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भारत के अन्तरंग और बहिरंग में बिना जाने समझे संघर्ष चल रहा है। भारत का अन्तरंग इतना बलवान रहा है कि सारी बहिरंग व्यवस्थाओं के बदल जाने के बाद भी वह बदला नहीं है।
 
भारत के अन्तरंग और बहिरंग में बिना जाने समझे संघर्ष चल रहा है। भारत का अन्तरंग इतना बलवान रहा है कि सारी बहिरंग व्यवस्थाओं के बदल जाने के बाद भी वह बदला नहीं है।
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जब तक भारत का अन्तरंग नहीं बदला है तब तक भारत की भारत बनने की आशा है। यदि अन्य देशों के समान अन्तरंग भी बदल गया तो भारत बनना असम्भव हो
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जब तक भारत का अन्तरंग नहीं बदला है तब तक भारत की भारत बनने की आशा है। यदि अन्य देशों के समान अन्तरंग भी बदल गया तो भारत बनना असम्भव हो जायेगा।
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अतः भारत को भारत बनने का पुरुषार्थ करना होगा। इस दृष्टि से भारी परिवर्तन करने होंगे। वर्तमान की व्यवस्थाओं को समझना, उनके दुष्परिणामों से अवगत होना, उन व्यवस्थाओं को निरस्त करने के उपाय खोजना, अभारतीय व्यवस्थाओं को समझना, उन्हें वर्तमान सन्दर्भ में नियोजित करना और अपनाना - ऐसा एक महान प्रयास करना होगा। यह एक बडा चुनौती पूर्ण कार्य है परन्तु अनिवार्य रूप से करणीय है।
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यह इतना कठिन है, साथ ही इतना अनिवार्य है कि येन केन प्रकारेण उसे करना ही होगा।
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जब भारत में परिवर्तन की बात चलती है तब एक तबका कहता है कि भारत को हम वापस अन्धकारयुगमें ले जायेंगे क्या । घडी की सुई उल्टी नहीं घूम सकती ऐसा भी कहा जाता है । संकेत यह है कि भारत को भारत बनने का मार्ग सरल नहीं है। वह आन्तरिक विरोध से भरा हुआ है। इसे भी समझकर उसका उपाय करना होगा।
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