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४९. वैचारीक स्तर पर अनेक असम्बद्ध संकल्पनाओं का प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए वैश्विकता, आधुनिकता, वैज्ञानिकता आदि संकल्पनाओं के अर्थ बहुत ही विचित्र हो गए हैं । धर्मनिरपेक्षता एक ऐसी ही संदिग्ध संकल्पना है जो अपनाई भी नहीं जा सकती और छोड़ी भी नहीं जा सकती ।
४९. वैचारीक स्तर पर अनेक असम्बद्ध संकल्पनाओं का प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए वैश्विकता, आधुनिकता, वैज्ञानिकता आदि संकल्पनाओं के अर्थ बहुत ही विचित्र हो गए हैं । धर्मनिरपेक्षता एक ऐसी ही संदिग्ध संकल्पना है जो अपनाई भी नहीं जा सकती और छोड़ी भी नहीं जा सकती ।
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५०. स्वतन्त्रता, ख्त्रीपुरुष समानता, बच्चों के अधिकार, मानव अधिकार आदि संकल्पनाओं ने सामाजिक समरसता को नष्ट कर दिया है । इससे किसीको लाभ नहीं मिल रहा है और नुकसान अपरिमित हो रहा है । तो भी इसे छोड़ने का साहस किसीमें नहीं है । छोड़ने पर अपराधबोध होता है ।
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५०. स्वतन्त्रता, ख्त्रीपुरुष समानता, बच्चोंं के अधिकार, मानव अधिकार आदि संकल्पनाओं ने सामाजिक समरसता को नष्ट कर दिया है । इससे किसीको लाभ नहीं मिल रहा है और नुकसान अपरिमित हो रहा है । तो भी इसे छोड़ने का साहस किसीमें नहीं है । छोड़ने पर अपराधबोध होता है ।
५१. शिक्षा धर्म सिखाती है, मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है, शिक्षा का अधिष्ठान आध्यात्मिक है ऐसी बातें भारत के सभी धर्माचार्य और विदट्रज्जन कहते हैं परन्तु देश कि अधिकृत शिक्षाव्यवस्था यूरोअमेरिकी मोडेल पर ही चलती है । देश का संविधान, संविधान की प्रतिष्ठा के लिए बने कानून और संविधान के अनुसार देश को चलाने हेतु बनी संसद धर्म के विषय में अत्यंत ट्रिधा मनःस्थिति में रहती है । यही अवस्था शिक्षा की भी है ।
५१. शिक्षा धर्म सिखाती है, मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है, शिक्षा का अधिष्ठान आध्यात्मिक है ऐसी बातें भारत के सभी धर्माचार्य और विदट्रज्जन कहते हैं परन्तु देश कि अधिकृत शिक्षाव्यवस्था यूरोअमेरिकी मोडेल पर ही चलती है । देश का संविधान, संविधान की प्रतिष्ठा के लिए बने कानून और संविधान के अनुसार देश को चलाने हेतु बनी संसद धर्म के विषय में अत्यंत ट्रिधा मनःस्थिति में रहती है । यही अवस्था शिक्षा की भी है ।