− | वर्तमान लोकतंत्र में लोग अनेकों विविध और विकट समस्याओं से जूझ रहे हैं। गरीबी, बेरोजगारी, हिंसा, असुरक्षा, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, अस्वास्थ्य, प्रदूषण, टूटते परिवार, पगढीलापन, सांस्कृतिक विघटन, बढती मँहगाई, बढती विषमता, प्रकृति और दुर्बलों का शोषण, अपराधीकरण, स्त्रियोंपर अत्याचार, एक-पालकीय बच्चे, अविवाहित संबंध, घटते जंगल, घटता भूजलस्तर, बढता जन-धन-उत्पादन और सत्ता का केंद्रीकरण आदि। यह सूची और भी बढ सकती है। इस के उपरांत भी कोई वर्तमान लोकतंत्र के विषय में नहीं सोचे, चर्चा नहीं करे यह या तो तानाशाही कही जायेगी या फिर ऐसे समाज को एक विचारहीन समाज कहा जायेगा। लेकिन हिंदू या धार्मिक (भारतीय) समाज तो ऐसा कभी नहीं रहा। यह समाज तो सदैव ज्ञान संपन्न रहा है। युगानुकूल विचार करता रहा है। विश्व में संस्कृति और समृध्दि दोनों बातों में अग्रणी रहा है। फिर यह ऐसा बुद्धू कैसे बन गया? यह भी विचारणीय है। | + | वर्तमान लोकतंत्र में लोग अनेकों विविध और विकट समस्याओं से जूझ रहे हैं। गरीबी, बेरोजगारी, हिंसा, असुरक्षा, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, अस्वास्थ्य, प्रदूषण, टूटते परिवार, पगढीलापन, सांस्कृतिक विघटन, बढती मँहगाई, बढती विषमता, प्रकृति और दुर्बलों का शोषण, अपराधीकरण, स्त्रियोंपर अत्याचार, एक-पालकीय बच्चे, अविवाहित संबंध, घटते जंगल, घटता भूजलस्तर, बढता जन-धन-उत्पादन और सत्ता का केंद्रीकरण आदि। यह सूची और भी बढ सकती है। इस के उपरांत भी कोई वर्तमान लोकतंत्र के विषय में नहीं सोचे, चर्चा नहीं करे यह या तो तानाशाही कही जायेगी या फिर ऐसे समाज को एक विचारहीन समाज कहा जायेगा। लेकिन हिंदू या धार्मिक (भारतीय) समाज तो ऐसा कभी नहीं रहा। यह समाज तो सदैव ज्ञान संपन्न रहा है। युगानुकूल विचार करता रहा है। विश्व में संस्कृति और समृद्धि दोनों बातों में अग्रणी रहा है। फिर यह ऐसा बुद्धू कैसे बन गया? यह भी विचारणीय है। |
| आहार, निद्रा, भय और मैथुन यह प्राणिक आवेग हैं। इन प्राणिक आवेगों के स्तरपर जो जीते हैं उन्हें प्राणी कहते हैं। यह चारों बातें मनुष्य और पशु दोनों में होतीं हैं। इसलिये मनुष्य को भी प्राणी कहा जाता है। लेकिन अन्य जीवों की तरह मनुष्य केवल प्राणी नहीं होता। वह मनुष्य होता है। वह प्राण के स्तर से ऊपर के स्तर पर यानी मन के स्तर पर भी जीता है। अपने प्राणिक आवेगों को मन के द्वारा नियंत्रण में रखता है। और विचार करना यह मन का क्षेत्र है। लोगोंं ने अनेकों समस्याओं के होते हुए भी यदि विचार करना छोड दिया है तो वर्तमान में मनुष्य, मानव से पतित होकर पशुत्व की ओर बढ रहा है, इस का यह लक्षण है। यह मानव समाज के लिये वांछनीय नहीं है। | | आहार, निद्रा, भय और मैथुन यह प्राणिक आवेग हैं। इन प्राणिक आवेगों के स्तरपर जो जीते हैं उन्हें प्राणी कहते हैं। यह चारों बातें मनुष्य और पशु दोनों में होतीं हैं। इसलिये मनुष्य को भी प्राणी कहा जाता है। लेकिन अन्य जीवों की तरह मनुष्य केवल प्राणी नहीं होता। वह मनुष्य होता है। वह प्राण के स्तर से ऊपर के स्तर पर यानी मन के स्तर पर भी जीता है। अपने प्राणिक आवेगों को मन के द्वारा नियंत्रण में रखता है। और विचार करना यह मन का क्षेत्र है। लोगोंं ने अनेकों समस्याओं के होते हुए भी यदि विचार करना छोड दिया है तो वर्तमान में मनुष्य, मानव से पतित होकर पशुत्व की ओर बढ रहा है, इस का यह लक्षण है। यह मानव समाज के लिये वांछनीय नहीं है। |