# पाश्चात्य शासनतंत्र में और न्यायतंत्र में जिस व्यक्तिपर न्याय की जिम्मेदारी है जिस के हाथों में न्याय व्यवस्था है उस के द्वारा किये अन्याय के लिये कोई उपाय नहीं है। नीचे की अदालत में यदि गलत न्याय दिया गया हो तो ऊपर की अदालत उसे बदल तो सकती है । किन्तु नीचे की अदालत के न्यायाधीश और वकीलों को दण्डित नहीं कर सकती। पुलिस किसी निरपराध को पकड़ लेती है । उसे पीडा देती है। उस के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण काल का हरण कर लेती है। किन्तु उस के निरपराध सिद्ध होने पर उस निरपराध को कोई मुआवजा नहीं दिया जाता। और ना ही उस पुलिस अधिकारी को अपने कर्तव्य को ठीक से न निभाने के लिये दण्डित किया जाता है। धार्मिक (धार्मिक) शासन व्यवस्था और न्यायव्यवस्था में किसी अधिकारी फिर वह न्यायाधीश हो चाहे शासकीय अधिकारी, उस के दायरे में अपराध होने से वह अधिकारी अपराधी माना जाता था। किसी अधिकारी के क्षेत्र में आने वाले किसी के घर में चोरी हुए माल को वह अधिकारी यदि ढूँढने में असफल हो जाता था तो जिसका नुकसान हुआ है उस की नुकसान भरपाई उस अधिकारी को करनी पडती थी। | # पाश्चात्य शासनतंत्र में और न्यायतंत्र में जिस व्यक्तिपर न्याय की जिम्मेदारी है जिस के हाथों में न्याय व्यवस्था है उस के द्वारा किये अन्याय के लिये कोई उपाय नहीं है। नीचे की अदालत में यदि गलत न्याय दिया गया हो तो ऊपर की अदालत उसे बदल तो सकती है । किन्तु नीचे की अदालत के न्यायाधीश और वकीलों को दण्डित नहीं कर सकती। पुलिस किसी निरपराध को पकड़ लेती है । उसे पीडा देती है। उस के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण काल का हरण कर लेती है। किन्तु उस के निरपराध सिद्ध होने पर उस निरपराध को कोई मुआवजा नहीं दिया जाता। और ना ही उस पुलिस अधिकारी को अपने कर्तव्य को ठीक से न निभाने के लिये दण्डित किया जाता है। धार्मिक (धार्मिक) शासन व्यवस्था और न्यायव्यवस्था में किसी अधिकारी फिर वह न्यायाधीश हो चाहे शासकीय अधिकारी, उस के दायरे में अपराध होने से वह अधिकारी अपराधी माना जाता था। किसी अधिकारी के क्षेत्र में आने वाले किसी के घर में चोरी हुए माल को वह अधिकारी यदि ढूँढने में असफल हो जाता था तो जिसका नुकसान हुआ है उस की नुकसान भरपाई उस अधिकारी को करनी पडती थी। |