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| {{One source|date=May 2020 }} | | {{One source|date=May 2020 }} |
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− | भारतभूषण मदनमोहनमालवीयः (1861-1946 ई.) | + | भारतभूषण मदनमोहनमालवीयः<ref>महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078</ref> (1861-1946 ई.) |
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| सुशीलः सुवाग्मी विपश्चिन्मनस्वी, स्वदेशस्य सेवारतोऽसौ यशस्वी। | | सुशीलः सुवाग्मी विपश्चिन्मनस्वी, स्वदेशस्य सेवारतोऽसौ यशस्वी। |
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− | सुशिक्षाप्रसारे सदा दत्तचित्तो, मनोमोहनो मालवीयः प्रशस्तः।।18॥। | + | सुशिक्षाप्रसारे सदा दत्तचित्तो, मनोमोहनो मालवीयः प्रशस्तः॥ |
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| सुशील, उत्तम प्रभावशाली वक्ता, विद्वान्, विचारशील, स्वदेश | | सुशील, उत्तम प्रभावशाली वक्ता, विद्वान्, विचारशील, स्वदेश |
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| शुभं विश्वविद्यालयं यो हि काश्यां, मुदा स्थापयामास यत्नेन धीरः। | | शुभं विश्वविद्यालयं यो हि काश्यां, मुदा स्थापयामास यत्नेन धीरः। |
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− | विरोधं सदाऽन्यायचक्रस्य चक्रे, मनोमोहनो मालवीयः प्रशस्यः।।19॥ | + | विरोधं सदाऽन्यायचक्रस्य चक्रे, मनोमोहनो मालवीयः प्रशस्यः॥ |
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| जिस धीर ने बड़े यत्न से प्रसन्नता पूर्वक काशी में शुभ हिन्दू | | जिस धीर ने बड़े यत्न से प्रसन्नता पूर्वक काशी में शुभ हिन्दू |
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| विश्वविद्यालय की स्थापना को, जिन्होंने अन्याय चक्र का सदा विरोध | | विश्वविद्यालय की स्थापना को, जिन्होंने अन्याय चक्र का सदा विरोध |
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| किया, ऐसे पं. मदनमोहन जी मालवीय प्रशंसनीय हैं। | | किया, ऐसे पं. मदनमोहन जी मालवीय प्रशंसनीय हैं। |
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| त्रिवारं हि निर्वाचितो यः प्रधानः, समेषां स्वराष्ट्रस्थितानां सभायाः। | | त्रिवारं हि निर्वाचितो यः प्रधानः, समेषां स्वराष्ट्रस्थितानां सभायाः। |
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− | यदीया गिरो मोहयन्ति स्म सर्वान्, मनोमोहनो मालवीयः स वन्द्यः।।201। | + | यदीया गिरो मोहयन्ति स्म सर्वान्, मनोमोहनो मालवीयः स वन्द्यः॥ |
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| जो तीन वार राष्ट्रीय महासभा (कांग्रेस) के प्रधान चुने गये, जिन | | जो तीन वार राष्ट्रीय महासभा (कांग्रेस) के प्रधान चुने गये, जिन |
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| भवेद् राष्ट्रभाषा-पदस्था तु हिन्दी, समे मानवाः प्रेमबद्धा भवेयुः। | | भवेद् राष्ट्रभाषा-पदस्था तु हिन्दी, समे मानवाः प्रेमबद्धा भवेयुः। |
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− | इदं लक्ष्यमुद्दिश्य कुर्वन् प्रयत्नं, मनोमोहनो मालवीयः प्रशस्यः।21॥ | + | इदं लक्ष्यमुद्दिश्य कुर्वन् प्रयत्नं, मनोमोहनो मालवीयः प्रशस्यः॥ |
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| हिन्दी राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन् हो (राष्ट्रभाषा रूप में स्वीकृत | | हिन्दी राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन् हो (राष्ट्रभाषा रूप में स्वीकृत |
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| भृशं रूढिवादी पुराणादिभक्तः, मुदाऽस्पृश्यतोन्मूलने किन्तु सक्तः। | | भृशं रूढिवादी पुराणादिभक्तः, मुदाऽस्पृश्यतोन्मूलने किन्तु सक्तः। |
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− | स्वजातेः स्वदेशस्य चिन्तानिमग्नो, मनोमोहनो मालवीय नमस्यः।!22॥। | + | स्वजातेः स्वदेशस्य चिन्तानिमग्नो, मनोमोहनो मालवीय नमस्यः॥ |
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| पुराणादि भक्त और बहुत रूढिवादी होते हुए भी जो प्रसन्नता से | | पुराणादि भक्त और बहुत रूढिवादी होते हुए भी जो प्रसन्नता से |
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| न वेषं स्वकीयं जहौ यः कदाचित्,न वा संस्कृतिं भारतीयां कदाचित्। | | न वेषं स्वकीयं जहौ यः कदाचित्,न वा संस्कृतिं भारतीयां कदाचित्। |
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− | सुशिक्षादिकार्यार्थभिक्षाप्रवीणो, मनोमोहनो मालवीयो नमस्यः।।23॥ | + | सुशिक्षादिकार्यार्थभिक्षाप्रवीणो, मनोमोहनो मालवीयो नमस्यः॥ |
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| जिन्होंने अपने स्वदेशी वेष और अपनी भारतीय संस्कृति का भी | | जिन्होंने अपने स्वदेशी वेष और अपनी भारतीय संस्कृति का भी |
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| यस्मिन्न मोहो न मदो न लोभः, कामादिदुष्टैर्व्यसनैर्विहीनः। | | यस्मिन्न मोहो न मदो न लोभः, कामादिदुष्टैर्व्यसनैर्विहीनः। |
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− | माधुर्यमूर्ति तमजातशत्रुं, श्रीमालवीयं विनयेन नौमि।।24॥। | + | माधुर्यमूर्ति तमजातशत्रुं, श्रीमालवीयं विनयेन नौमि॥ |
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| जिनमें न मद था, न मोह था, न लोभ था, जो कामादि दुष्ट | | जिनमें न मद था, न मोह था, न लोभ था, जो कामादि दुष्ट |
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| व्यसनों | | व्यसनों |
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| से रहित थे। ऐसे माधुर्यमूर्ति अजात शत्रु पं. मदनमोहन जी मालवीय को | | से रहित थे। ऐसे माधुर्यमूर्ति अजात शत्रु पं. मदनमोहन जी मालवीय को |
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| विद्याप्रसारे सततं प्रसक्तं, देवेशभक्तं विषयेष्वसक्तम्। | | विद्याप्रसारे सततं प्रसक्तं, देवेशभक्तं विषयेष्वसक्तम्। |
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− | परोपकारेऽतिशयानुरक्तं, त॑ मालवीयं विनयेन नौमि।।25। | + | परोपकारेऽतिशयानुरक्तं, त॑ मालवीयं विनयेन नौमि॥ |
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| विद्या प्रसार में निरन्तर तत्पर, परमेश्वर के भक्त, विषयों में | | विद्या प्रसार में निरन्तर तत्पर, परमेश्वर के भक्त, विषयों में |