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==== (५) विद्यालयीन व्यवस्था का केन्द्र बिन्दु बालक ====
 
==== (५) विद्यालयीन व्यवस्था का केन्द्र बिन्दु बालक ====
हमारे यहाँ विद्यालय बालक को शिक्षित करने का केन्द्र है, इसलिए विद्यालय का केन्द्र बिन्दु बालक है । उस बालक के लिए जैसी व्यवस्थाएँ होंगी, वैसा ही उसका निर्माण होगा । अत्यधिक सुविधापूर्ण व्यवस्थाएँ बालक को सुविधाभोगी ही बनायेंगी । अगर हम चाहते हैं कि हमारा बालक परिश्रमी हो, तपस्वी हो, साधक ह  तथा उसमें तितिक्षा हो अर्थात्‌ सर्दी, गर्मी, वर्षा, भूख- प्यास आदि को सहन करने की क्षमता हो, तो ऐसी व्यवस्था जिसमें उसको अपने हाथ से पानी की गिलास भी नहीं भरता हो तो वह योगी कैसे बनेगा, भोगी अवश्य बन जायेगा । अतः आवश्यक है कि व्यवस्थाएँ विद्यार्थी को केन्द्र में रखकर की जाय ।
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हमारे यहाँ विद्यालय बालक को शिक्षित करने का केन्द्र है, इसलिए विद्यालय का केन्द्र बिन्दु बालक है । उस बालक के लिए जैसी व्यवस्थाएँ होंगी, वैसा ही उसका निर्माण होगा । अत्यधिक सुविधापूर्ण व्यवस्थाएँ बालक को सुविधाभोगी ही बनायेंगी । अगर हम चाहते हैं कि हमारा बालक परिश्रमी हो, तपस्वी हो, साधक हो तथा उसमें तितिक्षा हो अर्थात्‌ सर्दी, गर्मी, वर्षा, भूख- प्यास आदि को सहन करने की क्षमता हो, तो ऐसी व्यवस्था जिसमें उसको अपने हाथ से पानी की गिलास भी नहीं भरता हो तो वह योगी कैसे बनेगा, भोगी अवश्य बन जायेगा । अतः आवश्यक है कि व्यवस्थाएँ विद्यार्थी को केन्द्र में रखकर की जाय ।
    
==== (६) विद्यालय भवन निर्माण वास्तुशास्त्र के अनुसार हो ====
 
==== (६) विद्यालय भवन निर्माण वास्तुशास्त्र के अनुसार हो ====
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