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− | पंजाबकेसरी लाजपतरायः(28 जनवरी 1865-17 नवम्वर 1928 ई.) | + | पंजाबकेसरी लाजपतरायः<ref>महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078</ref> (28 जनवरी 1865-17 नवम्वर 1928 ई.)<blockquote>वक्तारं प्रतिभान्वितं हि नितराम्, ओजस्विनं स्फूर्तिदं, देशस्योन्नतये सदैव निरतं, कष्टेषु घोरेष्वपि।</blockquote><blockquote>अस्पृश्यत्वनिवारणार्थमनिशं यत्नं दधानं परं, 'लालालाजपतं कुशाग्रधिषणं, भक्त्या नुमस्तं वयम्॥</blockquote>प्रतिभाशाली, ओजस्वी, निरन्तर, स्फूर्तिदायक वक्ता, घोर कष्ट आने पर भी देश की उन्नति के लिये सदा तत्पर, अस्पृश्यता के निवारण के लिये उत्तम यत्न करने वाले, कुशाग्रबुद्धि लाला लाजपतराय जी को हम भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हैं।<blockquote>निर्भीकः सततं प्रयत्ननिरतो योऽत्र स्वराज्याप्तये, कार्य यः प्रवसंश्चकार परमं, धीमान् विदेशेष्वपि।</blockquote><blockquote>यस्यौजस्विगिरा विपक्षिनिबहो नित्यं चकम्पे भृशं, लालालाजपतं कुशाग्रधिषणं, भक्त्या नुमस्तं वयम्॥</blockquote>जो निर्भय हो कर इस देश में स्वतन्त्रता लाने के लिये सदा प्रयत्नशील रहे, विदेशों में प्रवास करते हुये भी जिन्होंने अत्यन्त अद्भुत कार्य किया, जिन की ओजस्वी वाणी को सुनकर विरोधीवर्ग सदा बहुत कांपने लगता था, ऐसे कुशाग्रबुख्धि लाला लाजपतराय जी को हम भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हैं।<blockquote>आसीद् यः प्रथितः समस्तभुवने पञ्चाम्बुसत्केसरी, जज्वालोरसि यस्य पापदहनः, स्वातन्त्र्यवह्विः सदा।</blockquote><blockquote>आङ्ग्लानां निशितैरतीव विषमैर्यष्टिप्रहारैः क्षतं, लालालाजपतं कुशाग्रधिषणं, भक्त्या नुमस्तं वयम्॥</blockquote>सारे संसार में जो पंजाब केसरी के नाम से प्रसिद्ध थे, जिन की छाती में पापों को दग्ध करने वाली स्वतन्त्रता की अग्नि सदा जलती रहती थी, अंग्रेजों के अत्यन्त तीक्ष्ण लाठी प्रहारो से चोट खाये हुये कुशाग्रबुद्धि लाला लाजपतराय जी को हम भक्ति-पूर्वक नमस्कार करते हैं।<blockquote>एको मेऽत्रगुरुस्तपोनिधिदयानन्दो मनीषी महान्, माताचार्यसमाजनाममहिता, स्वातन्त्रयसत्स्मूर्तिदा।</blockquote><blockquote>इत्थं यो हि जुघोष भक्तिसहितो निर्भीकनेत्रग्रणीः, लालालाजपतं कुशाग्रधिषणं, भक्त्या नुमस्तं वयम्॥</blockquote>संसार में मेरे एक ही तप के भण्डार महान् बुद्धिमान् ऋषि दयानन्द जी गुरु हैं और स्वतन्त्रता के लिये उत्तम स्मूर्ति देने वाली आर्य समाज मेरी माता है, इस प्रकार निर्भय नेताओं में श्रेष्ठ जिन महानुभाव ने भक्ति सहित घोषणा की थी ऐसे कुशाग्रबुद्धि लाला लाजपतराय जी 'को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। |
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− | वक्तारं प्रतिभान्वितं हि नितराम्, ओजस्विनं स्फूर्तिदं, | |
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− | देशस्योन्नतये सदैव निरतं, कष्टेषु घोरेष्वपि। | |
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− | अस्पृश्यत्वनिवारणार्थमनिशं यत्नं दधानं परं, | |
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− | 'लालालाजपतं कुशाग्रधिषणं, भक्त्या नुमस्तं वयम्।।101। | |
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− | प्रतिभाशाली, ओजस्वी, निरन्तर, स्फूर्तिदायक वक्ता, घोर कष्ट | |
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− | आने पर भी देश की उन्नति के लिये सदा तत्पर, अस्पृश्यता के निवारण | |
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− | के लिये उत्तम यत्न करने वाले, कुशाग्रबुद्धि लाला लाजपतराय जी को हम | |
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− | भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हैं। | |
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− | निर्भीकः सततं प्रयत्ननिरतो योऽत्र स्वराज्याप्तये, | |
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− | कार्य यः प्रवसंश्चकार परमं, धीमान् विदेशेष्वपि। | |
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− | यस्यौजस्विगिरा विपक्षिनिबहो नित्यं चकम्पे भृशं, | |
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− | लालालाजपतं कुशाग्रधिषणं, भक्त्या नुमस्तं वयम्।।11॥ | |
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− | जो निर्भय हो कर इस देश में स्वतन्त्रता लाने के लिये सदा | |
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− | प्रयललशील रहे, विदेशों में प्रवास करते हुये भी जिन्होंने अत्यन्त अद्भुत
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− | कार्य किया, जिन की ओजस्वी वाणी को सुनकर विरोधीवर्ग सदा बहुत | |
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− | कांपने लगता था, ऐसे कुशाग्रबुख्धि लाला लाजपतराय जी को हम | |
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− | भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हैं। | |
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− | आसीद् यः प्रथितः समस्तभुवने पञ्चाम्बुसत्केसरी, | |
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− | जज्वालोरसि यस्य पापदहनः, स्वातन्त्र्यवह्विः सदा। | |
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− | आङ्ग्लानां निशितैरतीव विषमैर्यष्टिप्रहारैः क्षतं, | |
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− | लालालाजपतं कुशाग्रधिषणं, भक्त्या नुमस्तं वयम्।।12॥ | |
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− | सारे संसार में जो पंजाब केसरी के नाम से प्रसिद्ध थे, जिन की | |
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− | छाती में पापों को दग्ध करने वाली स्वतन्त्रता की अग्नि सदा जलती रहती | |
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− | थी, अंग्रेजों के अत्यन्त तीक्ष्ण लाठी प्रहारो से चोट खाये हुये कुशाग्रबुद्धि | |
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− | लाला लाजपतराय जी को हम भक्ति-पूर्वक नमस्कार करते हैं। | |
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− | एको मेऽत्रगुरुस्तपोनिधिदयानन्दो मनीषी महान्, | |
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− | माताचार्यसमाजनाममहिता, स्वातन्त्रयसत्स्मूर्तिदा। | |
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− | इत्थं यो हि जुघोष भक्तिसहितो निर्भीकनेत्रग्रणीः, | |
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− | लालालाजपतं कुशाग्रधिषणं, भक्त्या नुमस्तं वयम्।।13।। | |
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− | संसार में मेरे एक ही तप के भण्डार महान् बुद्धिमान् ऋषि | |
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− | दयानन्द जी गुरु हैं और स्वतन्त्रता के लिये उत्तम स्मूर्ति देने वाली आर्य | |
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− | समाज मेरी माता है, इस प्रकार निर्भय नेताओं में श्रेष्ठ जिन महानुभाव | |
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− | ने भक्ति सहित घोषणा की थी ऐसे कुशाग्रबुद्धि लाला लाजपतराय जी | |
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− | 'को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। | |
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