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− | आचायों विनायकः (विनोबा भावे) | + | आचायों विनायकः (विनोबा भावे) (11 सितम्बर 1894-15 नवम्बर 1982 ई०) |
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− | (11 सितम्बर 1894-15 नवम्बर 1982 ई०) | |
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| भूदानाख्यमहाध्वर*स्य भुवने, योऽस्तीह नेता महान्, | | भूदानाख्यमहाध्वर*स्य भुवने, योऽस्तीह नेता महान्, |
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| मान्याचार्यविनायको विजयतेऽसौ कर्मयोगी महान् ॥77।। | | मान्याचार्यविनायको विजयतेऽसौ कर्मयोगी महान् ॥77।। |
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− | जो भूदान नामक महायज्ञ के महान् नेता है, जो परमेश्वर की | + | जो भूदान नामक महायज्ञ के महान् नेता है, जो परमेश्वर की उपासना करने वाले और श्रुति (वेद) को उत्तम सुख देने वाली माता मानने बाले हैं, दीनों के उद्धार में तत्पर, तपस्वियों में उत्तम, सात्त्विक, अहिंसात्रत धारी उन महान् कर्मयोगी मान्य आचार्य विनायक (विनोबा भावे) जी की जय हो। |
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− | उपासना करने वाले और श्रुति (वेद) को उत्तम सुख देने वाली माता | |
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− | मानने बाले हैं, दीनों के उद्धार में तत्पर, तपस्वियों में उत्तम, सात्त्विक, | |
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− | अहिंसात्रत धारी उन महान् कर्मयोगी मान्य आचार्य विनायक (विनोबा | |
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− | भावे) जी की जय हो। | |
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| 1. *अध्वरस्य = यज्ञस्य। | | 1. *अध्वरस्य = यज्ञस्य। |
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| निर्भीकश्चरतीह यो हि सकले, देशे महाकोविदः*, | | निर्भीकश्चरतीह यो हि सकले, देशे महाकोविदः*, |
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| स्वीयं नैव सुखं कदापि गणयन्, नक्तं न पश्यन्दिनम्। | | स्वीयं नैव सुखं कदापि गणयन्, नक्तं न पश्यन्दिनम्। |
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| मान्याचार्यविनायको विजयतेऽसौ कर्मयांगी महान् ।।781। | | मान्याचार्यविनायको विजयतेऽसौ कर्मयांगी महान् ।।781। |
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− | जो महाविद्वान् निर्भय होकर सारे देश में विचरण करते हैं अपने | + | जो महाविद्वान् निर्भय होकर सारे देश में विचरण करते हैं अपने 'सुख की कभी पर्वाह न करते हुए, न दिन और न रात देखते हुए जो सेवाब्रत का पालन करते हुए प्रसन्नता पूर्वक सदा पैदल यात्रा करते हैं, ऐसे महान् कर्मयोगी मान्य आचार्य विनायक (विनोबा भावे) जी की जय हो। |
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− | 'सुख की कभी पर्वाह न करते हुए, न दिन और न रात देखते हुए जो | |
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− | सेवाब्रत का पालन करते हुए प्रसन्नता पूर्वक सदा पैदल यात्रा करते हैं, | |
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− | ऐसे महान् कर्मयोगी मान्य आचार्य विनायक (विनोबा भावे) जी की | |
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− | जय हो। | |
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| येनाचारि सदैव शुद्धमनसा सद् ब्रह्मचर्यव्रतं, | | येनाचारि सदैव शुद्धमनसा सद् ब्रह्मचर्यव्रतं, |
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| मान्याचार्यविनायको विजयतेऽसौ कर्मयोगी महान्।।79। | | मान्याचार्यविनायको विजयतेऽसौ कर्मयोगी महान्।।79। |
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− | जिन्होंने शुद्ध मन से सदा ब्रह्मचर्य के उत्तम व्रत को धारण किया | + | जिन्होंने शुद्ध मन से सदा ब्रह्मचर्य के उत्तम व्रत को धारण किया हुआ है, जिन बुद्धिमान् ने अनेक भाषाओं का ज्ञान करते हुए शास्त्रों का अध्ययन किया है, जिनका सारा पवित्र जीवन ही उत्तम महान् यज्ञ रूप है, ऐसे महान् कर्मयोगी मान्य आचार्य विनोबा जी की जय हो। |
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− | हुआ है, जिन बुद्धिमान् ने अनेक भाषाओं का ज्ञान करते हुए शास्त्रों का | |
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− | अध्ययन किया है, जिनका सारा पवित्र जीवन ही उत्तम महान् यज्ञ रूप | |
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− | है, ऐसे महान् कर्मयोगी मान्य आचार्य विनोबा जी की जय हो। | |
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| यो गान्धीव्रतभृत् सदैव सुमनाः, सम्पूरयंस्तत् कृतं, | | यो गान्धीव्रतभृत् सदैव सुमनाः, सम्पूरयंस्तत् कृतं, |
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| मान्याचार्यविनायको विजयतेऽसौ कर्मयोगी महान्।।801। | | मान्याचार्यविनायको विजयतेऽसौ कर्मयोगी महान्।।801। |
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− | जो महात्मा गांधी जी के त्रत को धारण करते हुए सदा प्रसन्नता | + | जो महात्मा गांधी जी के त्रत को धारण करते हुए सदा प्रसन्नता पूर्वक उनके प्रारम्भ किये हुए कर्म को पूरा करते हैं और लक्ष्य से विमुख उच्च शासकों की भी जो भर्त्सना (डांट-डपट) कर देते हैं, |
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− | पूर्वक उनके प्रारम्भ किये हुए कर्म को पूरा करते हैं और लक्ष्य से | |
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− | विमुख उच्च शासकों की भी जो भर्त्सना (डांट-डपट) कर देते हैं, | |
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| पाश्चात्य | | पाश्चात्य |
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| 2.* कोविदः = विद्वान्, पण्डित। | | 2.* कोविदः = विद्वान्, पण्डित। |
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| + | बुद्धिमान् भी जिन्हें भारत देश की उत्तम संस्कृति का प्रतिनिधि मानते हैं, ऐसे मान्य आचार्य विनायक (विनोबा भावे) जी की जय हो। |
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− | बुद्धिमान् भी जिन्हें भारत देश की उत्तम संस्कृति का प्रतिनिधि मानते | |
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− | हैं, ऐसे मान्य आचार्य विनायक (विनोबा भावे) जी की जय हो। | |