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=== अन्न विचार ===
 
=== अन्न विचार ===
छोटे बडे सबको पसन्द परन्तु खाने में संयम बरतने योग्य पदार्थ ।
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०... आयुष्य बढ़ाने वाला आहार कहते हैं । घी, तेल, मक्खन, दूध, तेल जिससे
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०... सत्व में वृद्धि करने वाला निकलता है ऐसे तिल, नारियेल, बादाम आदि स्निग्ध माने
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  −
०. बल बढाने वाला जाते हैं । स्निग्धता से शरीर के जोड, स्नायु, त्वचा आदि में
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०... आारोग्य बनाये रखने वाला नरमाई बनी रहती है । त्वचा मुलायम बनती है ।
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०... सुख देने वाला
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बल भी बढ़ता है ।
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०... प्रसन्नता बढाने वाला होता है ।
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परन्तु यह केवल शारीरिक स्तर की स्निग्धता है
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सात्तिक आहार के गुण क्या-क्या हैं
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सात्विक आहार के गु हैं सात्त्विक आहार का सम्बन्ध शरीर से अधिक मन के साथ
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© रस्य अर्थात्‌ रसपूर्ण है। आहार तैयार होने की प्रक्रिया में जिन जिन की
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<nowiki>*</nowiki>.. स्नि्ध अर्थात्‌ चिकनाई वाला सहभागिता होती है उनके हृदय में यदि स्नेह है तो आहार
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<nowiki>*</nowiki>... स्थिर अर्थात्‌ स्थिस्ता प्रदान करने वाला स्नेहयुक्त अर्थात्‌ स्नि्ध बनता है। ऐसा स्निग्ध आहार
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° हद्य अर्थात्‌ हृदय को बहुत बल देने वाला होता है । . सात्विक होता है।
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  −
सात्विक आहार के ये गुण अद्भुत हैं। इनमें आजकल डॉक्टर अधिक घी और तेल खाने को मना
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पौष्टिकता का भी समावेश हो जाता है । करते हैं। उससे मेद्‌ बढता है ऐसा कहते हैं। उसकी
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विस्तृत चर्चा में उतरने का तो यहाँ प्रयोजन नहीं है परन्तु
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जिसमें एक दो बातों की स्पष्टता होना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ।
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सामान्य रूप से जिसमें तरलता की मात्रा अधिक है प्रथम तो यह कि घी और तेल एक ही विभाग में
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ऐसे पदार्थ को रसपूर्ण अथवा रस्य कहने की पद्धति बन गई नहीं आते । दोनों के मूल पदार्थों का स्वभाव भिन्न है,
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है। a में पानी, दूध, खीर, दाल आदि रस्य आहार . प्रक्रिया भी भिन्न है । घी ओजगुण बढ़ाता है । सात धातुओं
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कहे जायेंगे । परन्तु यह बहुत सीमित अर्थ है । sai 3 में ओज अन्तिम है और सूक्ष्मतम है । शरीर की सर्व प्रकार
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a जो भी पदार्थ खाते हैं वह पचने पर दो भागों Ae te a सार ओज है । घी से प्राण का सर्वाधिक
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बैँट जाता है । जो शरीर के लिये उपयोगी होता है वही रस. पोषण होता है । आयुर्वेद कहता है 'घृतमायुः' अर्थात्‌ घी
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बनता है और * निरुपयोगी होता है वह कि अर्थात्‌. ही आयुष्य है अर्थात्‌ प्राणशक्ति बढाने वाला है । घी से ही
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मल है । रस रक्त में मिल जाता है और रक्त में ही परिवर्तित geen में भी शक्ति बनी रहती है । इसलिये छोटी आयु
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हो जाता है। जिस आहार से रस अधिक बनता है और ये ही घी खाना चाहिये । मेद घी से नहीं बढता । यह आज
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कचरा कम बचता है वह रस्य आहार है । उदाहरण के लिये. के समय में फैला हुआ भ्रम है कि घी से हृदय को कष्ट
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आटा जब अच्छी तरह सेंका जाता है और उसका हलुवा होता है । यह भ्रम फैलने का कारण भी घी को लेकर जो
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बनाया जाता है तब वह रस्य होता है जबकि अच्छी तरह अनुचित प्रक्रिया निर्माण हुई है वह है । घी का अर्थ है गाय
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से नहीं पकी दाल उतनी रस्य नहीं होती । रस शरीर के के दूध से दही, दही मथकर निकले मक्खन से बना घी है ।
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सप्तधातुओं में एक धातु है । आहार से सब से पहले रस. जाय का दूध और घी बनाने की सही प्रक्रिया ही घी को घी
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बनता है, बाद में स्क्त । रस जिससे अधिक बनता है वह. बनाती है। इसे छोडकर घी नहीं है ऐसे अनेक पदार्थों को
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रस्य आहार है । सात्विक आहार का प्रथम लक्षण उसका... जब से घी कहा जाने लगा तबसे “EY स्वास्थ्य के लिये
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रस्य आहार का क्या अर्थ है ?
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Fay
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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हानिकारक हो गया । आज घी विषयक... चंचलता कम करता है । शरीर की हलचल को सन्तुलित
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भ्रान्त धारणा से बचने की और नकली घी से पिण्ड छुड़ाने. और लयबद्ध बनाता है, मन को एकाग्र होने में सहायता
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की बहुत आवश्यकता है । करता है ।
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दूसरी बात यह है कि स्निग्धता और मेद अलग बात हृद्य आहार मन को प्रसन्न रखता है । अच्छे मन से,
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है । स्निग्धता शरीर में सूखापन नहीं आने देती । वातरोग नहीं... अच्छी सामग्री से, अच्छी पद्धति से, अच्छे पात्रों में बनाया
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होने देती, शूल पैदा नहीं करती । तेल स्नेहन करता है ।.. गया आहार हृद्य होता है ।
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शरीर का अन्दर और बाहर का स्नेहन शरीर की कान्ति और ऐसे आहार से सुख, आयु, बल और प्रेम बढ़ता है ।
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तेज बना रहने के लिये, शरीर के अंगों को सुख पहुँचाने के यहाँ एक बात स्पष्ट होती है कि सात्तिक आहार
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लिये अत्यन्त आवश्यक है । इसलिये आहार के साथ ही... पौष्टिक और शुद्ध दोनो होता है ।
  −
 
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शरीर को मालीश करने के लिये भी तेल का उपयोग है । सिर खायें
  −
 
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और पैर के तलवों में तो घी से भी मालीश किया जाता है। के खायें
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जिन्हें आयुर्वेद में श्रद्धा नहीं है अथवा आयुर्वेद विषयक ज्ञान १, आहार लेने के बाद उसका पाचन होनी चाहिये ।
  −
 
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ही नहीं है वे घी और तेल की निन्‍्दा करते हैं । परन्तु भारत में... शरीर में पाचनतन्त्र होता है। साथ ही अन्न को पचाकर
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  −
तो शास्त्र, परम्परा और लोगों का अनुभव सिद्ध करता है कि... उसका रस बनाने वाला जठराधि होता है । आंतिं, आमाशय,
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  −
घी और तेल शरीर और प्राण के सुख और शक्ति के लिये... अन्ननलिका, दाँत आदि तथा विभिन्न प्रकार के पाचनरस
  −
 
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अत्यन्त लाभकारी हैं । अपने आप अन्न को नहीं पचाते, जठराय़ि ही अन्न को
  −
 
  −
यह बात तो ठीक ही है कि आवश्यकता से अधिक, पचाती है । शरीर के अंग पात्र हैं और विभिन्न पाचक रस
  −
 
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अनुचित प्रक्रिया के लिये, अनुचित पद्धति से किया गया... मानो मसाले हैं । जठराध्नि नहीं है तो पात्र और मसाले क्या
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प्रयोग लाभकारी नहीं होता । परन्तु यह तो सभी अच्छी... काम आयेंगे ?
  −
 
  −
बातों के लिये समान रूप से लागू है । अतः जठराप्ि अच्छा होना चाहिये, प्रदीप्त होना
  −
 
  −
अच्छा आहार भी भूख से अधिक लिया तो लाभ... चाहिये ।
  −
 
  −
नहीं करता । जठरासि का सम्बन्ध सूर्य के साथ है । सूर्य उगने के
  −
 
  −
नींद आवश्यक है परन्तु आवश्यकता से अधिक नींद... बाद जैसे जैसे आगे बढता है वैसे वैसे जठराय़ि भी प्रदीप
  −
 
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लाभकारी नहीं है । होता जाता है । मध्याहन के समय जठराय़ि सर्वाधिक प्रदीप्त
  −
 
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व्यायाम अच्छा है परन्तु आवश्यकता से अधिक... होता है । मध्याह्. के बाद धीरे धीरे शान्त होता जाता है ।
  −
 
  −
व्यायाम लाभकारी नहीं है । अतः मध्याह्न से आधा घण्टा पूर्व दिन का मुख्य भोजन
  −
 
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आटे में तेल का मोयन, छोंक में आवश्यकता है... करना चाहिये । दिन के सभी समय के आहार दिन दहते ही
  −
 
  −
उतना तेल, बेसन के पदार्थों में कुछ अधिक मात्रा में तेल... लेने चाहिये । प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व और सायंकाल
  −
 
  −
लाभकारी है परन्तु तली हुई पूरी, पकौडी, कचौरी जैसी... सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिये । प्रातःकाल का
  −
 
  −
वस्तुयें लाभकारी नहीं होतीं । नास्ता और सायंकाल का भोजन लघु अर्थात्‌ हल्का होना
  −
 
  −
अर्थात्‌ घी और तेल का विवेकपूर्ण प्रयोग लाभकारी .... चाहिये । समय के विपरीत भोजन करने से लाभ नहीं होता,
  −
 
  −
होता है । उल्टे हानि ही होती है ।
  −
 
  −
अतः विद्यार्थियों को सात्त्तिक आहार शरीर, मन, इसी प्रकार ऋतु का ध्यान रखकर ही आहार लेना
  −
 
  −
बुद्धि, आदि की शक्ति बढाने के लिये आवश्यक होता है । .... चाहिये ।
  −
 
  −
स्थिर आहार शरीर और मन को स्थिरता देता है, आहार में छः रस होते ह॑ । ये है मधुर, खारा, तीखा,
  −
 
  −
श्द्द
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
  −
 
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खट्टा, कषाय और कडवा । भोजन में सभी छः रस इसी फ्रम
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  −
में कम अधिक मात्रा में होने चाहिये अर्थात्‌ मधुर सबसे
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  −
अधिक और कड़वा सबसे कम ।
  −
 
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यहाँ आहार विषयक संक्षिप्त चर्चा की गई है।
  −
 
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अधिक विस्तार से जानकारी प्राप्त करन हेतु पुनरुत्थान द्वारा
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  −
ही प्रकाशित “आहारशास्त्र' देख सकते हैं ।
  −
 
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इन सभी बातों को समझकर विद्यालय में आहारविषयक
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व्यवस्था करनी चाहिये । विद्यालय के साथ साथ घर में भी
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इसी प्रकार से योजना बननी चाहिये । आजकाल मातापिता
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को भी आहार विषयक अधिक जानकारी नहीं होती है । अतः
  −
 
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भोजन के सम्बन्ध में परिवार को भी मार्गदर्शन करने का दायित्व
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  −
विद्यालय का ही होता है ।
  −
 
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विद्यालय में भोजन व्यवस्था
  −
 
  −
विद्यालय में विद्यार्थी घर से भोजन लेकर आतते हैं ।
  −
 
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इस सम्बन्ध में इतनी बातों की ओर ध्यान देना चाहिये...
  −
 
  −
१, प्लास्टीक के डिब्बे में या थैली में खाना और
  −
 
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प्लास्टीक की बोतल में पानी का निषेध होना
  −
 
  −
चाहिये । इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी
  −
 
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होना चाहिये ।
  −
 
  −
प्लास्टीक के साथ साथ एल्यूमिनियम के पात्र भी
  −
 
  −
वर्जित होने चाहिये ।
  −
 
  −
विद्यार्थियों को घर से पानी न लाना we ऐसी
  −
 
  −
व्यवस्था विद्यालय में करनी चाहिये ।
  −
 
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बजार की खाद्यसामग्री लाना मना होना चाहिये । यह
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  −
तामसी आहार है ।
  −
 
  −
इसी प्रकार भले घर में बना हो तब भी बासी भोजन
  −
 
  −
नहीं लाना चाहिये । जिसमें पानी है ऐसा दाल,
  −
 
  −
चावल, रसदार सब्जी बनने के बाद चार घण्टे में
  −
 
  −
बासी हो जाती है । विद्यालय में भोजन का समय
  −
 
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और घर में भोजन बनने का समय देखकर कैसा
  −
 
  −
भोजन साथ लायें यह निश्चित करना चाहिये ।
  −
 
  −
विद्यार्थी और अध्यापक दोनों ही ज्ञान के उपासक ही
  −
 
  −
हैं। अतः दोनों का आहार सात्विक ही होना
  −
 
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चाहिये ।
  −
 
  −
sao
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भोजन के साथ संस्कार भी जुडे
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हैं । इसलिये इन बातों का ध्यान करना चाहिये...
  −
 
  −
० प्रार्थना करके ही भोजन करना चाहिये ।
  −
 
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० पंक्ति में बैठकर भोजन करना चाहिये ।
  −
 
  −
० बैठकर ही भोजन करना चाहिये ।
  −
 
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कई आवासीय विद्यालयों में, महाविद्यालयों में, शोध
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  −
संस्थानों में, घरों में कुर्सी टेबलपर बैठकर ही भोजन करने
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का प्रचलन है । यह पद्धति व्यापक बन गई है । परन्तु यह
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  −
पद्धति स्वास्थ्य के लिये सही नहीं है। इस पद्धति को
  −
 
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बदलने का प्रारम्भ विद्यालय में होना चाहिये । विद्यालय से
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यह पद्धति घर तक पहुँचनी चाहिये ।
  −
 
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०... भोजन प्रारम्भ करने से पूर्व गोग्रास तथा पक्षियों,
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चींटियों आदि के लिये हिस्सा निकालना चाहिये ।
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नीचे आसन बिछाकर ही बैठना चाहिये ।
  −
 
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सुखासन में ही बैठना चाहिये ।
  −
 
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पात्र में जितना भोजन है उतना पूरा खाना चाहिये ।
  −
 
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जूठा छोडना नहीं चाहिये । इस दृष्टि से उचित मात्रा
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में ही भोजन लाना चाहिये ।
  −
 
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भोजन के बाद हाथ धोकर पॉछने के लिये कपडा
  −
 
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साथ में लाना ही चाहिये ।
  −
 
  −
विद्यालय में भोजन करने का स्थान सुनिश्चित होना
  −
 
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चाहिये ।
  −
 
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विद्यार्थियों को भोजन करने के साथ साथ भोजन
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बनाने की ओर परोसने की शिक्षा भी दी जानी
  −
 
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चाहिये । इस दृष्टि से सभी स्तरों पर सभी कक्षाओं में
  −
 
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आहारशास्त्र पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना चाहिये ।
  −
 
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आवासीय विद्यालयों में भोजन बनाने की विधिवत्‌
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शिक्षा देने का प्रबन्ध होना चाहिये । भोजन सामग्री
  −
 
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की परख, खरीदी, सफाई, मेनु बनाना, पाकक्रिया,
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परोसना, भोजन पूर्व की तथा बाद की सफाई का
  −
 
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शास्त्रीय तथा व्यावहारिक ज्ञान विद्यार्थियों को मिलना
  −
 
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चाहिये । सामान्य विद्यालयों में भी यह ज्ञान देना तो
  −
 
  −
चाहिये ही परन्तु वह विद्यालय और घर दोनों स्थानों
  −
 
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पर विभाजित होगा । विद्यालय के निर्देश के अनुसार
  −
 
  −
अथवा विद्यालय में प्राप्त शिक्षा के अनुसार विद्यार्थी
  −
 
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  −
 
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घर में भोजन बनायेंगे, करवायेंगे और
  −
 
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करेंगे ।
  −
 
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वास्तव में भोजन सम्बन्धी यह विषय घर का है
  −
 
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परन्तु आज घरों में उचित पद्धति से उसका निर्वहन होता
  −
 
  −
नहीं है इसलिये उसे ठीक करने की जिम्मेदारी विद्यालय की
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हो जाती है ।
  −
 
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भोजन को लेकर समस्याओं तथा उनके समाधान
  −
 
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विषयक ज्ञान
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भोजन की सारी व्यवस्था आज अस्तव्यस्त हो गई
  −
 
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है। इस भारी गडबड का स्वरूप प्रथम ध्यान में आना
  −
 
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चाहिये । कुछ बिन्दु इस प्रकार है ।
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०". अन्न पतित्र है ऐसा अब नहीं माना जाता है । वह
  −
 
  −
एक जड पदार्थ है ।
  −
 
  −
भारतीय परम्परा में अनाज भले ही बेचा जाता हो,
  −
 
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अन्न कभी बेचा नहीं जाता था । अन्न पर भूख का
  −
 
  −
और भूखे का स्वाभाविक अधिकार है, पैसे का या
  −
 
  −
अन्न के मालिक का नहीं । आज यह बात सर्वथा
  −
 
  −
विस्मृत हो गई है ।
  −
 
  −
अन्नदान महादान है यह विस्मृत हो गया है ।
  −
 
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होटल उद्योग अपसंस्कृति की निशानी है। इसे
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  −
अधिकाधिक प्रतिष्ठा मिल रही है ।
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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होटेल का खाना, जंकफूड खाना, तामसी आहार
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करना बढ रहा है ।
  −
 
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शुद्ध अनाज, शुद्ध फल और सब्जी, शुद्ध और सही
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  −
प्रक्रिया से बने मसाले, गाय के घी, दूध, दही, छाछ
  −
 
  −
आज दुर्लभ हो गये हैं । रासायनिक खाद कीटनाशक,
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उगाने, संग्रह करने और बनाने में यंत्रों का आक्रमण
  −
 
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बढ रहा है और स्वास्थ्य तथा पर्यावरण के लिये
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विनाशक सिद्ध हो रहा है । इस समस्या का समाधान
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ढूँढना चाहिये ।
  −
 
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भोजन का स्वास्थ्य, संस्कार और संस्कृति के साथ
  −
 
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सम्बन्ध है इस बात का विस्मरण हो गया है ।
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  −
इन सभी समस्याओं का समाधान विद्यालय में विभिन्न
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स्तरों पर सोचा जाना चाहिये । विद्यालय में भोजन केवल
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  −
विद्यार्थियों के नास्ते तक सीमित नहीं है, भोजन से
  −
 
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सम्बन्धित कार्य, भोजन से सम्बन्धित दृष्टि एवं मानसिकता
  −
 
  −
तथा भोजन विषयक समस्याओं एवं उनके समाधान आदि
  −
 
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सभी विषयों का समावेश इसमें होता है ।
  −
 
  −
कहने की आवश्यकता नहीं कि ये सब परीक्षा के
  −
 
  −
विषय नहीं है, जीवन के विषय हैं । विद्यार्थियों को शिक्षकों
  −
 
  −
को अभिभावकों को तथा स्वयं शिक्षा को परीक्षा के चंगुल
  −
 
  −
से किंचित्‌ मात्रा में मुक्त करने के माध्यम ये बन सकते हैं ।
  −
 
  −
भारतीय इन्स्टण्ट फूड एवं जंक फूड
  −
 
  −
१. इन्स्टण्ट फूड
  −
 
  −
इन्स्टण्ट फूड का अर्थ है झटपट तैयार होने वाला
  −
 
  −
पदार्थ। झटपट अर्थात्‌ दो मिनिट से लेकर पन्द्रह-बीस
  −
 
  −
मिनिट में तैयार हो जाने वाला ।
  −
 
  −
आजकल दौडधूपकी जिंदगी में ऐसे तुरन्त बनने वाले
  −
 
  −
पदार्थों की आवश्यकता अधिक रहती है । गृहिणी को स्वयं
  −
 
  −
भी शीघ्रातिशीघ्र काम निपटकर नौकरी पर निकलना होता है
  −
 
  −
अथवा बच्चों और पति को भेजना होता है।
  −
 
  −
छाप ऐसी पड़ती है कि इन्स्टण्ट फूड का आविष्कार
  −
 
  −
आज के जमाने में ही हुआ है। परन्तु ऐसा है नही। झटपट
  −
 
  −
१६८
  −
 
  −
भोजन की आवश्यकता तो कहीं भी और कभी भी रह
  −
 
  −
सकती है। इसलिये भारतीय गृहिणी भी इस कला में माहिर
  −
 
  −
होगी ही। ऐसे कई पदार्थों की सूची यहाँ दी गई है। यह
  −
 
  −
सूची सबको परिचित है, घर घर में प्रचलित भी है। परन्तु
  −
 
  −
ध्यान इस बातकी ओर आकर्षित करना है कि ये सब पदार्थ
  −
 
  −
झटपट तैयार होने वाले होने के साथ साथ पोषक एवं
  −
 
  −
स्वादिष्ट भी होते हैं, बनाने में सरल हैं और आर्थिक दृष्टि से
  −
 
  −
देखा जाय तो सर्वसामान्य गृहिणी बना सकेगी ऐसे भी हैं।
  −
 
  −
१, हलवा
  −
 
  −
आटे को घी में सेंककर उसमें पानी तथा गुड या
  −
 
  −
शक्कर मिलाकर पकाया जाता है वह हलवा है।
  −
 
  −
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  −
 
  −
पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
  −
 
  −
आबालवृध्ध सब खा सकते हैं। मेहमान को भी परोस
  −
 
  −
सकते हैं, किसी भी समय पर किसी भी ऋतु में किसी भी
  −
 
  −
अवसर पर नाश्ते अथवा भोजन में भी खाया जाता है।
  −
 
  −
किसी भी पदार्थ के साथ खाया जाता है, जो सादा भी होता
  −
 
  −
है, पानी के स्थान पर दूध मिलाकर भी हो सकता है, उसमें
  −
 
  −
बदाम-केसर-पिस्ता चारोली इलायची जैसा सूखा मेवा भी
  −
 
  −
डाल सकते हैं। और सत्यनारायण का प्रसाद भी बन सके
  −
 
  −
ऐसा यह अदृभुत्त पदार्थ बनाने में सरल, झटपट, स्वाद में
  −
 
  −
रुचिकर और पाचन में भी लघु और पौष्टिक है।
  −
 
  −
२. सुखडी
  −
 
  −
आटे को घी में सेंककर उसमें गुड मिलाकर थाली में
  −
 
  −
डालकर सुखडी तैयार हो जाती है। कोई गुड की चाशनी
  −
 
  −
बनाता है, कोई आटा सेंकता है और कोई नहीं भी सेंकता
  −
 
  −
है। यह सुख़डी डिब्बे में भरकर कई दिनों तक रखी भी
  −
 
  −
जाती है। यात्रा में साथ ले जा सकते हैं। ताजा, गरमागरम
  −
 
  −
भी खा सकते हैं और आठ दस दिन बाद भी खा सकते हैं ।
  −
 
  −
अकाल अथवा तत्सम प्राकृतिक विपदा के समय विपुल
  −
 
  −
मात्रा में बनाकर दूर दूर के प्रदेशों में पहुँचा भी सकते हैं।
  −
 
  −
बनाने में सरल, स्वादमें उत्तम, पचने में सामान्य,
  −
 
  −
अत्यंत पोषक, किसी भी पदार्थ के साथ खा सकते हैं।
  −
 
  −
भोजन में कम परन्तु अल्पहार में अधिक चलने वाली यह
  −
 
  −
सुखडी देश के प्रत्येक राज्य तथा प्रदेशों में भिन्न नाम एवं
  −
 
  −
रुप से प्रचलित और आवकार्य है ।
  −
 
  −
३. कुलेर
  −
 
  −
बाजरे अथवा चावल का आटा सेंककर अथवा बिना
  −
 
  −
सेंके घी और गुड के साथ मिलाकर बनाया हुआ लडड कुलेर
  −
 
  −
कहा जाता है। सुख़डी की अपेक्षा कम प्रचलित परन्तु कभी
  −
 
  −
भी बनाई और खाई जा सकती है।
  −
 
  −
४. बेसन के लड्डू
  −
 
  −
चने की दाल का आटा अर्थात्‌ बेसन के मोटे आटे
  −
 
  −
को घी में सेंककर उसमें पीसी हुई शक्कर मिलाकर बनाया
  −
 
  −
गया लड्डू अर्थात्‌ बेसन का लड्डू । अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक,
  −
 
  −
मात्रा में साथ ले जा सकते हैं, कभी भी खा सकते हैं।
  −
 
  −
वैष्णव एवं स्वामीनारायण पंथ का यह प्रिय प्रसाद है।
  −
 
  −
श्घ९
  −
 
  −
घी में आटा सेंककर उसमें पानी और गुड मिलाकर
  −
 
  −
उसे उबालने पर पीने जैसा जो तरल पदार्थ बनता है वह है
  −
 
  −
Us | हलवा बनाने में प्रयुक्त सभी पदार्थ इसमें होते हैं परन्तु
  −
 
  −
राब पतली होती है। पीने योग्य है।
  −
 
  −
स्वादिष्ट, पाचनमें लघु, बीमारी के बाद भी पी सकते
  −
 
  −
हैं, शरीरकी ताकत बनाये रखती है।
  −
 
  −
कुछ लोग इसमें अजवाईन अथवा सूंठ भी डालते है।
  −
 
  −
पीपरीमूल का चूर्ण मिलाने से यही राब औषधीगुण धारण
  −
 
  −
करती है। कोई बारीक आटे की बनाता है तो कोई मोटे आटे
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की । कोई गेहूँ के आटे की बनाता है तो कोई बाजरी अथवा
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चावल के आटे की, जैसी जिसकी रुचि और सुविधा ।
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६. चीला
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चावल अथवा बेसन के आटे को पानी में घोलकर
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उसमें नमक, हलदी, मिर्ची इत्यादि मसाले मिलाकर अच्छी
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तरह से फेंटा जाता है। बाद में तवे पर तेल छोडकर उस पर
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चम्मच से आटे का तैयार घोल डालकर रोटी की तरह
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फैलाया जाता है। उसके किनारे पर थोडा थोडा तेल छोड़कर
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उसे मध्यम आँच पर पकाया जाता है। एक दो मिनिट में
  −
 
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एक ओर से पक जाने पर उसे दूसरी ओर से भी सेंका जाता
  −
 
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है। यह पदार्थ मीठा अचार, खट्टी-मीठी चटनी के साथ
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बहुत स्वादिष्ट लगता है। ख़ाने में कुछे वायुकारक मध्यम
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प्रमाण में पोषक, बनाने में अत्यंत सरल, शीघ्र और खाने में
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अति स्वादिष्ट ।
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७. मालपुआ
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गेहूं के आटे को पानी में भिगोकर घोल तैयार किया
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जाता है। उसमें गुड मिलाया जाता है । बादमें चीले की
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तरह ही पकाया जाता है। इसमें तेलके स्थान पर घी का
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उपयोग होता है।
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मालपुआ बनाने में थोडा कौशल्य आवश्यक है।
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इसकी गणना मिष्टान्न में होती है और साधुओं को अतिप्रिय
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है। इसे टूधपाक के साथ खाया जाता है।
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घर में भी अनेक लोगों को पसंद होने पर भी चीले
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जितना यह पदार्थ प्रसिद्ध एवं प्रचलित नहीं है।
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८. पकोड़े
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बेसन के आटे का घोल बनाते हैं। आलू, केला,
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बेंगन, मिर्ची, प्याज ऐसी कई सब्जियों से पतले टुकडे कर
  −
 
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उन्हें घोल में डूबोकर तलने से पकोडे तैयार होते हैं। इसका
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पोषणमूल्य कम है पर खाने में अतिशय स्वादिष्ट है। बनाने
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में सरल, अल्पाहार एवं भोजन दोनो में चलते हैं।
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मेहमानदारी भी की जा सकती है।
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गृहिणी कुशल है तो सोडा जैसी कोई चीज डाले
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बिना भी पकोडे खस्ता हो सकते हैं।
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९. बड़ा
  −
 
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बेसन का थोडा मोटा आटा लेकर उसमें सब मसालों
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के साथ लौकी, मेथी अथवा उपलब्धता एवं रुचि के
  −
 
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अनुसार अन्य कोई सब्जी मिलाकर पकोडे की तरह तेल में
  −
 
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तलने पर बडे तैयार होते हैं। वह किसी भी प्रकार की
  −
 
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चटनी के साथ खाये जाते है।
  −
 
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पोषणमूल्य कम, कभी कभी अस्वास्थ्यकर, जब चाहे
  −
 
  −
तब और चाहे जितना नहीं खा सकते । स्वाद में लिज्जतदार,
  −
 
  −
अल्पाहारमें ठीक हैं । बनानेमें सरल ।
  −
 
  −
९. पोहे
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  −
पोहे पानी में धो कर उसमें से पूरा पानी निकाल कर
  −
 
  −
दो-पाँच मिनिट रहने देते हैं। बादमें उसमें नमक, मिर्च,
  −
 
  −
शक्कर, हल्दी इत्यादि मसाले मिलाकर बघारते हैं। दो तीन
  −
 
  −
मिनिट ढक्कन रख कर पकाते हैं। इतने पर पोहे खाने के
  −
 
  −
लिये तैयार हो जाते हैं।
  −
 
  −
इसके बघार में स्वाद एवं रुचि के अनुसार प्याज
  −
 
  −
अथवा आलू और हरीमिर्च, टमाटर इत्यादि का उपयोग
  −
 
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होता है। पोहे तैयार हो जाने पर परोसने के बाद उसे धनिया
  −
 
  −
एवं नारियल के बूरे से सजाया जाता है।
  −
 
  −
स्वादिष्ट, पौष्टिक, बनाने में सरल, कभी भी खाये जा
  −
 
  −
सकते हैं, परन्तु गरमागरम ही अच्छे लगते हैं। पाचन में
  −
 
  −
अति भारी नहीं। पेटभर खा सकें ऐसा नाश्ता। महाराष्ट्र
  −
 
  −
मध्यप्रदेश में अधिक प्रचलित ।
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१०. मुरमुरे की चटपटी
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  −
मुरमुरे भीगोकर पूरा पानी निकालकर सब मसाले एवं
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गाजर, पत्ता गोभी इत्यादि को मिलाकर थोडी देर पकाया
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१७०
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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हुआ पदार्थ । मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता
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है। मध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम
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प्रचलित ।
  −
 
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११, उपमा
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सूजी सेंककर पानी बघारकर उसमें आवश्यक मसाले
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डालकर उबलने के बाद उसमें सेंकी हुइ सूजी डालकर
  −
 
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पकाया गया पदार्थ । उसे नमकीन हलवा भी कह सकते हैं।
  −
 
  −
इसमें भी आलू, प्याज, टमाटर, मटर, Aree, fra,
  −
 
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नारियल, नीबू, कढीपत्ता, धनिया, इन सबका रुचि के
  −
 
  −
अनुसार उपयोग किया जाता है। सूजी के स्थान पर गेहूँ का
  −
 
  −
थोडा मोटा आटा, चावल अथवा ज्वार का आटा भी
  −
 
  −
उपयोग में लिया जा सकता है। स्वादिष्ट, पौष्टिक, झटपट
  −
 
  −
तैयार होनेवाला कभी भी खा सकें ऐसा सुलभ, सस्ता और
  −
 
  −
सर्वसामान्य रुप से सबको पसंद ऐसा पदार्थ । इसका प्रचलन
  −
 
  −
महाराष्ट्र और संपूर्ण दक्षिण भारतमें है। उत्तर एवं पूर्व में कम
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  −
प्रचलित तो कभी कभी अप्रचलित भी ।
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  −
१२. खीच
  −
 
  −
पानी उबालकर उसमें जीरे का चूर्ण, नमक, थोडी
  −
 
  −
हिंग, हरी अथवा लाल मिर्च, हलदी मिलाकर उसमें चावल
  −
 
  −
का आटा मिलाकर अच्छे से हिलाकर भाप से पकाया गया
  −
 
  −
पदार्थ । गरम रहते उसमें तेल डालकर खाया जाता है।
  −
 
  −
ऐसा भापसे पकाया आटा स्वादिष्ट, पौष्टिक, सुलभ
  −
 
  −
और सरल होता है। इसी आटेके पाप अथवा सेवईया भी
  −
 
  −
बनाई जाती हैं।
  −
 
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१३. चीकी
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मूँगफली, तिल, नारियेल, बदाम, काजू इत्यादि के
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  −
टूकडे अथवा अलग अलग लेकर एकदम बारीक टुकडे कर
  −
 
  −
शक्कर अथवा गुड की चाशनी बनाकर उसमें ये चीजें
  −
 
  −
डालकर उसके चौकोन टुकडे बनाये जाते हैं । ठण्डा होने पर
  −
 
  −
कडक चीकी तैयार हो जाती है।
  −
 
  −
खाने में स्वादिष्ट, पचने में भारी, कफकारक, अतिशय
  −
 
  −
ठण्ड में ही खाने योग्य, बनाने में सरल पदार्थ ।
  −
 
  −
छोटे बडे सबको पसन्द परन्तु खाने में संयम बरतने
  −
 
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योग्य पदार्थ ।
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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१४. पूरी, थेपला इत्यादि
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  −
गेहूं का आटा मोन लगाकर, आवश्यक मसाला
  −
 
  −
डालकर, आवश्यकता के अनुसार पानी से गूंदकर बेलकर
  −
 
  −
के बनाया जाता हैं। पूरी अथवा थेपला, जो बनाना है
  −
 
  −
उसके अनुसार उसका आकार छोटा या बडा, पतला या
  −
 
  −
मोटा हो सकता है। ऐसा बेलने के बाद पूरी बनानी है तो
  −
 
  −
कडाईमे तेल लेकर तलना होता है। और थेपला बनाना है
  −
 
  −
तो तवे पर तेल डालकर सेंकना होता है। खट्टे अथवा मीठे
  −
 
  −
अचार के साथ, दूध अथवा चाय के साथ अथवा सब्जी के
  −
 
  −
साथ भी खा सकते हैं।
  −
 
  −
पौष्टिकता में थेपला प्रथम है, पूरी बादमें ।
  −
 
  −
गुजरात से लेकर समग्र उत्तर भारत में रोटी अथवा
  −
 
  −
पराठा के विविध रुपों में यह पदार्थ प्रचलित है, परिचित है,
  −
 
  −
और प्रतिष्ठित भी है।
  −
 
  −
१५, खमण
  −
 
  −
चने के आटे को पानी में भीगोकर, घोल बनाकर
  −
 
  −
उसमें सेडाबायकार्ब और नीबू का रस समप्रमाण में डालकर
  −
 
  −
फेंटकर जब वह फूला हुआ है तभी एक थाली में तेल
  −
 
  −
लगाकर उसमें डाला जाता है। बाद में उसे भाप देकर
  −
 
  −
पकाया जाता है। पक जाने के बाद चाकू से उसके
  −
 
  −
समचौकोन टुकडे काट कर उस पर लाल अथवा हरीमिर्च,
  −
 
  −
हिंग, तिल, राई इत्यादि डाल कर छोंक डाला जाता है।
  −
 
  −
खमण शीघ्र बनता है, खाने में स्वादिष्ट है परन्तु
  −
 
  −
पौष्टिकता निम्नकक्षा की है। खाने में अतिशय संयम बरतना
  −
 
  −
पडता है।
  −
 
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१६, थालीपीठ
  −
 
  −
बाजरी, चावल, गेहूं, चने की दाल, ज्वारी, धनिया-
  −
 
  −
जीरा इत्यादि सब पदार्थ आवश्यक अनुपात में अलग अलग
  −
 
  −
सेंककर ठण्डा होने के बाद एकत्र कर चक्की में पिसना होता
  −
 
  −
है। उस आटे को 'भाजनी' कहे है। गरम पानी में नरम सा
  −
 
  −
आटा TSR TA Ta पर तेल लगाकर उसपर यह आटेका
  −
 
  −
गोला रखकर हाथसे थपथपाकर रोटी जैसा बनाया जाता है ।
  −
 
  −
आटे में स्वाद के लिये आवश्यकता के अनुसार मसाले डाले
  −
 
  −
जाते हैं। लौकी, मेथी अथवा प्याज भी डाल सकते हैं।
  −
 
  −
तेल डालकर अच्छा सेंक लेनेके बाद वह खानेके
  −
 
  −
१७१
  −
 
  −
लिये तैयार होता है। मखखन अथवा
  −
 
  −
धीके
  −
 
  −
साथ,
  −
 
  −
दही अथवा छाछ के साथ अथवा चटनी के साथ खाया
  −
 
  −
जाता है। स्वादिष्ट, पोषक और पचने में हलका, बनानेमें
  −
 
  −
सरल पदार्थ है।
  −
 
  −
ale ale ale
  −
 
  −
—-  F
  −
 
  −
यहाँ तो केवल नमूने के लिये पदार्थ बताये गये हैं।
  −
 
  −
भारत के प्रत्येक प्रान्त में एसे अनेकविध पदार्थ बनते हैं।
  −
 
  −
थोडा अवलोकन करने पर ज्ञात होगा कि झटपट बनने वाले
  −
 
  −
सस्ते, सुलभ, स्वादिष्ट और पौष्टिक एसे विविध पदार्थों
  −
 
  −
बनाने में भारत की गृहणी कुशल है। आधुनिक युग ही
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  −
इन्सटन्ट फूड का है ऐसा नहीं है, प्राचीन समय से यह प्रथा
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  −
चली आ रही है।
  −
 
  −
२. प्रचलित जंकफूड
  −
 
  −
जंकफूड से तात्पर्य है ऐसे पदार्थ जो स्वाद में तो
  −
 
  −
बहुत चटाकेदार लगते हैं परन्तु जिनका पोषणमूल्य बहुत
  −
 
  −
कम होता है। साथ ही ये बासी पदार्थ होते हैं । मुख्य भोजन
  −
 
  −
में से बचे हुए पदार्थों से पुनःप्रक्रिया करने के बाद तैयार
  −
 
  −
किये जाते हैं।
  −
 
  −
इस दृष्टि से भारत में प्रचलित रुप से बनने वाले
  −
 
  −
जंकफूड कुछ इस प्रकार हैं ।
  −
 
  −
१. रोटीचूरा
  −
 
  −
रात के भोजन से बची हुई रोटी को मसलकर उसका
  −
 
  −
या तो चूर्ण बनाया जाता है, या छोटे छोटे टुकडे। उसमें
  −
 
  −
नमक, मिर्च आदि मनपसन्द मसाला डालकर छौंककर गरम
  −
 
  −
किया जाता है। उसे रोटी का उपमा कह सकते हैं। उसी
  −
 
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TAR Oe Sim कर उसमें रोटी के थोडे बडे टुकडे डाले
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जाते हैं और रुचि के अनुसार मसाले डाले जाते है।
  −
 
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२. रोटी का लडू
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बची हुई रोटी को मसलकर उसका बारीक चूर्ण
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बनाकर उसमे घी और गुड मिलाकर, गरम कर अथवा बिना
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गरम किये लडडु बनाये जाते हैं।
  −
 
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३. खिचडी के पराठे, पकौडे
  −
 
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बची हुई खिचडी में गेहूं का आटा मिलाकर, अच्छी
      
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