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| छात्रों की कुल संख्या के अनुसार तति और प्रतति संख्या बनती है । तति में प्रतति से अधिक संख्या होना स्वाभाविक है फिर भी कक्षा की आकृति और स्थान के अनुसार प्रतति में अधिक और तति ने कम संख्या बिठाई जा सकती है। उदाहरण के लिए कक्षा में यदि ३० छात्रों की संख्या है तो ६ तति और ५ प्रतति बनेंगे । ३५ संख्या है तो पांच तति और सात प्रतति बनेंगे । तति में और प्रतति में बैठे हुए छात्र एक दूसरे से समानांतर बना कर बैठते हैं तो अपने आप सुंदरता और अनशासन का वातावरण बनता है । अध्ययन-अध्यापन करने वाले लोगों की मानसिकता पर भी इसका परिणाम होता है । यदि योगाभ्यास करना है तो यह रचना बदलेगी या बदल सकती है। प्रथम प्रतति में यदि ५ बैठे है तो दूसरी में चार बैठेंगे और आगे वाले दो के बीच में एक छात्र बैठेगा । उदाहरण के लिए प्रथम प्रतति में ६ बैठे हैं तो दूसरी में ५ बैठेंगे तीसरी में ६ बैठेंगे चौथी में पाँच । ) इस प्रकार से क्रमशः रचना होगी । इससे इस जगह में अधिक लोग बैठकर योग अभ्यास कर सकते हैं । यदि संगीत का अभ्यास करना है तो अध्यापक के सामने अर्ध मंडल में बैठना सुरुचि पूर्ण और सुविधाजनक लगता है । इसमें भी प्रततियाँ दो के बीच में एक ऐसी बन सकती है । यदि कहानी सुनना है तो किसी भी प्रकार के अनुशासन वाली रचना नहीं होने से भी असुविधा नहीं होती । यदि बैठक के रूप में चर्चा करना है तो अर्धमंडल में बैठना या मंडल में बैठना सुविधाजनक रहता है क्योंकि इस स्थिति में सभी एक दूसरे के मुँह देख सकते हैं और एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं । आजकल अनेक कॉन्फ्रेंसीसमें इस प्रकार की रचना देखी जा सकती है । इस प्रकार उद्देश्य के अनुसार विभिन्न प्रकार की व्यवस्था की जा सकती है। | | छात्रों की कुल संख्या के अनुसार तति और प्रतति संख्या बनती है । तति में प्रतति से अधिक संख्या होना स्वाभाविक है फिर भी कक्षा की आकृति और स्थान के अनुसार प्रतति में अधिक और तति ने कम संख्या बिठाई जा सकती है। उदाहरण के लिए कक्षा में यदि ३० छात्रों की संख्या है तो ६ तति और ५ प्रतति बनेंगे । ३५ संख्या है तो पांच तति और सात प्रतति बनेंगे । तति में और प्रतति में बैठे हुए छात्र एक दूसरे से समानांतर बना कर बैठते हैं तो अपने आप सुंदरता और अनशासन का वातावरण बनता है । अध्ययन-अध्यापन करने वाले लोगों की मानसिकता पर भी इसका परिणाम होता है । यदि योगाभ्यास करना है तो यह रचना बदलेगी या बदल सकती है। प्रथम प्रतति में यदि ५ बैठे है तो दूसरी में चार बैठेंगे और आगे वाले दो के बीच में एक छात्र बैठेगा । उदाहरण के लिए प्रथम प्रतति में ६ बैठे हैं तो दूसरी में ५ बैठेंगे तीसरी में ६ बैठेंगे चौथी में पाँच । ) इस प्रकार से क्रमशः रचना होगी । इससे इस जगह में अधिक लोग बैठकर योग अभ्यास कर सकते हैं । यदि संगीत का अभ्यास करना है तो अध्यापक के सामने अर्ध मंडल में बैठना सुरुचि पूर्ण और सुविधाजनक लगता है । इसमें भी प्रततियाँ दो के बीच में एक ऐसी बन सकती है । यदि कहानी सुनना है तो किसी भी प्रकार के अनुशासन वाली रचना नहीं होने से भी असुविधा नहीं होती । यदि बैठक के रूप में चर्चा करना है तो अर्धमंडल में बैठना या मंडल में बैठना सुविधाजनक रहता है क्योंकि इस स्थिति में सभी एक दूसरे के मुँह देख सकते हैं और एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं । आजकल अनेक कॉन्फ्रेंसीसमें इस प्रकार की रचना देखी जा सकती है । इस प्रकार उद्देश्य के अनुसार विभिन्न प्रकार की व्यवस्था की जा सकती है। |
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| + | === विद्यालय में पर्यावरण सुरक्षा === |
| + | १. पर्यावरण सुरक्षा का क्या अर्थ है ? |
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| + | २. पर्यावरण सुरक्षा का क्या महत्व है ? |
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| + | ३. पर्यावरण सुरक्षा के आयाम क्या है ? |
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| + | ४. पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टी से निम्नलिखित विषयों में कैसे विचार करने चाहिए ? |
| + | # भवन निर्माण - पद्धति एवं उसमे प्रयुक्तसमाग्री |
| + | # विद्यालय में प्रयुक्त साधनसामग्री, फर्निचर, अन्य चीजें |
| + | # पानी, पानी की निकासी, शौचालय आदि व्यवस्थायें |
| + | # बगीचा |
| + | # यज्ञ |
| + | # स्वछता की सामग्री |
| + | # कीटकों से रक्षा |
| + | # विद्यालय के लिए भूमि का चयन |
| + | ५. प्राकृतिक सामग्री का उपयोग बढ़ाने लिए एवं कृत्रिम वस्तुओं से छुटकारा पाने के लिए हम क्या कर सकते है? |
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| + | ६. विद्यालय में ए. सी., कूलर, फ्रीज, पंखे, वाहन आदि के सम्बन्ध में कैसे सोचना चाहिए? |
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| + | ==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ==== |
| + | विद्यालय में पर्यावरण सुरक्षा के बारे में वैचारिक स्पष्टता और उस सन्दर्भ में उसे व्यवहार में कैसे लागू कर सकते हैं ? यह जानना इस प्रश्नावली का प्रयोजन था। आचार्य प्रशिक्षण वर्ग में सहभागी आचार्यों की इसमें सहभागिता रही। |
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| + | प्रश्नावली के प्रथम तीन प्रश्न वैचारिक स्पष्टता हेतु थे । पर्यावरण के सम्बन्ध में स्पष्टता कम और सुरक्षा की समझ पर्याप्त है, ऐसे उत्तर मिले । जैसे कि प्राकृतिक विपत्तियों के निवारण हेतु, मानवजीवन को सुरक्षित रखने हेतु, ग्लोबल वार्मिग रूपी वैश्विक समस्या का उपाय आदि । पृथ्वी, जल, तेज, वायु व आकाश ये पंचमहाभूत पर्यावरण के घटक हैं । एक मात्र यह सही उत्तर श्री अन्नपूर्णा बहन का था । अन्यों |
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| सामने जो छात्र बैठे हैं उनकी बैठक व्यवस्था की रचना | | सामने जो छात्र बैठे हैं उनकी बैठक व्यवस्था की रचना |