# उत्पादन के साथ वितरण की व्यवस्था भी जुड़ी है। इसका अर्थ है, आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन होने के बाद आवश्यकता के अनुसार सबको उत्पाद मिलना भी चाहिये। इस दृष्टि से वितरण के नियम भी बनने चाहिये। उत्पादन, वितरण और अर्थार्जन की व्यवस्था ही बाजार है। इस बाजार का नियंत्रण आवश्यकताओं की पूर्ति के आधार पर होना चाहिये। आज अर्थार्जन आधार बन गया है, आवश्यकता की पूर्ति और जीवनधारणा नहीं। यह बड़ा अमानवीय व्यवहार है, इसे बदलने की आवश्यकता है। | # उत्पादन के साथ वितरण की व्यवस्था भी जुड़ी है। इसका अर्थ है, आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन होने के बाद आवश्यकता के अनुसार सबको उत्पाद मिलना भी चाहिये। इस दृष्टि से वितरण के नियम भी बनने चाहिये। उत्पादन, वितरण और अर्थार्जन की व्यवस्था ही बाजार है। इस बाजार का नियंत्रण आवश्यकताओं की पूर्ति के आधार पर होना चाहिये। आज अर्थार्जन आधार बन गया है, आवश्यकता की पूर्ति और जीवनधारणा नहीं। यह बड़ा अमानवीय व्यवहार है, इसे बदलने की आवश्यकता है। |