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| ३. दीवारें सूर्य की रोशनी से तपती हों तो दो तीन फीट की दूरी पर मेंहदी की दीवार बनाई जाय । | | ३. दीवारें सूर्य की रोशनी से तपती हों तो दो तीन फीट की दूरी पर मेंहदी की दीवार बनाई जाय । |
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| + | ४. स्थान-स्थान पर नीम के पेड़ लगाने चाहिए, ताकि उनकी छाया छत को गरम न होने दे । |
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| + | ५. कमरों की छतें सीधी-सपाट होने से छत पर सूर्य किरणें सीधी और अधिक पड़ती हैं, जिससे छतें बहुत तपती हैं। इसलिए सपाट छतों के स्थान पर पिरॅमिड आकार की छतें बनाने से वे कम गर्म होती हैं। हमारे गाँवों में झोंपडियों का आकार यही होता है, इसलिए वे ठंडी रहती हैं। |
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| + | शोध कहते हैं कि सीधी सपाट छत वाले कमरे में रखी खाद्य वस्तु बहुत जल्दी खराब हो जाती है, जबकि पिरामिड आकार वाले कमरे में रखी खाद्य वस्तु अधिक समय तक खराब नहीं होती। |
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| + | ==== (१०) विद्यालय में ध्वनि व्यवस्था भारतीय शिल्पशास्त्रानुसार हो ==== |
| + | आज के भवनों में निर्माण के समय ध्वनि शास्त्र का विचार नहीं किया जाता । निर्माण पूर्ण होने के पश्चात् उसे ध्वनि रोधी (ड्रीपव झीष) बनाया जाता है। ऐसा करने से समय, शक्ति व आर्थिक व्यय अतिरिक्त लगता है। |
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| + | हमारे शिल्पशास्त्र के ऐसे उदाहरण आज भी हैं, जहाँ न तो उसे साउन्ड प्रुफ बनाने की आवश्यकता है, और ना ही माइक लगाने की आवश्यकता पडती है। गोलकोंडा का किला ध्वनिशास्त्र का अद्भुत उदाहरण है। किले के मुख्य द्वार का रक्षक ताली बजाता है तो किले की सातवीं मंजिल में बैठे व्यक्ति को वह ताली स्पष्ट सुनाई देती है। |
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| + | हमारे यहाँ निर्मित प्राचीन रंगशालाएँ जहाँ नाटक मंचित होते थे, उस विशाल सभागार में ध्वनि व्यवस्था ऐसी उत्तम रहती थी कि मंच से बोलने वाले नट की आवाज बिना माइक के ७० फिट तक बैठे हुए दर्शकों को समान रूप से एक जैसी सुनाई देती थी, चाहे वह आगे बैठा है या पीछे । |
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| + | आज के विद्यालय भवनों में इसका अभाव होने के कारण कक्षा-कक्षों में आचार्य को माइक का सहारा लेना पड़ता है अथवा चिल्लाना पड़ता है। कुछ भवन तो ऐसे बन जाते हैं जहाँ सदैव बच्चों का हो हल्ला ही गूंजता रहता है मानो वह विद्यालय न होकर मछली बाजार हो । अतः व्यवस्था करते समय ताप नियंत्रण की भाँति ध्वनि नियंत्रण की ओर भी ध्यान देना नितान्त आवश्यक है। |
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| + | ==== (११) विद्यालय वेश मौसम के अनुसार हो ==== |
| + | वेश का सीधा सम्बन्ध व्यक्ति के स्वास्थ्य से है। शरीर रक्षा हेतु वेश होना चाहिए। किन्तु आज प्रमुख बिन्दु हो गया है सुन्दर दिखना अर्थात् फैशन । आज विद्यालयों में वेश का निर्धारण दुकानदार करता है जिसमें उसका व संचालकों का आर्थिक हित जुड़ा रहता है। |
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| + | गर्म जलवायु वाले प्रदेश में छोटे-छोटे बच्चों को बूट-मोजों से लेकर टाई से बाँधने की व्यवस्था उनके साथ अन्याय है। इसलिए वेश सदैव सादा व शरीर रक्षा करने वाला होना चाहिए, अंग्रेज बाबू बनाने वाला नहीं, |
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| स्वदेशी भाव जगाने वाला होना चाहिए । | | स्वदेशी भाव जगाने वाला होना चाहिए । |