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* '''मनोरंजन''' : अस्थिर, अशान्त, आसक्त, कामपूर्ण मन को अधिक अशान्त, अधिक अस्थिर, अधिक आसक्त, अधिक कामी बनानेवाला, उसी मन को खुश करने हेतु सौन्दर्य और सौन्दर्यबोध को विकृत बना देने वाला तत्त्व पश्चिम के लिये मनोरंजन है तो वास्तिविक विकास के मार्गों को अवरुद्ध कर देता है।  
 
* '''मनोरंजन''' : अस्थिर, अशान्त, आसक्त, कामपूर्ण मन को अधिक अशान्त, अधिक अस्थिर, अधिक आसक्त, अधिक कामी बनानेवाला, उसी मन को खुश करने हेतु सौन्दर्य और सौन्दर्यबोध को विकृत बना देने वाला तत्त्व पश्चिम के लिये मनोरंजन है तो वास्तिविक विकास के मार्गों को अवरुद्ध कर देता है।  
 
* '''समृद्धि''' : दारिद्य, हीनता और विनाश की ओर ले जाने वाला भौतिक पदार्थों का आधिक्य जो प्रथम दूसरों का और अन्त में स्वयं का भी नाश करता है।  
 
* '''समृद्धि''' : दारिद्य, हीनता और विनाश की ओर ले जाने वाला भौतिक पदार्थों का आधिक्य जो प्रथम दूसरों का और अन्त में स्वयं का भी नाश करता है।  
* '''ज्ञान''' : भौतिक जगत के जडतापूर्ण रहस्यों को जानने की और गति, विकास, समृद्धि आदि को प्राप्त करने हेतु जानकारी का प्रयोग करने की शक्ति जो मुक्ति के स्थान पर शक्ति का संचय कर नाश का कारण बनती
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* '''ज्ञान''' : भौतिक जगत के जड़तापूर्ण रहस्यों को जानने की और गति, विकास, समृद्धि आदि को प्राप्त करने हेतु जानकारी का प्रयोग करने की शक्ति जो मुक्ति के स्थान पर शक्ति का संचय कर नाश का कारण बनती
* '''विज्ञान''' : यह एक तात्त्विक मोहजाल से निकली संकल्पना है जिसने सारे चेतनायुक्त अस्तित्वों को जड सिद्ध कर दिया है और जगत को अनिष्टों के जाल में फंसा दिया है।  
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* '''विज्ञान''' : यह एक तात्त्विक मोहजाल से निकली संकल्पना है जिसने सारे चेतनायुक्त अस्तित्वों को जड़ सिद्ध कर दिया है और जगत को अनिष्टों के जाल में फंसा दिया है।  
 
* '''आधुनिकता''' : अत्यन्त आकर्षक लगने वाली यह संकल्पना वास्तव में चर्चसत्ता और राज्यसत्ता के संघर्ष से जन्मी निधार्मिक संकल्पना है जिसमें 'विज्ञान' की भी भूमिका है। भौतिकता, संस्कारहीनता, अमानवीयता आदि का विचित्र मिश्रण है । इसका न कोई सार्थक आधार है न स्वरूप ।
 
* '''आधुनिकता''' : अत्यन्त आकर्षक लगने वाली यह संकल्पना वास्तव में चर्चसत्ता और राज्यसत्ता के संघर्ष से जन्मी निधार्मिक संकल्पना है जिसमें 'विज्ञान' की भी भूमिका है। भौतिकता, संस्कारहीनता, अमानवीयता आदि का विचित्र मिश्रण है । इसका न कोई सार्थक आधार है न स्वरूप ।
 
'''भारत को चाहिये कि इन सभी सुन्दर शब्दों के सही अर्थ विश्व के समक्ष प्रस्तुत करे ।'''
 
'''भारत को चाहिये कि इन सभी सुन्दर शब्दों के सही अर्थ विश्व के समक्ष प्रस्तुत करे ।'''

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