Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 170: Line 170:  
भारत मुख्य रूप से धर्मपरायण देश है। यहाँ की सांस्कृतिक विरासत में कर्तव्य परायणता को मुख्य आधार प्रदान किया गया है । हर एक को अपने कर्तव्य, अपने धर्म के अनुसार आचरण करने की प्रेरणा भारत की मुख्य शक्ति रही है। धर्म का अर्थ यहाँ पंथ, सम्प्रदाय, मजहब या रिलीजन से नहीं है। पंथ, सम्प्रदाय, मजहब या रिलीजन की स्थापना किसी महापुरुष, महाग्रंथ या महान परम्पराओं के द्वारा की जाती है और धर्म व्यक्ति, प्रकृति और समाज के मध्य स्वाभाविक संतुलन के व्यवहार में से प्रकट होता रहता है। धर्म किसी केन्द्रीय सत्ता को पोषित नहीं करता। केन्द्रीय सत्ता तो धर्माचरण में बाधा ही उत्पन्न करती है। धर्म कर्तव्यबोध कराता है जबकि केन्द्रीय सत्ता अधिकारों के बँटवारे के तत्त्व पर खड़ी होती है। धर्म या कर्तव्य बोध पारस्परिकता का बोधक है, जबकि अधिकार बोध संघर्ष में परिणित हो ही जाता है। धर्माचरण या कर्तव्यबोध से आवश्यक अधिकार सहज रूप से मिलते रहते हैं।
 
भारत मुख्य रूप से धर्मपरायण देश है। यहाँ की सांस्कृतिक विरासत में कर्तव्य परायणता को मुख्य आधार प्रदान किया गया है । हर एक को अपने कर्तव्य, अपने धर्म के अनुसार आचरण करने की प्रेरणा भारत की मुख्य शक्ति रही है। धर्म का अर्थ यहाँ पंथ, सम्प्रदाय, मजहब या रिलीजन से नहीं है। पंथ, सम्प्रदाय, मजहब या रिलीजन की स्थापना किसी महापुरुष, महाग्रंथ या महान परम्पराओं के द्वारा की जाती है और धर्म व्यक्ति, प्रकृति और समाज के मध्य स्वाभाविक संतुलन के व्यवहार में से प्रकट होता रहता है। धर्म किसी केन्द्रीय सत्ता को पोषित नहीं करता। केन्द्रीय सत्ता तो धर्माचरण में बाधा ही उत्पन्न करती है। धर्म कर्तव्यबोध कराता है जबकि केन्द्रीय सत्ता अधिकारों के बँटवारे के तत्त्व पर खड़ी होती है। धर्म या कर्तव्य बोध पारस्परिकता का बोधक है, जबकि अधिकार बोध संघर्ष में परिणित हो ही जाता है। धर्माचरण या कर्तव्यबोध से आवश्यक अधिकार सहज रूप से मिलते रहते हैं।
   −
विकसित सामाजिक जीवन में धर्म, अर्थ और राज्य की व्यवस्थाओं का स्वरूप निश्चित करना होता है। अर्थ और राज्य यदि अपना धर्म या कर्तव्य ठीक तरह से पालन करेंगे तो समाज में सहज और स्वाभाविक रूप से सुख शान्ति रहेगी। दूसरी तरफ यदि राज्य सत्ता का केन्द्रीयकरण होगा, प्राकृतिक संसाधनों को एकाधिकार करके धन का संग्रह होगा, तो अधिकारों के लिये संघर्ष उसका सहज परिणाम होगा। इस संघर्ष के लिये सेना अनिवार्य हो जायेगी। इससे समाज की सुख-शान्ति खतरे में पड़
+
विकसित सामाजिक जीवन में धर्म, अर्थ और राज्य की व्यवस्थाओं का स्वरूप निश्चित करना होता है। अर्थ और राज्य यदि अपना धर्म या कर्तव्य ठीक तरह से पालन करेंगे तो समाज में सहज और स्वाभाविक रूप से सुख शान्ति रहेगी। दूसरी तरफ यदि राज्य सत्ता का केन्द्रीयकरण होगा, प्राकृतिक संसाधनों को एकाधिकार करके धन का संग्रह होगा, तो अधिकारों के लिये संघर्ष उसका सहज परिणाम होगा। इस संघर्ष के लिये सेना अनिवार्य हो जायेगी। इससे समाज की सुख-शान्ति खतरे में पड़ जायेगी । सेना के लिये अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण होगा । युद्ध तो हमेशा नहीं होते, अतः आतंकी और अपराधी समुदाय पैदा करना अनिवार्यता बन जायेगी। वैश्विक स्तर पर गोलमेज समुदाय के विशिष्ट महापुरुषों के द्वारा शान्ति स्थापना के नाम पर यूनाईटेड नेशंस की समस्त संस्थायें परोक्ष रूप से केन्द्रीय सरकार, केन्द्रीय सेना, केन्द्रीय मुद्रा की स्थापना करके आर्थिक साम्राज्यवाद को स्थापित करना चाहेगी। इस मानवद्रोही योजना के संचालकों में रौथ चाइल्ड कॉरपोरेशन, फोर्ड फाउडेशन, कारनेगी फाउंडेशन, राकफैलर फाउडेशन तथा समस्त बिल्डरवर्ग समुदाय सम्मिलित है। ये बेचारें यह नहीं जानते कि यह योजना इनके लिए भी हितकर नहीं है ।
 +
 
 +
विश्व सरकार, विश्व सेना, विश्व मुद्रा, विश्व बैंक आदि द्वारा केंद्रीय नियंत्रण की व्यवस्था किसी प्रकार से भी मानव, प्रकृति तथा समाज को सुख-शांति नहीं पहुँचा सकती। केन्द्रीय नियंत्रण स्थापित करने की योजना बनाने वाले राउंड टेबिल समुदाय या बिल्डरवर्गर समुदाय को अपनी योजना के लिये किस-किस प्रकार के षड़यंत्र करने पड़ रहे हैं, इसका पूरा लेखा-जोखा 'दि प्रिजन' पुस्तक में दिया है। प्रस्तुत लेख की अधिकांश सामग्री 'दि प्रिजन' पुस्तक से ही ली गई है। इस षड़यंत्र को उजागर करके षड़यंत्रकारियों को सही सोचने में सहकार करना प्रस्तुत पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है। भारत के उद्योगपति, राजनेता, धर्मगुरु, समाज सेवक तथा संवेदनशील विद्वानों की जानकारी हेतु चार सौ पृष्ठ की 'दि प्रिजन' पुस्तक में लिखे विवरण को संक्षिप्त में प्रस्तुत किया जा रहा है।
 +
 
 +
प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय चिन्तन का संदर्भ भी दिया गया है, ताकि विद्वद्जन राउन्ड टेबिल समुदाय के षड़यंत्र को जानकर भारतीय चिन्तन की दिशा को समझकर केन्द्रीय नियंत्रण के षड़यंत्रकारी प्रभाव को मानव, प्रकृति और समाज को मुक्त कराने में सक्रिय हो जावें । केन्द्रीय नियंत्रण का यह कैंसर अभी प्रारम्भ हो ही रहा है, अतः प्रारम्भ से ही संवाद प्रक्रिया से इसे निरस्त करना समझदारी होगी।
 +
 
 +
इस प्रक्रिया में अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार सभी व्यक्ति भागीदार हो सकते हैं। भागीदारी करने वाले को निर्भय, निर्वैर और निष्पक्षता की मानसिकता और व्यावहारिक भूमिका का होना आवश्यक है।
    
==References==
 
==References==
1,815

edits

Navigation menu