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जनमान्यनेता सुभाषचन्द्र: (23 जनवरी 1897-?)
स्वातन्त्र्यवह्निईृदये यदीये, दीप्तोऽभवद् दास्यविनाशकारी।
त॑ त्यागिनं तापसमप्रमत्तं सन्नायकं नौमि सुभाषचन्द्रम्।30।।
जिन के हदय में दासता का नाश करने वाली स्वतन्त्रता की
अग्नि प्रज्वलित थी, ऐसे त्यागी, तपस्वी, प्रमाद-रहित, उत्तम नेता श्री
सुभाषचन्द्र जी को मैं नमस्कार करता हूँ।
यः क्रान्तिकारी विषयं स्वतन्त्रं दिवानिशं द्रष्टुमिहातुरोऽ भूत्।
सुघोरकष्टानि च यः प्रसेहे तन्नायक नौमि सुभाषचन्द्रम्।।३1॥
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जो क्रान्तिकारी अपने देश को स्वतन्त्र देखने के लिये दिन रात
व्याकुल थे, इसके लिए जिन्होंने भयंकर कष्ट भी सहन किये, ऐसे उत्तम
नेता सुभाष जी को मैं नमस्कार करता हूँ।
गत्वा विदेशेषु च यो नयज्ञः स्वतन्त्रसेनां प्रचकार दक्षाम्।
यूनां हृदा योऽभवदेकसम्राट्, तं नायक' नौमि सुभाषचन्द्रम्।।३2॥
जिस राजनीतिज्ञ ने विदेशों में जाकर चतुर स्वतन्त्र भारत-सेना
का संगठन किया, उन युवक-हृदय-सम्राट नेता श्री सुभाषचन्द्र जी को
मैं नमस्कार करता हूँ।
अद्यापि यन्नाम्नि गृहीतमात्रे, चैतन्यमाविर्भवति प्रसुप्तम्।
नृकेसरी योऽमरनामधेयः, तं नायकं नौमि सुभाषचन्द्रम्।।3३॥
अब भी जिनका नाम लेते ही सोई हुई चेतना फिर प्रकट होने
लगती है, ऐसे अमर नाम वाले पुरुष सिंह नेता श्री सुभाष चन्द्र जी को
मैं नमस्कार करता हूँ।
न ज्ञायते यद्विषये स लीनो, ब्रह्मण्यनन्ते क्व नु वा निलीनः।
स्वातन्त्रयसत्साहसमूर्तरूपं, तं नायक नौमि सुभाषचन्द्रम्।।34॥
जिन के विषय में अब भी पूर्ण निश्चय से यह ज्ञात नहीं कि वे
अनन्त ब्रह्म में लीन हो गये (परलोक सिधार गये) अथवा कहां गुप्त
रूप में विद्यमान हैं (जैसे कि उन के कई सम्बन्धियों और अनुयायियों
का विश्वास है) स्वतन्त्रता और उत्तम साहस के मूर्तरूप नेता उन श्री
सुभाष चन्द्र जी को मैं नमस्कार करता हुँ।