जड़ और चेतन में अंतर है चेतना के स्तरका। और इस स्तर के कारण आनेवाली मन, बुद्धि और अहंकार की सक्रीयता का। सृष्टि के सभी अस्तित्वों में अष्टधा प्रकृति होती ही है फिर वह धातू हो, वनस्पति हो, प्राणी हो या मानव। मानव में चेतना का स्तर सबसे अधिक और धातू या मिट्टीजैसे पदार्थों में सबसे कम होता है। सुख, दुःख, थकान, मनोविकार, बुद्धिकी शक्ति, अहंकार आदि बातें चेतना के स्तर के कम या अधिक होने की मात्रा में कम या अधिक होती है। जगदीशचंद्र बोस ने यही बात धातुपट्टिका के तुकडे पर प्रयोग कर धातु को भी थकान आती है यह प्रयोगद्वारा सिद्ध कर दिखाई थी। | जड़ और चेतन में अंतर है चेतना के स्तरका। और इस स्तर के कारण आनेवाली मन, बुद्धि और अहंकार की सक्रीयता का। सृष्टि के सभी अस्तित्वों में अष्टधा प्रकृति होती ही है फिर वह धातू हो, वनस्पति हो, प्राणी हो या मानव। मानव में चेतना का स्तर सबसे अधिक और धातू या मिट्टीजैसे पदार्थों में सबसे कम होता है। सुख, दुःख, थकान, मनोविकार, बुद्धिकी शक्ति, अहंकार आदि बातें चेतना के स्तर के कम या अधिक होने की मात्रा में कम या अधिक होती है। जगदीशचंद्र बोस ने यही बात धातुपट्टिका के तुकडे पर प्रयोग कर धातु को भी थकान आती है यह प्रयोगद्वारा सिद्ध कर दिखाई थी। |