− | उत्कल(उड़ीसा) का यह प्रमुख पर्वत गांजाम जिले में फैला हुआ है। भारत के पूर्वी तट पर स्थित पूर्वी घाट पर्वतमाला का यह उत्तरी छोर तथा उच्च पर्वत है। समुद्र-तल से इसकी ऊँचाई लगभग १५00 मीटर है। पुराणों में वर्णित सात कुल-पर्वतों में इसका भी स्थान है। रामायण, महाभारत, पुराण आदि ग्रन्थों में इसका श्रद्धा के साथ उल्लेख आता है। कालिदास ने रघुदिग्विजय प्रसंग में इस पर्वत का तीर्थ तथा मनोरम स्थल के रूप में वर्णन किया है। यहाँ पर अनेक प्राचीन व भव्य मन्दिर बने हैं। गोकर्णीश्वर मन्दिर यहाँ का सबसे प्रमुख मन्दिर है।राजेन्द्र चोल ने अपनी विजय की स्मृति में एक स्तंभ का निर्माण कराया। उड़िया कवि राधानाथ राय ने महेन्द्र पर्वत की सुरम्यता व शान्त वातावरण का सजीव चित्रण किया है। महेन्द्रतनय नामक स्रोत का प्रादुर्भाव यहीं से है। सप्त चिरंजीवियों में से एक भगवान | + | उत्कल(उड़ीसा) का यह प्रमुख पर्वत गांजाम जिले में फैला हुआ है। भारत के पूर्वी तट पर स्थित पूर्वी घाट पर्वतमाला का यह उत्तरी छोर तथा उच्च पर्वत है। समुद्र-तल से इसकी ऊँचाई लगभग १५00 मीटर है। पुराणों में वर्णित सात कुल-पर्वतों में इसका भी स्थान है। रामायण, महाभारत, पुराण आदि ग्रन्थों में इसका श्रद्धा के साथ उल्लेख आता है। कालिदास ने रघुदिग्विजय प्रसंग में इस पर्वत का तीर्थ तथा मनोरम स्थल के रूप में वर्णन किया है। यहाँ पर अनेक प्राचीन व भव्य मन्दिर बने हैं। गोकर्णीश्वर मन्दिर यहाँ का सबसे प्रमुख मन्दिर है।राजेन्द्र चोल ने अपनी विजय की स्मृति में एक स्तंभ का निर्माण कराया। उड़िया कवि राधानाथ राय ने महेन्द्र पर्वत की सुरम्यता व शान्त वातावरण का सजीव चित्रण किया है। महेन्द्रतनय नामक स्रोत का प्रादुर्भाव यहीं से है। सप्त चिरंजीवियों में से एक भगवान परशुराम का आवास इसी पर्वत पर है। |
− | भारत के पश्चिमी तट के गुजरात महाराष्ट्र तथा कर्नाटक राज्य में सह्याद्रि पर्वतमाला का विस्तार है। दक्षिण भारत की प्रमुख नदियों (गोदावरी, कृष्णा, कावेरी) के उद्गम-स्थान इसी श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। त्रयम्बकेश्वर, महाबलेश्वर,भीमशकिर, ब्रह्मगिरि, भगवती भवानी, बौद्ध चैत्य प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र इसी पर्वत-श्रेणी में विराजमान हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज से सम्बन्धित कई दुर्ग (शिवनेरी, पन्हालगढ़, प्रतापगढ़, चाकन, रायगढ़) और शिवाजी महाराज की समाधि इस पर्वत की ऐतिहासिक धरोहर हैं। सह्याद्रि उत्तर-दक्षिण खड़ी दीवार के रूप में है। तटीय क्षेत्र में जाने के लिए थाल घाट, भोरघाट, नाना दरी, पालघाट होकर रेल व सड़क मार्ग बनाये गये हैं। सूरत, मुम्बई, रत्नागिरि, पजिम, मंगलौरआदि नगर इसके पश्चिम में समुद्र की ओर स्थित हैं। ब्रह्माजी ने सृष्टि के प्रारम्भ में यहाँ पर यज्ञ किया। दो देंत्यों अतिबल और महाबल ने यज्ञ में बाधा डाली तो विष्णुऔर भगवती आदि ने उनको मारकर यज्ञ को निर्विघ्न पूर्ण करा दिया। भगवान् विष्णु यहाँ पर अतिबलेश्वर, ब्रह्मा कोटीश्वर तथा शंकर महाबलेश्वर के रूप में विराजमान होकर आज भी प्रतिष्ठित हैं। परशुराम का आवास इसी पर्वत पर है। मील दूर पर वसुधारा तीर्थ है जहाँ आठ वसुओं ने अपनी मुक्ति के लिए तप किया था। सदीं के दिनों में इस मन्दिर के कपाट बन्द रहते हैं तथा गर्मी आने पर पुन: खुल जाते हैं। जोशीमठ में शीतकाल में बद्रीनाथ की चल प्रतिमा लाकर स्थापित की जाती है और यहीं पर इसकी पूजा-अर्चना की जाती हैं। | + | भारत के पश्चिमी तट के गुजरात महाराष्ट्र तथा कर्नाटक राज्य में सह्याद्रि पर्वतमाला का विस्तार है। दक्षिण भारत की प्रमुख नदियों (गोदावरी, कृष्णा, कावेरी) के उद्गम-स्थान इसी श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। त्रयम्बकेश्वर, महाबलेश्वर,भीमशकिर, ब्रह्मगिरि, भगवती भवानी, बौद्ध चैत्य प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र इसी पर्वत-श्रेणी में विराजमान हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज से सम्बन्धित कई दुर्ग (शिवनेरी, पन्हालगढ़, प्रतापगढ़, चाकन, रायगढ़) और शिवाजी महाराज की समाधि इस पर्वत की ऐतिहासिक धरोहर हैं। सह्याद्रि उत्तर-दक्षिण खड़ी दीवार के रूप में है। तटीय क्षेत्र में जाने के लिए थाल घाट, भोरघाट, नाना दरी, पालघाट होकर रेल व सड़क मार्ग बनाये गये हैं। सूरत, मुम्बई, रत्नागिरि, पजिम, मंगलौरआदि नगर इसके पश्चिम में समुद्र की ओर स्थित हैं। ब्रह्माजी ने सृष्टि के प्रारम्भ में यहाँ पर यज्ञ किया। दो देंत्यों अतिबल और महाबल ने यज्ञ में बाधा डाली तो विष्णुऔर भगवती आदि ने उनको मारकर यज्ञ को निर्विघ्न पूर्ण करा दिया। भगवान् विष्णु यहाँ पर अतिबलेश्वर, ब्रह्मा कोटीश्वर तथा शंकर महाबलेश्वर के रूप में विराजमान होकर आज भी प्रतिष्ठित हैं। |