यह सम्भव है कि विश्व अब कदाचित धीरे धीरे, परन्तु एक होने की दिशा में, वसुधैव कुटुम्बकम की नयी (?) सोच साथ लेकर, सृष्टिसर्जन की स्वचालित प्रक्रिया को स्वीकार करके विशुद्ध समझ के साथ आगे बढ़ रहा है। यह यदि सच है तो यह नूतन दृष्टि सबका नारा बन जाएगी। सभी को उसे अपनाना ही पडेगा। इसके लिए प्रत्येक को आत्मखोज करनी पड़ेगी। ऐसी खोज समग्र समाज, राज्य, राष्ट्र, यूरोप या अन्य सभी को करनी ही पडेगी। ऐसा आत्मदर्शन, आत्मनिवेदन, गत पाँच शाताब्दियों के हमारे भयानक कृत्यों के लिए पश्चाताप की भूमिका निभायेगा एवं अब तक जो भी हानि हुई है उसकी पूर्ति के या सुधार के उपाय का अवसर भी देगा। | यह सम्भव है कि विश्व अब कदाचित धीरे धीरे, परन्तु एक होने की दिशा में, वसुधैव कुटुम्बकम की नयी (?) सोच साथ लेकर, सृष्टिसर्जन की स्वचालित प्रक्रिया को स्वीकार करके विशुद्ध समझ के साथ आगे बढ़ रहा है। यह यदि सच है तो यह नूतन दृष्टि सबका नारा बन जाएगी। सभी को उसे अपनाना ही पडेगा। इसके लिए प्रत्येक को आत्मखोज करनी पड़ेगी। ऐसी खोज समग्र समाज, राज्य, राष्ट्र, यूरोप या अन्य सभी को करनी ही पडेगी। ऐसा आत्मदर्शन, आत्मनिवेदन, गत पाँच शाताब्दियों के हमारे भयानक कृत्यों के लिए पश्चाताप की भूमिका निभायेगा एवं अब तक जो भी हानि हुई है उसकी पूर्ति के या सुधार के उपाय का अवसर भी देगा। |