थाजन चलता है । उन्हें घर के लिये समय ही नहीं है । विद्यार्थियों को भी विद्यालय, ट्यूशन, विभिन्न गतिविधियों के चलते घर में रहने का समय नहीं है । घर के लोग घर में यदि साथ ही नहीं रहते तो घर में शिक्षा कैसे होगी? | | अर्थाजन जीवन चलाने के लिये अनिवार्य है। आज भारत की जीवनव्यवस्था में इतना भारी परिवर्तन हो गया है कि सामान्य मनुष्य को जीवननिर्वाह हेतु अर्थाजन करने के लिये दिन का अधिकतम समय खर्च करना पड़ता है। महानगरों में व्यवसाय का स्थान घर से दूर होता है । ट्रैफिक जाम की समस्या होती है । कम समय काम करके जो पैसा मिलता है वह पर्याप्त नहीं होता। मनुष्य की इच्छायें बढ़ गई हैं और वे पूर्ण करनी ही चाहिये ऐसी धारणा बन गई है । उसके लिये अधिकाधिक अधथर्जिन करना चाहिये ऐसा मानस है। सेवानिवृत्त लोग निवृत्ति के बाद भी अर्थाजन करते हैं, दुकान चलाने वाले रात्रि में देर तक दुकान चलाते हैं, रात्रि में भी अर्थाजन चलता है । उन्हें घर के लिये समय ही नहीं है । विद्यार्थियों को भी विद्यालय, ट्यूशन, विभिन्न गतिविधियों के चलते घर में रहने का समय नहीं है । घर के लोग घर में यदि साथ ही नहीं रहते तो घर में शिक्षा कैसे होगी? |
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| | + | इतना कम है तो अब घर में |
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| | + | टीवी है और सबके पास मोबाइल और इण्टरनेट है। सब |
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| | + | इस दुनिया में ऐसे डूबे हुए हैं कि घर विस्मृत हो गया है । |
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| | + | इस स्थिति में घर में शिक्षा की सम्भावनायें बनती नहीं है । |
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| | + | ३. घर में सदस्यों की संख्या कम होना |
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| | + | शिक्षा नौकरी, व्यवसाय आदि करणों से दो पीढ़ियों |
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| | + | का साथ साथ रहना कठिन हो गया है। लोग इसे |
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| | + | स्वाभाविक मानने लगे हैं। अच्छा करिअर बनाना है तो |
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| | + | पढ़ने के लिये दूर जाना ही होगा । अच्छी नौकरी के लिये |
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| | + | दूर जाना ही होगा, अच्छा पैसा कमाने के लिये विदेश |
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| | + | जाना ही होगा | बच्चों को छोटी आयु से ही छात्रावास में |
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| | + | भेजना अस्वाभाविक नहीं लगता | कहीं कहीं तो करिअर |
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| | + | और अर्थारर्जन के निमित्त से पतिपत्नी भी साथ नहीं रहते । |
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| | + | कुटुम्ब ही स्थिर नहीं है तो कुट॒म्ब में शिक्षा कैसे होगी ? |
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| | + | घर में दो पीढ़ी साथ नहीं रहना और एक ही सन्तान |
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| | + | होना कठिनाई को और बढ़ाता है। एक ही सन्तान को |
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| | + | किसी को भी सहभागिता का अनुभव ही नहीं होता। |
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| | + | वस्तुओं और अनुभवों को बाँटना नहीं आता । साथ जीना |
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| | + | क्या होता है यह नहीं समझता । यह इकलौती सनन््तान पति |
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| | + | या पत्नी नहीं बनती, वह करिअर पर्सन ही बनती है। |
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| | + | कुटुम्ब में होनेवाली शिक्षा न उसे मिलती है न वह किसी |
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| | + | को दे सकती है। |
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| | + | ४. स्थिति सुधार हेतु करणीय कार्य |
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| | + | जिस भी काम का पैसा नहीं मिलता वह काम करने |
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| | + | लायक नहीं होता यही धारणा बन गई है। या तो पैसा |
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| | + | लेकर काम करना है या पैसा देकर काम करवाना है। जिस |
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| | + | काम के पैसे नहीं मिलते वह काम भी करना होता है ऐसा |
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| | + | विचार ही नहीं आता । अतः बच्चों को संस्कार देना है तो |
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| | + | संस्कारवर्ग में भेजना, अच्छा वर या वधू बनना है तो |
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| | + | उसके लिये चलने वाले वर्ग में भेजो, वर या वधू का चयन |
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| | + | इण्टरनेट से करो, व्रत या उत्सव का इवेण्ट बना दो, विवाह |
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| | + | समारोह भी इवेण्ट की तरह आयोजित करो । ऐसी स्थिति |
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| | + | में घर में शिक्षा होना असम्भव बन गया है | घर पर पश्चिम |
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| | + | की छाया पड़ गई है इसलिये घर घर नहीं रहा, घर का |
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| | + | आभास रहा है । |
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| | + | स्थिति को बदले बिना घर में शिक्षा होना यदि |
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| | + | सम्भव नहीं है तो स्थिति में परिवर्तन करने का ही प्रयास |
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| | + | करना चाहिये । इस दृष्टि से कौन सी बातें करणीय हैं इसका |
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| | + | विचार करें । |
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| | + | १. साधु, सन््तों, संन्यासियों, सामाजिक और सांस्कृतिक |
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| | + | संगठनों और संस्थाओं को कुटुम्ब प्रबोधन का कार्य |
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| | + | प्रारम्भ करना चाहिये। अच्छा मनुष्य अच्छे घर में |
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| | + | ही बनता है। संस्कृति की रक्षा घर में ही होती है, |
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| | + | ऐसे घर की रक्षा करना घर के सभी सदस्यों का |
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| | + | कर्तव्य है इस विषय में समाज का प्रबोधन करना |
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| | + | चाहिये । आज भी भारतीय समाज में साधु सन््तों की |
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| | + | बात मानने वाला बड़ा वर्ग है। उस वर्ग को घर के |
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| | + | सम्बन्ध में बताया जा सकता है । |
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| | + | २. विद्यालयों और महाविद्यालयों में गृहशासत्र के |
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| | + | कक्षानुसार पाठ्यक्रम चलाये जाने चाहिये। इन |
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| | + | पाठ्यक्रमों को अनिवार्य बनाना चाहिये । |
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| | + | ३. भारतीय कुटम्बव्यवस्था की कल्पना के अनुसार |
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| | + | बालक शिक्षा और बालिका शिक्षा का स्वरूप |
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| | + | निश्चित करना चाहिये और उसकी शिक्षा का प्रबन्ध |
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| | + | करना चाहिये । |
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| | + | ४. बहुत बड़ी आवश्यकता तो यह है कि लोगों को |
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| | + | अर्थार्जन और विद्यार्थियों को विद्यार्ज का समय कम |
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| | + | करके अधिक समय घर में साथ रहने का आग्रह |
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| | + | किया जाय । दो, तीन या चार पीढ़ियाँ साथ रहना |
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| | + | सम्भव बनाने का आग्रह किया जाय । साथ रहेंगे तो |
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| | + | साथ जीयेंगे, साथ जीयेंगे तो एकदूसरे से सीखेंगे । |
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| | + | ५. कुटुम्बशिक्षा के अनेक विषय ऐसे हैं जिनका शास्त्रीय |
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| | + | दृष्टि से ऊहापोह होकर नये से पाठ्यक्रम तैयार किये |
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| | + | जाय, उन्हें चलाने हेतु सामग्री तैयार की जाय और |
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| | + | ऐसे पाठ्यक्रम चलाने की व्यवस्था की जाय | कुछ |
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| | + | पाठ्यक्रम इस प्रकार हो सकते हैं । |
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| | + | १. वरवधू चयन |
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| | + | २. विवाह संस्कार |
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