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| == निःशुल्क शिक्षा एवं स्वायत्तता == | | == निःशुल्क शिक्षा एवं स्वायत्तता == |
− | गुरुकुल की शिक्षा पूर्णरूप से निःशुल्क होती थी । | + | गुरुकुल की शिक्षा पूर्णरूप से निःशुल्क होती थी। इतना ही नहीं तो अध्ययन करने वालों का पूर्ण निर्वाह भी गुरुकुल की ओर से ही चलता था । गुरुकुल या तो स्वावलम्बी होते थे, या तो राजा, धनी व्यक्ति और पूरा समाज उसके निभाव की, निर्वहण की चिन्ता करता था या आवश्यक सहयोग देता था । सहायता कहीं से भी मिलती हो, गुरुकुल पूर्ण रूप से स्वायत्त होता था। अध्ययन और अध्यापन दोनों अर्थनिरपेक्ष होते थे। वर्तमान में विश्वविद्यालयों की शिक्षा निःशुल्क नहीं होती है । निजी विद्यालयों में तो शुल्क बहुत अधिक होता है, शासन द्वारा संचालित संस्थाओं में अथवा अनुदानित संस्थाओं में शुल्क कम होता है । फिर भी शिक्षा निश्चित रूप से शुल्क के साथ जुड़ गई है। इसी प्रकार से विश्वविद्यालय शैक्षिक दृष्टि से काफी कुछ मात्रा में स्वायत्त होते हैं परन्तु प्रशासन की दृष्टि से राज्य के अधीन ही होते हैं । अर्थात् स्वायत्तता की संकल्पना भी बहुत सीमित कर दी गई है । |
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− | समाज उसके निभाव की, निर्वहण की चिन्ता करता था या | |
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− | आवश्यक सहयोग देता था । सहायता कहीं से भी मिलती | |
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− | हो, गुरुकुल पूर्ण रूप से स्वायत्त होता था । अध्ययन और | |
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− | अध्यापन दोनों अर्थनिरपेक्ष होते थे। वर्तमान में | |
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− | विश्वविद्यालयों की शिक्षा निःशुल्क नहीं होती है । निजी | |
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− | विद्यालयों में तो शुल्क बहुत अधिक होता है, शासन द्वारा | |
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− | संचालित संस्थाओं में अथवा अनुदानित संस्थाओं में शुल्क | |
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− | कम होता है । फिर भी शिक्षा निश्चित रूप से शुल्क के | |
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− | साथ जुड़ गई है । इसी प्रकार से विश्वविद्यालय शैक्षिक दृष्टि | |
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− | से काफी कुछ मात्रा में स्वायत्त होते हैं परन्तु प्रशासन की | |
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− | दृष्टि से राज्य के अधीन ही होते हैं । अर्थात् स्वायत्तता की | |
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− | संकल्पना भी बहुत सीमित कर दी गई है । | |
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| == गुरुकुल व्यवस्था के लाभ == | | == गुरुकुल व्यवस्था के लाभ == |
− | गुरुकुल व्यवस्था ज्ञानार्जन, ज्ञानपरम्परा और ज्ञान | + | गुरुकुल व्यवस्था ज्ञानार्जन, ज्ञानपरम्परा और ज्ञान की सर्वोपरिता की दृष्टि से अत्यन्त श्रेष्ठ व्यवस्था है इसमें कोई संदेह नहीं है । गुरुकुल शिक्षापद्धति में अध्ययन का कार्य सम्पूर्ण जीवनचर्या के साथ समरस रहता है और इसलिये वह सम्पूर्ण जीवन को आलोकित करता है। ऐसा होने के कारण से छात्र बारह वर्ष में आज की तुलना में बहुत अधिक और बहुत गहरा ज्ञान अर्जित करता था तथा उसका सम्पूर्ण जीवन उसी अर्जित ज्ञान के प्रकाश में ही चलता था । गुरुकुल में अर्जित ज्ञान विचार, भावना और क्रिया इन तीनों पक्षों में समृद्ध होता था । कुल मिलाकर ज्ञान संस्कारयुक्त होता था और छात्रों को समाजपरायण बनाता था । इन गुरुकुलों के कारण सम्पूर्ण समाज में सुख, समृद्धि, संस्कारिता, शान्ति एवं शास्त्रपरायणता आती थी । |
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− | की सर्वोपरिता की दृष्टि से अत्यन्त श्रेष्ठ व्यवस्था है इसमें | |
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− | alg Gres नहीं है । गुरुकुल शिक्षापद्धति में अध्ययन का
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− | कार्य सम्पूर्ण जीवनचर्या के साथ समरस रहता है और | |
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− | इसलिये वह सम्पूर्ण जीवन को आलोकित करता है। | |
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− | ऐसा होने के कारण से छात्र बारह वर्ष में आज की तुलना | |
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− | में बहुत अधिक और बहुत गहरा ज्ञान अर्जित करता था | |
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− | तथा उसका सम्पूर्ण जीवन उसी अर्जित ज्ञान के प्रकाश में | |
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− | ही चलता था । गुरुकुल में अर्जित ज्ञान विचार, भावना | |
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− | और क्रिया इन तीनों पक्षों में समृद्ध होता था । कुल | |
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− | मिलाकर ज्ञान संस्कारयुक्त होता था और छात्रों को | |
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− | समाजपरायण बनाता था । इन गुरुकुलों के कारण सम्पूर्ण | |
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− | शाख्रपरायणता आती थी ।
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| == वर्तमान में हम क्या करें == | | == वर्तमान में हम क्या करें == |
− | गुरुकुल व्यवस्था सर्व दृष्टि से लाभकारी तो है परन्तु | + | गुरुकुल व्यवस्था सर्व दृष्टि से लाभकारी तो है परन्तु आज उसे यथावत लागू करना, हमें असम्भव लगता है। फिर भी ज्ञान को सार्थक बनाना है, अध्ययन अध्यापन को मजदूरी बनने से बचाना है, शिक्षा को राष्ट्रनिर्माण का सर्वश्रेष्ठ साधन बनाना है तो हमें गुरुकुल रचना को पुनर्जीवित और पुनर्प्रतिष्ठित करना होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है । ऐसा यदि करना है तो हमें नये सिरे से कुछ इस प्रकार से योजना करनी होगी: |
− | | + | # सर्व प्रथम अपने समाज में कुलपति बनने की वृत्ति और प्रवृत्ति रखने वाले लोगों को गुरुकुलों की स्थापना करने हेतु आगे आना पड़ेगा । ऐसे लोग हमारे बीच में से आगे आयें ऐसा वातावरण बनाना पडेगा । समाज की ज्ञान और संस्कार की आकांक्षा जागय्रत करना यह प्रथम कार्य है । |
− | आज उसे यथावत लागू करना, हमें असम्भव लगता है। | + | # इन कुलपतियों को ऐसे गुरुकुलों की स्थापना करनी पड़ेगी । गुरुकुल शिक्षा के सभी सिद्धान्त इनमें व्यवहृत होते हों ऐसा करना पड़ेगा । |
− | | + | # कई संस्थाओं और संगठनों को इन गुरुकुलों के लिए रक्षात्मक और पौषक वातावरण निर्माण करना पड़ेगा । समाज को अपने छात्रों के लिये ऐसे गुरुकुलों का चयन करने हेतु प्रेरित करना होगा । |
− | फिर भी ज्ञान को सार्थक बनाना है, अध्ययन अध्यापन को | + | # समाज के शत प्रतिशत छात्रों के लिये गुरुकुल की रचना तत्काल सम्भव नहीं होगी यह वास्तविकता है। परन्तु प्रारम्भ ५ से १० प्रतिशत छात्रों के लिये हो तो भी पर्याप्त मानना चाहिये । इतने मात्र से समाज पर बहुत बड़ा प्रभाव दिखाई देगा । |
− | | + | # हम चाहें तो देशभर में जो विश्वविद्यालय चल रहे हैं उनमें से प्रत्येक राज्य में एक विश्वविद्यालय को गुरुकुल में परिवर्तित कर सकते हैं। परन्तु ऐसा करने के लिये भी पाँच दस वर्ष की पूर्व तैयारी आवश्यक रहेगी । |
− | मजदूरी बनने से बचाना है, शिक्षा को राष्ट्रनिर्माण का | + | # देशभर में जो आवासीय विद्यालय हैं उन्हें शैक्षिक दृष्टि से गुरुकुल में परिवर्तित करना अत्यन्त लाभकारी रहेगा । धीरे धीरे करके इन आवासीय विद्यालयों को पूर्ण रूप से उनके अधीक्षकों के अधीन कर दिया जाय, सक्षम अधीक्षक को कुलपति बना दिया जाय । |
− | | + | # निःशुल्क शिक्षा के प्रयोग तो स्थान स्थान पर चल सकते हैं । हमारे समाज में अभी भी विद्या को पवित्र मानने के और पवित्र पदार्थ को क्रय विक्रय से परे रखने के संस्कार अन्तस्तल में जीवित हैं । उन्हें जाग्रत किया जा सकता है । |
− | सर्वश्रेष्ठ साधन बनाना है तो हमें गुरुकुल wa a | + | # गुरुकुलों के लिये शासन मान्यता की आवश्यकता को समाप्त कर देना चाहिये । शासन को भी ऐसी स्थिति निर्माण करने में सहयोग करना चाहिये । शासन को इन संस्थाओं का सम्मान करना चाहिये । |
− | | + | # भौतिक आवश्यकताओं की न्यूनता, विनय, सेवा, संयम, स्वावलंबन, श्रम, स्वाध्याय, ब्रह्मचर्य आदि की आवश्यकता और स्वीकार्यता को बढ़ावा देना चाहिये । ये ज्ञानार्जन के आधारभूत तत्त्व हैं । |
− | पुनर्जीवित और पुनर्प्रतिष्ठित करना होगा, इसमें कोई संदेह | + | # क्रमशः सभी विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में स्वायत्तता, शिक्षकाधीनता, स्वावलम्बन, श्रमनिष्ठा, उद्योग परायणता, ज्ञाननिष्ठा, जीवननिष्ठा, समाजनिष्ठा को प्रस्थापित करना चाहिये । इस दृष्टि से समाज हितैषियों और शिक्षण चिन्तकों ने गुरुकुल संकल्पना के मूल तत्त्वों को स्पष्ट करते हुए समाज प्रबोधन करना चाहिये । यदि हम तय करते हैं तो आने वाले पचीस पचास वर्षों में गुरुकुल प्रणाली को पुनर्जीवित और पुनर्प्रतिष्ठित किया जा सकता है । |
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− | नहीं है । ऐसा यदि करना है तो हमें नये सिरे से कुछ इस | |
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− | प्रकार से योजना करनी होगी - | |
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− | सर्व प्रथम अपने समाज में कुलपति बनने की वृत्ति | |
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− | और प्रवृत्ति रखने वाले लोगों को गुरुकुलों की | |
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− | स्थापना करने हेतु आगे आना पड़ेगा । ऐसे लोग | |
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− | हमारे बीच में से आगे आयें ऐसा वातावरण बनाना | |
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− | पडेगा । समाज की ज्ञान और संस्कार की आकांक्षा | |
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− | जागय्रत करना यह प्रथम कार्य है । | |
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− | इन कुलपतियों को ऐसे गुरुकुलों की स्थापना करनी | |
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− | पड़ेगी । गुरुकुल शिक्षा के सभी सिद्धान्त इनमें | |
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− | व्यवह्हत होते हों ऐसा करना पड़ेगा ।
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− | कई संस्थाओं और संगठनों को इन गुरुकुलों के | |
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− | लिए रक्षात्मक और पौषक वातावरण निर्माण करना | |
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− | पड़ेगा । समाज को अपने छात्रों के लिये ऐसे | |
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− | गुरुकुलों का चयन करने हेतु प्रेरित करना होगा । | |
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− | समाज के शत प्रतिशत छात्रों के लिये गुरुकुल की | |
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− | रचना तत्काल सम्भव नहीं होगी यह वास्तविकता | |
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− | है। परन्तु प्रारम्भ ५ से १० प्रतिशत छात्रों के लिये | |
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− | हो तो भी पर्याप्त मानना चाहिये । इतने मात्र से | |
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− | समाज पर बहुत बड़ा प्रभाव दिखाई देगा । | |
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− | हम चाहें तो देशभर में जो विश्वविद्यालय चल रहे हैं | |
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− | उनमें से प्रत्येक राज्य में एक विश्वविद्यालय को | |
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− | गुरुकुल में परिवर्तित कर सकते हैं। परन्तु ऐसा | |
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− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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− | करने के लिये भी पाँच दस वर्ष की पूर्वतैयारी | |
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− | आवश्यक रहेगी । | |
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− | देशभर में जो आवासीय विद्यालय हैं उन्हें शैक्षिक | |
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− | दृष्टि से गुरुकुल में परिवर्तित करना अत्यन्त | |
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− | लाभकारी रहेगा । धीरे धीरे करके इन आवासीय | |
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− | विद्यालयों को पूर्ण रूप से उनके अधीक्षकों के | |
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− | अधीन कर दिया जाय, सक्षम अधीक्षक को कुलपति | |
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− | बना दिया जाय । | |
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− | निःशुल्क शिक्षा के प्रयोग तो स्थान स्थान पर चल | |
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− | सकते हैं । हमारे समाज में अभी भी विद्या को | |
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− | पतित्र मानने के और पवित्र पदार्थ को क्रय विक्रय
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− | से परे रखने के संस्कार अन्तस्तल में जीवित हैं । | |
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− | उन्हें जाग्रत किया जा सकता है । | |
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− | गुरुकुलों के लिये शासन मान्यता की आवश्यकता | |
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− | को समाप्त कर देना चाहिये । शासन को भी ऐसी | |
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− | स्थिति निर्माण करने में सहयोग करना चाहिये । | |
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− | शासन ने इन संस्थाओं का सम्मान करना चाहिये । | |
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− | भौतिक आवश्यकताओं की न्यूनता, विनय, सेवा, | |
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− | संयम, स्वावलंबन, श्रम, स्वाध्याय, ब्रह्मचर्य आदि | |
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− | की आवश्यकता और स्वीकार्यता को बढ़ावा देना | |
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− | चाहिये । ये ज्ञानार्जन के आधारभूत तत्त्व हैं । | |
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− | .. क्रमशः सभी विद्यालयों wa महाविद्यालयों में
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− | स्वायत्तता, शिक्षकाधीनता, स्वावलम्बन, श्रमनिष्ठा, | |
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− | उद्योग परायणता, ज्ञाननिष्ठा, जीवननिष्ठा, समाजनिष्ठा | |
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− | को प्रस्थापित करना चाहिये । इस दृष्टि से समाज | |
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− | हितैषियों और शिक्षण चिन्तकों ने गुरुकुल संकल्पना | |
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− | के मूल तत्त्वों को स्पष्ट करते हुए समाज प्रबोधन | |
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− | करना चाहिये । | |
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− | यदि हम तय करते हैं तो आने वाले पचीस पचास | |
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− | वर्षों में गुरुकुल प्रणाली को पुनर्जीवित और पुनर्प्रतिष्ठित | |
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− | किया जा सकता है । | |
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| ==References== | | ==References== |