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३. देश-विदेश में चलने वाले सभी कॉलेजों में विभिन्न विषयों का अध्ययन कार्य ही होता है, परन्तु *बेफफुट कॉलेज' इस दृष्टि से अपनी एक अलग ही पहचान रखता है । इस कॉलेज के संचालन में लगे हुए सभी लोग स्थानीय ही है । केवल स्थानीय कहना पर्याप्त नहीं है, वे सभी अनपढ़ ग्रामीण लोग हैं और अधिकांश बहनें हैं । राजस्थान के जिस अचल में यह गाँव स्थित है, वहाँ बहनों का घर से बाहर निकल कर ऑफिस का कार्य करना तो कल्पनातीत बात है । ऐसी सामाजिक परिस्थितियों के बीच इस गाँव की बहनें कम्प्यूटर का कार्य, लेबोरेट्री का काम, ऑफिस का काम करते हुए दिखाई देती हैं । आश्चर्य तो इस बात का है कि ये सब काम करते हुए भी उनका वेश पाश्चात्य नहीं है वही परम्परागत ग्रामीण वेश ही पहनती हैं, कुछ तो घूँघट डाले भी रहती हैं । हम सब भी यही मानते हैं कि ग्रामीण अनपढ़ महिलाएँ कम्प्यूटर नहीं चला सकती, इस पाश्चात्य मानसिकता से बाहर निकालने का कार्य यह कॉलेज कर रहा है । और यह इस कॉलेज का अनोखापन है |
 
३. देश-विदेश में चलने वाले सभी कॉलेजों में विभिन्न विषयों का अध्ययन कार्य ही होता है, परन्तु *बेफफुट कॉलेज' इस दृष्टि से अपनी एक अलग ही पहचान रखता है । इस कॉलेज के संचालन में लगे हुए सभी लोग स्थानीय ही है । केवल स्थानीय कहना पर्याप्त नहीं है, वे सभी अनपढ़ ग्रामीण लोग हैं और अधिकांश बहनें हैं । राजस्थान के जिस अचल में यह गाँव स्थित है, वहाँ बहनों का घर से बाहर निकल कर ऑफिस का कार्य करना तो कल्पनातीत बात है । ऐसी सामाजिक परिस्थितियों के बीच इस गाँव की बहनें कम्प्यूटर का कार्य, लेबोरेट्री का काम, ऑफिस का काम करते हुए दिखाई देती हैं । आश्चर्य तो इस बात का है कि ये सब काम करते हुए भी उनका वेश पाश्चात्य नहीं है वही परम्परागत ग्रामीण वेश ही पहनती हैं, कुछ तो घूँघट डाले भी रहती हैं । हम सब भी यही मानते हैं कि ग्रामीण अनपढ़ महिलाएँ कम्प्यूटर नहीं चला सकती, इस पाश्चात्य मानसिकता से बाहर निकालने का कार्य यह कॉलेज कर रहा है । और यह इस कॉलेज का अनोखापन है |
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४. इस पाठशाला में वेश की तरह अन्य व्यवस्थाएँ भी भारतीय हैं, पाश्चात्य नकल नहीं । सम्पूर्ण देश में सभी संस्थानों में बैठक व्यवस्था टेबल-कुर्सी की है जो पाश्चात्य है, परन्तु यहाँ की बैठक व्यवस्था नीचे गादी पर बैठकर काम करने की है, जो पूर्णतया भारतीय व्यवस्था है । भारतीय लोगों के अनुसार भारतीय वेशभूषा व भारतीय व्यवस्था को अपनाना |
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४. इस पाठशाला में वेश की तरह अन्य व्यवस्थाएँ भी धार्मिक हैं, पाश्चात्य नकल नहीं । सम्पूर्ण देश में सभी संस्थानों में बैठक व्यवस्था टेबल-कुर्सी की है जो पाश्चात्य है, परन्तु यहाँ की बैठक व्यवस्था नीचे गादी पर बैठकर काम करने की है, जो पूर्णतया धार्मिक व्यवस्था है । धार्मिक लोगों के अनुसार धार्मिक वेशभूषा व धार्मिक व्यवस्था को अपनाना |
    
५. बेरफुट के मुख्य केन्द्र तिलोणियाँ में उनका कार्यालय, कॉलेज, चिकित्सालय एवं अन्य उपक्रमों के नमूनारूप प्रयोग चलते हैं । यहाँ के चिकित्सालय में दन्त चिकित्सक हो या जल विभाग की प्रयोगशाला का कार्यकर्ता हो या रेडियो ब्रोडकास्टिंग की जिस पर जिम्मेदारी हों, ये सभी ग्रामीण लोग ही हैं, आज के विश्वविद्यालयों के डिग्रीधारी नहीं । चाहे सोलर लेम्प बनाना हो, चाहे सोलर कूकर या सोलर हीटर जैसे प्रोद्योगिक कामों में भी ये ग्रामीण महिलाएँ ही मुख्य भूमिका में होती है | तिलोणियाँ एवं इसके आस-पास के गाँवों में रोजगार के कोई अवसर नहीं है, अतः अधिकांश परिवार गरीब हैं, ऐसे गरीब परिवारों की बहिनों को यह अनोखी पाठशाला व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करती है । इस पाठशाला में पढ़नेवालों को कोई डिग्री नहीं मिलती, परन्तु यहाँ शिक्षित बहनें एक कुशल इंजिनीयर की तरह सोलर कूकर बनाती भी है और उसकी बिक्री भी करती है । बड़े-बड़े सोलर कूकर बनाते समय लोहे की पत्तियों कों काटना, मोड़ना और वेल्डिंग करना पड़ता है । अनोखापन इसी बात में है कि ये सारे काम इसी पाठशाला में पढ़ी ग्रामीण बहनें ही करती हैं । यहाँ से सीखकर वे अपने-अपने गाँव में अपना काम शुरू करती हैं । ये बहने सोलर हीटर भी बनाती हैं और ऑर्डर के अनुसार आस-पास के गाँवों में जाकर हीटर लगाती भी हैं ।
 
५. बेरफुट के मुख्य केन्द्र तिलोणियाँ में उनका कार्यालय, कॉलेज, चिकित्सालय एवं अन्य उपक्रमों के नमूनारूप प्रयोग चलते हैं । यहाँ के चिकित्सालय में दन्त चिकित्सक हो या जल विभाग की प्रयोगशाला का कार्यकर्ता हो या रेडियो ब्रोडकास्टिंग की जिस पर जिम्मेदारी हों, ये सभी ग्रामीण लोग ही हैं, आज के विश्वविद्यालयों के डिग्रीधारी नहीं । चाहे सोलर लेम्प बनाना हो, चाहे सोलर कूकर या सोलर हीटर जैसे प्रोद्योगिक कामों में भी ये ग्रामीण महिलाएँ ही मुख्य भूमिका में होती है | तिलोणियाँ एवं इसके आस-पास के गाँवों में रोजगार के कोई अवसर नहीं है, अतः अधिकांश परिवार गरीब हैं, ऐसे गरीब परिवारों की बहिनों को यह अनोखी पाठशाला व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करती है । इस पाठशाला में पढ़नेवालों को कोई डिग्री नहीं मिलती, परन्तु यहाँ शिक्षित बहनें एक कुशल इंजिनीयर की तरह सोलर कूकर बनाती भी है और उसकी बिक्री भी करती है । बड़े-बड़े सोलर कूकर बनाते समय लोहे की पत्तियों कों काटना, मोड़ना और वेल्डिंग करना पड़ता है । अनोखापन इसी बात में है कि ये सारे काम इसी पाठशाला में पढ़ी ग्रामीण बहनें ही करती हैं । यहाँ से सीखकर वे अपने-अपने गाँव में अपना काम शुरू करती हैं । ये बहने सोलर हीटर भी बनाती हैं और ऑर्डर के अनुसार आस-पास के गाँवों में जाकर हीटर लगाती भी हैं ।

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